(04/01/2017) 
सपा में अंदर-बाहर का खेल- तेज बहादुर सिंह
समाजवादी पार्टी में चल रहा हाईवोल्टेज ड्रामा थमने का नाम नहीं ले रहा है और सपा की सियासत गर्माती चली जा रही है और पार्टी संटक में पड़ती नजर आ रही है ।

दरअसल बात 30 दिसंबर 2016 की है जब पहली बार पार्टी में भूचाल आया जब सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने उ०प्र० के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जिसके बाद पार्टी दो गुटों में बटती दिखाई दी और पार्टी पर अनेक सवाल खड़े होने लगे कि क्या समाजवादी पार्टी टूट जाएगी? क्या अब अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी से अलग हटकर अपनी एक नई पार्टी का गठन करेंगे जिसके साथ वो उ०प्र० चुनाव में उतरेंगे? उधर मुलायम सिंह यादव मुर्दाबाद के नारे अखिलेश समर्थकों द्वारा लगाया जाने लगा जो शायद समाजवादी पार्टी के इतिहास में पहली बार होता नजर आया।इस बीच में जब ऐसा लगने लगा कि पार्टी टूट जाएगी और ऐसे कयास लगाए जाने लगे कि अब समाजवादी पार्टी में बहुत कुछ बड़ा बदलाव देखने को  मिलेगा और अखिलेश यादव की एक नयी पार्टी देखने को मिलेगी । ऐसे समाजवादी पार्टी के संकटमोचक बने आजम खान जिन्होंने नेता जी और अखिलेश के बीच सुलह कराते हुए पार्टी को एक बार फिर से पटरी पर ला खड़ा किया।जिसके बाद शिवपाल यादव सामने आए और यह ऐलान किया कि पार्टी द्वारा अखिलेश और रामगोपाल का निष्कासन रद्द किया जाता है।उनका कहना था कि उन्हें नेताजी के द्वारा आदेश मिला है त्काल प्रभाव से अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव का निष्कासन रद्द किया जाए और अब पार्टी मिलकर ,एकजुट होकर उ०प्र० का चुनाव लड़ेगी। इस बीच जब मामला ठंड़ा पड़ने लगा तो ऐसा लगा कि स्थितियाँ अब धीरे-धीरे सामान्य हो जाएगी लेकिन शायद यह पारिवारिक कलह यही खत्म नहीं होने वाला था और कल की सुबह 01जनवरी ,2017 के नए वर्ष के अवसर पर रामगोपाल यादव ने अपनी आपातकालीन अधिवेशन की बैठक बुलाई जिसका विरोध राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव प्रारम्भ से ही कर रहे थे।इस सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुँचे मंत्रियों,विधायकों और कार्यकर्ताओं को पहले से ही आगाह कर दिया गया था कि यह सम्मेलन पार्टी संविधान के विरुद्ध है और जो इसमें हिस्सा लेगा उस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी इसके बावजूद इस सम्मेलन में भारी संख्या में मंत्री ,विधायक और कार्यकर्ता पहुँचे जिसके बाद सर्वसहमति से तीन महत्वपूर्ण फैसले लिए गये।जिसमें सबसे पहला और बड़ा फैसला ये था कि मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी का मार्गदर्शक नियुक्त कर अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया।दूसरा फैसला शिवपाल यादव को नये साल पर जोरदार झटका देने वाला रहा क्योंकि शिवपाल यादव को समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक पद से बर्खास्त कर दिया और साथ ही साथ अमर सिंह को भी पार्टी से बाहर करने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी। इसी के साथ फिर मामला गर्माने लगा जो अखिलेश और रामगोपाल के निष्कासन को को रद्द करने के बाद ठंडा हो गया था और मुलायम सिंह यादव ने फिर से  कुछ संगीन आरोप लगाते हुए कि कुछ लोग अपने काले कुकृत्यों को छुपाने के लिए भाजपा को फायदा पहुँचा रहे है ऐसा कहते हुए  रामगोपाल यादव को पार्टी से एक बार फिर से 6 साल के लिए बाहर कर दिया।हालांकि रामगोपाल यादव को तीन महीने में तीसरी बार पार्टी से बर्खास्त  किया गया है लेकिन हर बार पार्टी को अपना फैसला वापस लेना पड़ा है क्योंकि रामगोपाल यादव के पास अखिलेश यादव का समर्थन है।लेकिन समाजवादी पार्टी में चल रहा ये समाजवादीे ड्रामा एक बार फिर से अपनी चरम सीमा पर है और अब ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस ड्रामे का अन्त अब अखिलेश यादव की नई पार्टी के गठन के साथ होगा या एक बार फिर कोई संकमोचक बनकर पार्टी को बचा पाएगा????
तेज बहादुर सिंह
स्टूडेंट,
दिल्ली विश्वविद्यालय
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