1.
ईवीएम के साथ छेड़खानी
करने का क्या अर्थ है ?
टैम्परिंग या छेड़खानी का अर्थ है, कंट्रोल यूनिट (सीयू) की
मौजूदा माइक्रो चिप्स पर लिखित साफ्टवेयर प्रोग्राम में बदलाव करना या सीयू में
नई माइक्रो चिप्स इंसर्ट करके दुर्भावनापूर्ण साफ्टवेयर प्रोग्राम शुरू करना और
बैलेट यूनिट में प्रेस की जाने वाली ऐसी ‘कीज़’ बनाना, जो कंट्रोल यूनिट में
वफादारी के साथ परिणाम दर्ज न करती हो।
2.
क्या ईसीआई-ईवीएम को हैक किया जा सकता है?
नहीं।
ईवीएम मशीनों के एम 1 (माडल 1) का विनिर्माण 2006 तक पूरा कर लिया
गया था और कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे दावों के विपरीत एम 1 मशीनों की
सभी अनिवार्य तकनीकी विशेषताओं को ऐसा बनाया गया था, कि उन्हें हैक न किया जा
सके।
2006 में तकनीकी मूल्यांकन समिति की सिफारिशों के आधार पर
2006 के बाद और 2012 तक विनिर्मित ईवीएम के एम 2 माडल में अतिरिक्त सुरक्षा
विशेषता के रूप में एन्क्रिप्टिड फार्म यानी कूट रूप में प्रमुख कोड्स की
डायनामिक कोडिंग शामिल की गई, जिसके फलस्वरूप बैलेट यूनिट से कंट्रोल यूनिट में
की-प्रेस संदेश हस्तांतरित करना संभव हुआ। इसमें प्रत्येक की-प्रेस की रीयल टाइम
सेटिंग भी शामिल है, ताकि तथाकथित दुर्भावनापूर्ण सीक्वेंस की गई की-प्रेस सहित
की-प्रेस की सीक्वेंसिंग का पता लगाया जा सके और रैप्ड किया जा सके।
इसके अतिरिक्त ईसीआई-ईवीएम कम्प्यूटर नियंत्रित नहीं है, वे
स्टैंड अलोन यानी स्वतंत्र मशीनें हैं और वे इंटरनेट और/या किसी अन्य नेटवर्क के
साथ किसी भी समय बिंदु पर कनेक्टिड नहीं हैं। अतः किसी रिमोट डिवाइस के जरिए
उन्हें हैक करने की कोई गुंजाइश नहीं है।
ईसीआई-ईवीएम में वायरलेस या किसी बाहरी हार्डवेयर पोर्ट के
लिए किसी अन्य गैर-ईवीएम एक्सेसरी के साथ कनेक्शन के जरिए कोई फ्रीक्वेंसी
रिसीवर या डेटा के लिए डीकार्डर नहीं है। अतः हार्डवेयर पोर्ट या वायरलेस
या वाईफाई या ब्लूटूथ डिवाइस के जरिए किसी प्रकार की टैम्परिंग या छेड़छाड़ संभव
नहीं है, क्योंकि कंट्रोल यूनिट (सीयू) बैलेट यूनिट (बीयू) से केवल एन्क्रिप्टिड
या डाइनामिकली कोडिड डेटा ही स्वीकार करती है। सीयू द्वारा किसी अन्य प्रकार का
डेटा स्वीकार नहीं किया जा सकता।
3.
क्या विनिर्माताओं द्वारा ईसीआई-ईवीएम में कोई हेराफेरी
(मैनीपुलेशन) की जा सकती है?
संभव नहीं है।
साफ्टवेयर की सुरक्षा के बारे में विनिर्माता के स्तर पर कड़ा
सुरक्षा प्रोटोकोल लागू किया गया है। ये मशीनें 2006 से अलग अलग वर्षों में
विनिर्मित की जा रही हैं। विनिर्माण के बाद ईवीएम को राज्य और किसी राज्य के
भीतर जिले से जिले में भेजा जाता है। विनिर्माता इस स्थिति में नहीं हो सकते कि
वे कई वर्ष पहले यह जान सकें कि कौन सा उम्मीदवार किस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव
लड़ेगा और बैलेट यूनिट में उम्मीदवारों की सीक्वेंस क्या होगी। इतना ही नहीं,
प्रत्येक ईसीआई-ईवीएम का एक सीरियल नम्बर है और निर्वाचन आयोग ईवीएम-ट्रैकिंग
सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके अपने डेटा बेस से यह पता लगा सकता है कि कौन सी मशीन
कहां पर है। अतः विनिर्माण के स्तर पर हेराफेरी की कोई गुंजाइश नहीं है।
4.
क्या सीयू में चिप के भीतर ट्रोजन होर्स को घुसाया जा सकता है?
ईवीएम में वोटिंग की सीक्वेंस निम्नांकित अनुसार ट्रोजन
होर्स के इंजेक्शन की आशंका को समाप्त करती है। निर्वाचन आयोग द्वारा किए गए
कड़े सुरक्षा उपाय फील्ड में ट्रोजन होर्स का प्रवेश असंभव बना देते हैं।
जब कंट्रोल यूनिट में कोई बैलेट की प्रेस की जाती है, तो सीयू,
बीयू को वोट रजिस्टर करने की अनुमति देती है और बीयू में की-प्रेस होने का
इंतजार करती है। इस अवधि के दौरान सीयू में सभी कीज़ उस वोट के कास्ट होने की
समूची सीक्वेंस पूरा होने तक निष्क्रिय हो जाती हैं। किसी मतदाता द्वारा कीज़
(उम्मीदवारों के वोट बटन) में से कोई एक की दबाने के बाद बीयू उस की से संबंधित
जानकारी सीयू को ट्रांसफर करती है। सीयू को डेटा प्राप्त होता है और वह तत्क्षण
बीयू में एलईडी लैंप की चमक के साथ उसकी प्राप्ति स्वीकार करती है। सीयू
में बैलेट को सक्षम करने के बाद केवल ‘प्रथम प्रेस की गई की’ को सीयू द्वारा
सेंस और स्वीकार किया जाता है। इसके बाद, भले ही कोई मतदाता अन्य बटनों को दबाता
रहे, उसका कोई असर नहीं होता, क्योंकि बाद में दबाए गए बटनों के परिणामस्वरूप
सीयू और बीयू के बीच कोई कम्युनिकेशन नहीं होता है और न ही बीयू किसी की-प्रेस
को रजिस्टर करती है। इसे दूसरे शब्दों में इस प्रकार कहा जा सकता है कि सीयू का
इस्तेमाल करके सक्षम किए गए प्रत्येक बैलेट के लिए केवल एक वैध की-प्रेस (प्रथम
की-प्रेस) होता है। एक बार वैध की प्रेस होने (वोटिंग प्रक्रिया पूरी होने) पर
सीयू और बीयू के बीच कोई गतिविधि तब तक नहीं होती, जब तक कि सीयू द्वारा अन्य
बैलेट सक्षम बनाने वाली की प्रेस की व्यवस्था नहीं कर दी जाती। अतः देश में
इस्तेमाल की जा रही इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों में तथाकथित ‘सीक्वेंस्ड की
प्रेसिज़’ यानी ‘सिलसिलेवार बटन दबाने’ के जरिए दुर्भावनापूर्ण संकेत भेजना संभव
नहीं है।
5.
क्या ईसीआई-ईवीएम का पुराना मॉडल अभी भी चलन में है?
ईवीएम मशीनों का एम 1 माडल 2006 में बनाया गया था और पिछली बार
2014 के आम चुनावों में इस्तेमाल किया गया था। 2014 में जिन ईवीएम मशीनों ने 15
वर्ष का जीवनकाल पूरा कर लिया था और एम 1 माडल की ऐसी मशीनें, जो वीवीपीएटी
(वोटर-वेरिफाइड पेपर आडिट ट्रेल) के अनुकूल नहीं थीं, को देखते हुए निर्वाचन
आयोग ने 2006 तक विनिर्मित सभी एम 1 ईवीएम को हटाने का फैसला किया। ईवीएम मशीनों
को हटाने के लिए निर्वाचन आयोग ने एक मानक प्रचालन प्रक्रिया (एसओपी) निर्धारित
की है। ईवीएम और उसके चिप को नष्ट करने की प्रक्रिया को विनिर्माताओं की फैक्टरी
के भीतर राज्य मुख्य निर्वाचन अधिकारी या उसके प्रतिनिधि की मौजूदगी में अंजाम
दिया जाता है।
6.
क्या ईसीआई-ईवीएम के साथ भौतिक रूप से छेड़छाड़ की जा सकती है या
बिना किसी के ध्यान में आए उनके संघटकों को बदला जा सकता है?
ईसीआई-ईवीएम के पुराने मॉडलों एम1 एवं एम2 में विद्यमान सुरक्षा
विशेषताओं के अतिरिक्त 2013 के बाद बनाई गई नई एम3 ईवीएम में टेम्पर
डिटेक्शन एवं सेल्फ डाइगनोस्टिक्स जैसी अतिरिक्त विशेषताएं हैं। टेम्पर डिटेक्शन विशेषता के कारण
जैसे ही कोई व्यक्ति मशीन खोलने का प्रयास करता है, ईवीएम निष्क्रिय हो जाता
है। सेल्फ
डाइगनोस्टिक्स विशेषता
के कारण जब भी ईवीएम मशीन को स्विच ऑन किया जाता है, यह पूरी तरह मशीन की जांच
करता है। इसके हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर में किसी भी परिवर्तन का इससे पता लग
जाएगा।
उपरोक्त विशेषताओं के साथ नये मॉडल एम3 का एक प्रोटोटाइप जल्द ही
तैयार हो जाएगा। एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति इसकी जांच करेगी और फिर निर्माण आरंभ
हो जाएगा। उपरोक्त अतिरिक्त विशेषताओं एवं नई प्रौद्योगिकीय उन्नतियों के साथ
एम3 ईवीएम की खरीद के लिए सरकार द्वारा लगभग 2000 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
7.
. ईसीआई-ईवीएम को छेड़खानी मुक्त बनाने के लिए नवीनतम
प्रौद्योगिकीय विशेषताएं क्या हैं?
ईसीआई-ईवीएम मशीन को 100 प्रतिशत छेड़खानी मुक्त
बनाने के लिए कई अन्य कदमों के अलावा वन टाइम प्रोग्रामेबल (ओटीपी)
माइक्रोकंट्रोलर्स, की कोड्स की गतिशील कोडिंग, प्रत्येक की प्रेस की तिथि एवं
समय की स्टाम्पिंग, उन्नत इनक्रिप्शन प्रौद्योगिकी एवं ईवीएम लॉजिस्टिक्स के
संचालन के लिए ईवीएम ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर जैसी सर्वाधिक परिष्कृत प्रौद्योगिकीय
विशेषताओं का उपयोग करती है। इसके अतिरिक्त, नये मॉडल एम3 ईवीएम में टेम्पर डिटेक्शन एवं
सेल्फ डाइगनोस्टिक्स जैसी अतिरिक्त विशेषताएं भी हैं। चूंकि, सॉफ्टवेयर ओटीपी
पर आधारित है, प्रोग्राम को न तो बदला जा सकता है, न ही इसे रि-राइट या रि-रेड
ही किया जा सकता है। इस प्रकार यह ईवीएम को छेड़खानी मुक्त बना देता है। अगर
कोई इसकी कोशिश करता भी है तो मशीन निष्क्रिय बन जाएगी।
8.
क्या
इसीआई-ईवीएम विदेशी प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं?
इस प्रकार की गलत सूचना एवं जैसा कि कुछ लोग आरोप लगाते हैं, के
विपरीत भारत विदेशों में बने किसी ईवीएम का उपयोग नहीं करता। ईवीएम का निर्माण
स्वदेशी तरीके से सार्वजनिक क्षेत्र की दो कंपनियों यथा-भारत इलेक्ट्रोनिक्स
लिमिटेड, बेंगलुरु एवं इलेक्ट्रोनिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद
द्वारा किया जाता है। सॉफ्टवेयर प्रोग्राम कोड इन दोनों कंपनियों द्वारा आंतरिक
तरीके से तैयार किया जाता है न कि उन्हें आउटसोर्स किया जाता है। ये सुरक्षा के
सर्वोच्च मानकों का अनुपालन करने और उन्हें बनाए रखने के लिए फैक्ट्री स्तर
पर सुरक्षा प्रक्रियाओं के विषय होते हैं। प्रोग्राम को मशीन कोड में रुपांतरित किया जाता है और उसके बाद ही विदेशों
के चिप मैन्युफैक्चर्र को दिया जाता है, क्योंकि हमारे पास देश के भीतर
सेमीकंडक्टर माइक्रोचिप निर्माण करने की क्षमता नहीं है।
प्रत्येक माइक्रोचिप के पास मेमोरी में सन्निहित एक पहचान संख्या
होती है और उन पर निर्माताओं के डिजिटल हस्ताक्षर होते हैं। इसलिए,उनके
विस्थापन का कोई प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि माइक्रोचिप्स सॉफ्टवेयर से
संबंधित क्रियात्मक परीक्षणों के के विषय होते हैं। माइक्रोचिप को विस्थापित
करने की किसी भी कोशिश का पता लगाया जा सकता है और ईवीएम को निष्क्रिय बनाया जा
सकता है। इस प्रकार, वर्तमान प्रोग्राम को परिवर्तित करने एवं नया प्रोग्राम
लागू करने, दोनों का ही पता लगाया जा सकता है जिसके बाद ईवीएम को निष्क्रिय
बनाया जा सकता है।
9.
भंडारण
के स्थान पर हेरफेर किए जाने की कितनी आशंका हैं ?
जिला मुख्यालय में ईवीएम को उपयुक्त सुरक्षा के तहत एक दोहरे ताले
वाली प्रणाली में रखा जाता है। उनकी
सुरक्षा की समय-समय पर जांच की जाती है। अधिकारी स्ट्रॉंग रूम को नहीं खोलते
हैं, लेकिन वे इसकी जांच करते हैं कि ये पूरी तरह सुरक्षित है या नहीं और क्या
ताला समुचित अवस्था में है या नहीं। किसी भी अनधिकृत व्यक्ति को किसी भी
स्थिति में ईवीएम के पास जाने की अनुमति नहीं होती। जब चुनाव का समय नहीं होता है, इस अवधि के
दौरान, सभी ईवीएम का वार्षिक भौतिक सत्यापन डीईओ द्वारा किया जाता है और ईसीआई
को रिपोर्ट भेजी जाती है। निरीक्षण एवं जांच का कार्य अभी हाल ही में संपन्न
किया गया है।
10.
स्थानीय निकाय चुनावों में ईवीएम के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप
किस हद तक सही हैंं?
न्यायाधिकार क्षेत्र के बारे में जानकारी के अभाव के कारण
इस संबंध में गलतफहमी है। नगरपालिका निकायों या पंचायत चुनावों जैसे ग्रामीण
निकायों के चुनावों के मामले में उपयोग में लाए गए ईवीएम भारत के चुनाव आयोग के
नहीं होते। स्थानीय निकाय चुनावों से ऊपर के चुनाव राज्य चुनाव आयोग (एसईसी)
के अधिकार क्षेत्र के तहत आते हैं, जो अपनी खुद की मशीने खरीदते हैं और उनकी
अपनी संचालन प्रणाली होती है। भारत का चुनाव आयोग उपरोक्त चुनावों में एसईसी
द्वारा उपयोग में लाए गए ईवीएम के कामकाज के लिए जिम्मेदार नहीं है।
11.
ईसीआई–ईवीएम
के साथ छेड़छाड़ न हो सके, यह सुनिश्चित करने के लिए सतत जांच एवं निगरानी के
विभिन्न स्तर कौन से हैं?
·
प्रथम स्तर जांच : बीईएल/ ईसीआईएल के इंजीनियर प्रत्येक ईवीएम की
तकनीकी एवं भौतिक जांच के बाद संघटकों की मौलिकता को प्रमाणित करते हैं, जो कि राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के समक्ष
किया जाता है। त्रुटिपूर्ण ईवीएम को वापस फैक्ट्री में भेज दिया जाता है। एफएलसी
हॉल को साफ-सुथरा बनाया जाता है, प्रवेश को प्रबंधित किया जाता है एवं अंदर किसी
भी कैमरा, मोबाइल फोन या स्पाई पेन लाने की अनुमति नहीं दी जाती है। राजनीतिक
दलों के प्रतिनिधियों के द्वारा औचक रूप से चुने गए 5 प्रतिशत ईवीएम पर न्यूनतम
1000 मतों का एक कृत्रिम मतदान किया जाता है और उनके सामने इसका परिणाम
प्रदर्शित किया जाता है। पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जाती है।
·
यादृच्छिकीकरण (रैंडोमाइजेशन) : किसी विधान सभा और बाद में किसी मतदान केंद्र को
आवंटित किए जाने के समय ईवीएम की दो बार बेतरतीब तरीके से (यादृच्छिक) जांच की
जाती है जिससे किसी निर्धारित आवंटन की संभावना खत्म हो जाए। मतदान प्रारंभ
होने से पहले, चुनाव वाले दिन उम्मीदवारों के मतदान एजेंटों के समक्ष मतदान
केंद्रों पर कृत्रिम मतदान का संचालन किया जाता है। मतदान के बाद ईवीएम को सील
किया जाता है और मतदान एजेंट सील पर अपने हस्ताक्षर करते हैं। मतदान एजेंट
परिवहन के दौरान स्ट्रॉंग रूम तक जा सकते हैं।
·
स्ट्रॉंग रूम : उम्मीदवार या उनके प्रतिनिधि स्ट्रॉंग रूम पर अपने खुद के सील
लगा सकते हैं, जहां मतदान के बाद मतदान किए हुए ईवीएम का भंडारण किया जाता है और
वे स्ट्रॉग रूम के सामने शिविर भी लगा सकते हैं। इन स्ट्रॉंग रूम की सुरक्षा
24 घंटे बहुस्तरीय तरीके से की जाती है।
·
मतगणना केंद्र : मतदान किए हुए ईवीएम को मतगणना केंद्रों पर लाया जाता है और मतगणना
आरंभ होने से पहले उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों के समक्ष सीलों और सीयू की
विशिष्ट पहचान प्रदर्शित की जाती है।
12.
क्या हेरफेर किए गए किसी ईवीएम को बिना किसी की
जानकारी के मतदान प्रक्रिया में पुन: शामिल किया जा सकता है?
इसका प्रश्न ही नहीं उठता।
ईसीआई द्वारा ईवीएम को छेड़छाड़ मुक्त बनाने के लिए उठाए गए सतत
जांच एवं निगरानी के ठोस कदमों की उपरोक्त श्रृंखला को देखते हुए, यह स्पष्ट
है कि न तो मशीनों के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है और न ही त्रृटिपूर्ण मशीनों
को किसी भी समय मतदान प्रक्रिया में फिर से शामिल ही किया जा सकता है क्योंकि
गैर ईसीआई-ईवीएम का उपरोक्त प्रक्रिया और बीयू एवं सीयू से बेमेल होने के कारण
उनका पता लगा लिया जाएगा। कड़ी जांचों एवं परीक्षणों के विभिन्न स्तरों के
कारण न तो ईसीआई-ईवीएम ईसीआई प्रणाली को छोड़ सकता है और न ही कोई बाहरी मशीन
(गैर- ईसीआई-ईवीएम) को इस प्रणाली में शामिल किया जा सकता है।
13.
अमेरिका एवं यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों ने ईवीएम को क्यों
नहीं अपनाया है और कुछ देशों ने यह प्रणाली क्यों त्याग दी है?
कुछ देशों ने अतीत में इलेक्ट्रोनिक मतदान के साथ प्रयोग किया है।
इन देशों में मशीनों के साथ समस्या यह थी कि वे कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित थे
एवं नेटवर्क से जुड़े थे, जिसके कारण उनमें हैकिंग किए जाने की आशंका थी जिससे
इसका उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता था। इसके अतिरिक्त, उनकी सुरक्षा, हिफाजत एवं
संरक्षण से संबंधित कानूनों एवं विनियमनों में पर्याप्त सुरक्षा के उपायों की
कमी थी। कुछ देशों में अदालतों ने केवल इन्हीं कानूनी आधारों की वजह से ईवीएम
के उपयोग को स्थगित कर दिया।
भारतीय ईवीएम एक स्वतंत्र प्रणाली है जबकि अमेरिका, नीदरलैंड,
आयरलैंड एवं जर्मनी के पास प्रत्यक्ष रिकार्डिंग मशीने थीं। भारत ने हालांकि
आंशिक रूप से ही सही, कागज लेखा परीक्षा निशान (पेपर ऑडिट ट्रेल) लागू किया है।
दूसरे देशों के पास लेखा परीक्षण निशान नहीं थे। उपरोक्त सभी देशों में मतदान
के दौरान सोर्स कोड को बंद कर दिया जाता है। भारत के पास भी मेमोरी से जुड़े क्लोज्ड
सोर्स और ओटीपी है।
दूसरी तरफ, ईसीआई-ईवीएम स्वतंत्र उपकरण है, जो किसी भी नेटवर्क से
नहीं जुड़े हैं और इसलिए भारत में व्यक्तिगत रूप से किसी के लिए भी 1.4 मिलियन
मशीनों के साथ छेड़छाड़ करना असंभव है। मतदान के दौरान देश में पहले होने वाली
चुनावी हिंसा एवं फर्जी मतदान, बूथ कैप्चरिंग आदि जैसी अन्य चुनाव संबंधी गलत
प्रचलनों को देखते हुए ईवीएम भारत के लिए सर्वाधिक अनुकूल हैं।
उल्लेखनीय है कि जर्मनी, आयरलैंड एवं नीदरलैंड जैसे देशों के
विपरीत भारतीय कानूनों एवं ईसीआई विनियमनों में ईवीएम की सुरक्षा एवं हिफाजत के
लिए पर्याप्त अंतर्निहित सुरक्षोपाय हैं। इसके अतिरिक्त, सुरक्षित
प्रौद्योगिकीय विशेषताओं के कारण भारतीय ईवीएम बहुत उत्कृष्ट श्रेणी के हैं।
भारतीय ईवीएम इस वजह से भी विशिष्ट हैं क्योंकि मतदाताओं के लिए पूरी
प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए चरणबद्ध तरीके से ईवीएम में वीवीपीएटी का भी
उपयोग होने जा रहा है।
नीदरलैंड के मामले में, मशीनों के भंडारण, परिवहन एवं सुरक्षा को
लेकर नियमों का अभाव था। नीदरलैंड में बनी मशीनों का उपयोग आयरलैंड एवं जर्मनी
में भी किया जाता था। 2005 के एक फैसले में जर्मनी के न्यायालय ने चुनाव की
सार्वजनिक प्रकृति एवं मूलभूत कानून के विशेषाधिकार के उल्लंघन के आधार पर
मतदान उपकरण अध्यादेश को असंवैधानिक पाया। इसलिए इन देशों ने नीदरलैंड में बनी
मशीनों के उपयोग को बंद कर दिया। आज भी अमेरिका समेत कई देश मतदान के लिए मशीनों
का उपयोग कर रहे हैं।
ईसीआई-ईवीएम बुनियादी रूप से मतदान मशीनों एवं विदेशों में अपनाई
गई प्रक्रियाओं से अलग है। किसी अन्य देश की कंप्यूटर नियंत्रित, ऑपरेटिंग
सिस्टम आधारित मशीनों के साथ कोई भी तुलना गलत होगी और उसकी समानता ईसीआई-ईवीएम
के साथ नहीं की जा सकती।
14.
वीवीपीएटी सक्षम मशीनों की क्या स्थिति है?
ईसीआई ने मतदाता सत्यापित कागज लेखा परीक्षा निशान (वीवीपीएटी) का
उपयोग करते हुए 107 विधानसभा क्षेत्रों एवं 9 लोकसभा चुनाव क्षेत्रों में
चुनावों का संचालन किया है। वीवीपीएटी के साथ-साथ एम2 एवं नई पीढ़ी एम3 ईवीएम का
उपयोग मतदाताओं के भरोसे एवं पारदर्शिता को बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक
योजना है।
|