(26/12/2016) 
दाती सीखा रहे हैं जीने की कला
गुरुकुल आश्वासन बालग्राम में तीन दिवसीय ध्यान योग शिविर का हुआ आयोजन दाती दिव्य धारा फाउंडेशन के तत्वावधान में ध्यान योग शिविर का हुआ आयोजन

सद्गुरु 1008 महामण्डलेश्वर परमहंस दाती महाराज के सानिध्य में ध्यान योग शिवर का आयोजन

ध्यान योग शिविर में देशभर के श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब 

सद्गुरुदेव महाराज ने श्रद्धालुओं को कराया अमृत रस का पान

स्वयं में विराजमान परमात्मा को खोजिए - परमहंस दाती महाराज

आत्मा का परमात्मा से मिलन ही महारास है - परमहंस दाती महाराज

 पाली। परमात्मा तथा परमानंद कहीं और नहीं आपके हृदय में ही है। परमात्मा को कहीं और खोजने की क्या आवश्यकता। जरूरत इस बात की है कि आप स्वयं के हृदय में विराजमान परमात्मा को पहचान लें, आपका जीवन सुखमय एवं आनंदमय हो जाएगा। श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम पीठाधीश्वर सद्गुरु 1008महामण्डलेश्वर परमहंस दाती महाराज (स्वामी निजस्वरूपानंदजी) ने ये बातें आलावास स्थित गुरुकुल आश्वासन बाल ग्राम में आयोजित तीन दिवसीय ध्यान योग शिविर के पहले दिन कही। दाती दिव्य धारा फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित ध्यान योग शिविर के दौरान दातीश्री ने श्रद्धालुओं को अमृत रस का पान कराया।उन्होंने मानव जीवन में सत्संग, सद्गुरु, सनमार्ग, गुरुज्ञान, परमतत्व, परमशक्ति, परमशांति, परमानंद एवं आत्मबोध की महत्ता बताई।

 आत्मा का परमात्मा से मिलन ही महारास है - परमहंस दाती महाराज

दाती ने बताया कि आत्मा और परमात्मा का मिलन केवल ध्यान योग से ही संभव है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक प्राणी परमात्मा का ही अंश है। परंतु वह परमात्मा से बिछड़ गया है। वह परमात्मा को प्राप्त करने के लिए इधर-उधर भटक रहा है। परमात्मा से मिलने का आनंद सांसारिक पदार्थों में ढ़ूंढ़ रहा है। परंतु इस क्षणभंगुर संसार में उसे शाश्वत परम आनंद नहीं मिल पाता और क्षणभंगुर विषयों के आनंद में मस्त होकर वह अपने परम लक्ष्य को ही भूल जाता है। उन्होंने कहा कि मानव जीवन सत्यकर्म करने के लिए मिला है। कठिन जप, तप, योग और ध्यान के बाद प्रभु कृपा से यह मानव तन प्राप्त हुआ है। अतः प्रभु द्वारा प्रदान किए गए इस मानव जीवन को व्यर्थ न गवाएं। इस तन को व्यर्थ न मिटाएं। इस जीवन को सत्संग, सत्यकर्म, ध्यान एवं योग में लगाएं।

आत्मज्ञानी मनुष्य ईश्वरोन्मुख हो जाता है - परमहंस दाती महाराज

ध्यान योग शिविर को संबोधित करते हुए दाती ने कहा कि आत्मज्ञान हो जाने के बाद सांसारिक जीवन कामोह कम होने लगता है और मनुष्य ईश्वरोन्मुख हो जाता है। यही अध्यात्म है। उन्होंने कहा कि इसके लिए माया और मन दोनों की साधना करनी होगी। मन को अमन करना होगा और इसका ज्ञान एक योग्य सद्गुरुसे प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि सद्गुरु आगे का मार्ग प्रशस् करते हैं। परंतु किसी सद्गुरु से ज्ञान प्राप्तरने के लिए प्रथम आवश्यकता समर्पण की होती है। समर्पण भाव से ही सद्गुरु का प्रसाद शिष्य को मिलताहै। अतः शिष्य को अपना सर्वस्व श्री गुरुदेव के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए।

देशभर से हजारों श्रद्धालुओं का हुआ शुभागमन

ध्यान योग शिविर में देश भर से हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का शुभागमन हो रहा है, जिनमें राजनेता, अधिकारी, पदाधिकारी, उद्योगपति आदि शामिल हैं। इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने ध्यान, योग एवं सद्गुरु का नमन किया साथ ही ज्ञान प्रदान करने के लिए उनका आभार भी जताया। ध्यान योग शिविर में श्रीमहंत श्रद्धापुरी जी महाराज, श्रीमहंत राधेश्यामपुरी जी महाराज, माँ दया, बीके सिंह यादव, नवीन गुप्ता, निशांत भटनागर और नरेश गांधी के अलावा देशभर से पधारे हजारों भक्त, साधक और श्रद्धालु शामिल हुए।

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