(12/09/2016) 
मातृभाषा में मिला ज्ञान बनाता है देश को विश्व में अग्रणी : अतुल कोठारी
नई दिल्ली (इंविसंके)। भारतीय भाषा मंच द्वारा कांस्टीटूशन क्लब दिल्ली में भारतीय भाषाऐं एक विमर्श विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गयी। मुख्य वक्ता के रूप में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल भाई कोठारी जी ने भारतीय भाषाएं एवं उनके विस्तार तथा व्यवहारिकता की वैज्ञानिकता के विषय में अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने बताया की आज हिंदी देश और दुनिया में बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है।

देश में भ्रम है की पूर्वोत्तर भारत में हिंदी नहीं बोली जाती, जबकि वास्तव में वहां भी सामान्य लोगों की बोलचाल हिंदी है। इसी तरह दक्षिण के राज्यों में भी हिन्दी का कोई विरोध नहीं है, वहां भी अब लोग हिन्दी सीख रहे हैं। दुनिया में सौ के लगभग देशों में, ऑक्सफ़ोर्ड, हार्वर्ड जैसे शीर्ष विश्वविद्यालयों में हिंदी पढाई जा रही है। कोठारी ने चिंता व्यक्त की कि अंग्रेजों ने भाषा के विषय में जो परंपरा स्थापित की वह आज भी यहाँ चल रही है। उनकी फूट डालो की नीति के कारण कई बार अपनी ही भाषाओं के बीच झगड़ें शुरू हो जाते हैं।

उन्होंने बताया कि बच्चा जन्म लेते ही सबसे पहले अपनी माँ से ही सीखता व समझता है। जो भाषा वह उस समय नैसर्गिक रूप से माँ से सीखता है वह उसकी मातृभाषा भाषा बन जाती है तथा जीवन पर्यंत उसी भाषा में वह सोचता है। इसलिए जिस भाषा में हम सोचते हैं उस भाषा में अपने विचार, कार्य तथा शोध का प्रस्तुतीकरण अन्य भाषाओं की तुलना में बेहतर ढंग से कर सकते हैं। दुनिया के सभी विकसित देशों में प्राथमिक शिक्षा से लेकर मेडिकल, इंजीनियरिंग तथा विश्वविद्यालयों की उच्च शिक्षा तक का माध्यम उनकी मातृभाषा में ही छात्रों को मिल जाता है। जापान, जर्मनी, फ्रांस, दक्षिणी कोरिया, इटली, चीन, रूस, इजराइल जैसे विकसित तथा सर्वाधिक वैज्ञानिक उन्नति करने वाले देशों में शिक्षा, व्यवसाय तथा राजकीय कार्यों में उनकी मातृभाषा का ही प्रयोग होता है न कि अंगरेजी भाषा का। मातृभाषा में गौरव की अनुभूति करने वाले शीर्ष पदों पर बैठे वहां के बहुत से विश्वविद्यालयों के कुलपति, वैज्ञानिक तथा राजनेताओं आदि को अंगरेजी सीखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। अन्तराष्ट्रीय मंचों में आवश्यकतानुसार उनके लिए अनुवादक रहते हैं।

इसके विपरीत भारत में जिसे अंगरेजी भाषा का ज्ञान न हो उसे समाज में उच्च शिक्षित नहीं माना जाता और अंगरेजी माध्यम से पढ़े व्यक्ति से कमतर आँका जाता है। स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी भारत का सामान्य व्यक्ति अंगरेजी भाषा के कारण सरकारी अधिकारियों, वकीलों, चिकित्सकों के समक्ष असहाय स्थिति में रहता है। देश को अगर आज विकसित देशों के समकक्ष खड़ा होना है तो अंग्रेजों के थोपी गयी भाषा की इस गुलामी से भी बाहर निकलना होगा। उच्च शिक्षा से जुड़ा भारत का तथा विकसित देशों का श्रेष्ठ ज्ञान पुस्तकों तथा कंप्यूटर के माध्यम से हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में छात्रों को उपलब्ध करना होगा। जर्मन, फ्रेंच, हिब्रू, जापानी भाषा में अंगरेजी की तुलना में विज्ञान, दर्शन तथा तकनीक का बेहतर व अधिक ज्ञान उपलब्ध है, इसलिए भारत में इन भाषाओँ में अच्छे विद्वान तैयार हों, जिससे कि उसका भारतीय भाषाओँ में अनुवाद हो सके। भारतीय भाषा मंच इस दिशा में कार्य कर रहा है।

कोठारी ने अवगत किया कि भारत आज विश्व के लिए बहुत बड़ा बाज़ार बन गया है। विकसित देशों की बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां यहाँ अपने उत्पाद बेचने के लिए हिंदी का प्रयोग कर रही हैं। आज उन देशों को हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाएँ सीखने आवश्यकता पड़ गयी है। अतः हम आज विश्व में हिंदी का प्रचार-प्रसार करने की स्थिति में हैं। उन्होंने बताया कि हमें अपनी शक्ति को पहचानने की आवश्यकता है, भारतीय छात्रों में सीखने की क्षमता अन्य देशों की तुलना में कही अधिक है। अंगरेजी सीखने में जितना समय हम व्यर्थ करते हैं उतना समय यदि अपनी मातृभाषा में अपने विषय पर ध्यान केन्द्रित करें तो देश में कई नोबेल पुरस्कार ला सकते हैं साथ ही बड़े-बड़े आविष्कार कर के देश को विकसित देशों में अग्रणी बना सकते हैं। 

कांस्टीट्यूशन क्लब में शनिवार 10 सितम्बर को आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता यूनिलीवर कंपनी के अन्तर्राष्ट्रीय लीडर एवं सामाजिक उपकर्मीमहमूद खान जी द्वारा की गयीमुख्य अतिथि आयकर आयुक्त हैदराबाद बी.वी. गोपीनाथ जी, विशिष्ठ अतिथि के रूप में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय निदेशक श्री राजीव जैन जीएल.आई.सी. दिल्ली मंडल प्रबंधक के प्रबंधक राजेश कुमार जी तथा सुशील गुप्ता जी ने भी अपने विचारों से आगंतुकों का मार्गदर्शन किया। इस अवसर पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय अध्यक्ष व वरिष्ठ शिक्षाविद दीनानाथ बत्रा जी विशेष सानिध्य रहा। कार्यक्रम का मंच संचलन नितिन जी द्वारा किया गया।

Copyright @ 2019.