नई दिल्ली, 07 अगस्त, 2016: बहुजन समाज पार्टी (बी.एस.पी.) की राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद (राज्यसभा) व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश मायावती जी ने तथाकथित गौरक्षों के भक्षक बनकर हिंसा, आतंक व कत्ल करने व अपने काले धन्धों को छिपाने के लिये ही गौरक्षक बनने वालों के विरूद्ध लगभग सवा दो वर्षों के बाद काफी आधे-अधूरे मन से बोलने की तीव्र निन्दा करते हुये कहा कि जनता को उन्हें यह भी ज़रूर बताना चाहिये कि गौरक्षा के नाम से 80 प्रतिशत गोरख धन्धा अधिकांशतः भाजपा शासित राज्यों में ही क्यों चल रहा है तथा वहाँ की सरकारें उन्हें हर प्रकार का संरक्षण क्यों दे रही हैं? साथ ही, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह भी बताना चाहिये कि भाजपा-शासित गुजरात राज्य के ऊना में दलित युवकों पर बर्बर कांड के मुख्य दोषी व षड़यन्त्रकारी लोग अब तक क्यों नहीं पकड़े गये? मायावती जी ने आज यहाँ जारी एक बयान में कहा कि गौरक्षा के नाम पर हिंसा, आतंक व कत्ल तक की बर्बर घटनायें देश के अनेक राज्यों में हो रही हैं
जिस कारण अब यह राज्य की समस्या नहीं रह गई है बल्कि एक राष्ट्रीय समस्या बन गई
है। फिर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, संसद में इस मामले में काफी हंगामे के बावजूद, संसद के भीतर ज़िम्मेंदारी से कुछ बोलना पसन्द नहीं करते और संसद के
बाहर ऐसे कार्यक्रमों में बोलते हैं जहाँ उनसे सार्थक सवाल-जवाब नहीं हो सकता है।
वर्तमान में संसद का सत्र चल रहा है और गौरक्षा से सम्बन्धित ज्वलन्त मसले पर संसद
के भीतर सदन में उन्हें अपना बयान देना चाहिये था ताकि इस प्रकार के मामले में
केन्द्र सरकार की पूरी जवाबदेही तय हो सके। वैसे भी
गौरक्षा के नाम पर हिंसा व आतंक एवं हत्या के मामलों से जब देश के लोग जूझ रहे हैं
तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्यों से
उनका डोज़ियर ही बनाने की बात करके मामले
को टालने का ही प्रयास कर रहे हैं, जबकि राज्यों को उन अराजक व
उग्र गौरक्षकों के ख़िलाफ सीधे-सीधे तौर पर सख़्त क़ानूनी कार्रवाई करने का निर्देश
उन्हें व गृह मंत्रालय को देना चाहिये था। परन्तु ऐसा नहीं किया जा रहा है और इस
प्रकार अप्रत्यक्ष तौर पर वैसे असमाजिक तत्वों को संरक्षण ही प्रदान करने की कोशिश
की जा रही है। वास्तव
में केन्द्र की भाजपा सरकार के इस प्रकार के लचर रवैये से ऐसा लगता है कि
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की असली चिन्ता गौरक्षा के नाम पर हिंसा, आतंक व कत्ल करने वाले असमाजिक गौरक्षकों को क़ानून के कठघरे में खड़ा करना नहीं है, बल्कि उनकी चिन्ता भाजपा को इससे होने वाले राजनीतिक नुकसान की ज़्यादा
है और ख़ासकर उत्तर प्रदेश विधानसभा आमचुनाव को ध्यान में रखकर ही दिया गया उनका यह
बयान है। अगर उनकी चिन्ता इस गम्भीर चिन्ता के प्रति वास्तविक होती तो वे संसद में
बयान देते, ना कि संसद के बाहर केवल कुछ खास दर्शकों के बीच। इसके साथ
ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा यह
कहना कि गायें कत्ल करने से ज़्यादा प्लास्टिक आदि खाने से ज़्यादा मरती हैं, पर अपनी प्रतिक्रिया में सु मायावती जी ने कहा कि यह बात नरेन्द्र मोदी भाजपा, आर.एस.एस. व इनके सहयोगी कट्टरवादी संगठनों के लोगों क्यों नहीं
समझाते हैं, जिसकी वजह ये आजकल आयेदिन हिंसा, आतंक व कत्ल आदि की वारदातें हो रही हैं और इससे देश की बदनामी हो
रही है। कुल
मिलाकर संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि गौरक्षा को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा काफी देर से दिया गया बयान
पूरेतौर से राजनीति से प्रेरित लगता है अर्थात गौरक्षा के नाम पर भाजपा/आर.एस.एस.
व इनके अन्य और सहयोगी कट्टरवादी संगठनों द्वारा भाजपा सरकारों की शह पर उनके
संरक्षण में, कानून को हाथ में लेने का जो ग़ैर-क़ानूनी काम किया
जा रहा है, इस पर से लोगों का ध्यान हटाने का असफल प्रयास है। साथ ही, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
का यह कहना कि गौरक्षा के नाम पर असमाजिक तत्व अपनी-अपनी दुकान खोलकर बैठ गये हैं, तो इस बारे में उन्हें जनता को बताना चाहिये कि ऐसे असमाजिक तत्वों
को दुकान खोलने की छूट भाजपा-शासित
राज्यों में ख़ासकर क्यों दी गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उपदेशों पर राज्य सरकारें व तथाकथित गौरक्षक कितना ध्यान देंगे यह आगे देखने
वाली बात होगी। इसी बीच, उत्तर प्रदेश से केन्द्र सरकार में अभी हाल ही में बनी एक केन्द्रीय
राज्यमंत्री द्वारा भाजपा व आर.एस.एस. के नक्शे कदम पर चलते हुये आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था की समीक्षा की माँग की तीव्र निन्दा करते हुये सु
मायावती जी ने कहा कि बिहार विधानसभा आमचुनाव के बाद अब उत्तर प्रदेश विधानसभा
आमचुनाव से पहले आरक्षण की समीक्षा का मुद्दा उठाना दुर्भाग्यपूर्ण व निन्दनीय है। वास्तव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आरक्षण के सम्बन्ध में अपनी नीति को स्पष्ट करके अपने मंत्रियों को भी उस पर सख्ती से लागू करवाना सुनिश्चित करना चाहिये। जबकि वास्तव में भाजपा-आर.एस.एस. व केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के आरक्षण के प्रति नकारात्मक रवैये के कारण ही आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था को समाप्त ही कर देने का ख़तरा हमेशा मंडलाता रहता है। इन लोगों ने मिलकर आरक्षण की व्यवस्था को पहले से ही काफी निष्क्रिय व निष्प्रभावी बना दिया है तथा सरकारी मंत्रालयों व विभागों की बड़ी योजनाओं का काम सरकारी स्तर से हटाकर बड़ी-बड़ी प्राइवेट कम्पनियों को दे दिया है, जहाँ दलितों व पिछड़ों के लिये आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। इस प्रकार आरक्षण के तहत् नौकरियाँ लगातार कम होकर एक प्रकार से समाप्त ही होती जा रही हैं। ऐसे में केन्द्रीय मंत्री का यह बयान और भी ज्यादा चिन्ता व समस्या पैदा करने वाला है। |