(14/07/2013) 
देव वृक्ष पीपल में रहता है देवताओं का निवास.
भारतीय संस्कृति में पीपल देववृक्ष है, इसके सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अन्त: चेतना पुलकित और प्रफुल्लित होती है। पीपल वृक्ष प्राचीन काल से ही भारतीय जनमानस में विशेष रूप से पूजनीय रहा है। ग्रंथों में पीपल को प्रत्यक्ष देवता की संज्ञा दी गई है। स्कन्दपुराण में वर्णित है कि अश्वत्थ(पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव- शाखाओं में नारायण- पत्तों में श्रीहर और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं। पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप है। यह सभी अभीष्टों का साधक है। इसका आश्रय मानव के सभी पाप ताप का शमन करता है।

भगवान कृष्ण कहते हैं-
अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम्
अर्थात् समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूं। स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व और दिव्यत्वको व्यक्त किया है। शास्त्रों में वर्णित है कि
अश्वत्थ: पूजितो यत्र पूजिता:सर्व देवता:।
अर्थात् पीपल की सविधि पूजा-अर्चना करने से सम्पूर्ण देवता स्वयं ही पूजित हो जाते हैं। पीपल का वृक्ष लगाने वाले की वंश परम्परा कभी विनष्ट नहीं होती। पीपल की सेवा करने वाले सद्गति प्राप्त करते हैं।
पीपल वृक्ष की प्रार्थना के लिए अश्वत्थस्तोत्रम् में दिया गया मंत्र है-
अश्वत्थ सुमहाभाग सुभग प्रियदर्शन। इष्टकामांश्च मे देहि शत्रुभ्यस्तुपराभवम्॥
आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यंसर्व संपदं। देहि देवि महावृक्षत्वामहं शरणंगत:॥
बृहस्पति की प्रतिकूलता से उत्पन्न होने वाले अशुभ फल में पीपल समिधा से हवन करने पर शांति मिलती है।
सभी को सब प्रकार से पीपल वृक्ष की आराधना करनी चाहिए। इसके पूजन से यम लोक के दारुण दु:ख से मुक्ति मिलती है। अश्वत्थोपनयन व्रत में महर्षि शौनक वर्णित करते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल के वृक्ष को लगाकर आठ वर्षो तक पुत्र की भांति उसका लालन-पालन करना चाहिए। इसके अनन्तर उपनयन संस्कार करके नित्य सम्यक् पूजा करने से अक्षय लक्ष्मी मिलती हैं।
पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है।
शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष के पूजन और सात परिक्रमा करने से तथा काले तिल से युक्त सरसोतेल के दीपक को जलाकर छायादान से शनि की पीडा का शमन होता है।
अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या में पीपल वृक्ष के पूजन से शनि के कुप्रभाव से मुक्ति प्राप्त होती है।
श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से बडे संकट से मुक्ति मिल जाती है।
पीपल का वृक्ष इसीलिए ब्रह्मस्थान है। इससे सात्विकता बढती है। पीपल के वृक्ष के नीचे मंत्र,जप और ध्यान उपादेय रहता है।
श्रीमद्भागवत् में वर्णित है कि द्वापरयुग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हुए। इसका प्रभाव तन-मन तक ही नहीं भाव जगत तक रहता है।
लेख--पंडित आशु बहुगुणा
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