(14/04/2017) 
श्रम कानून एवं वर्तमान
श्रम कानून से आशय देश में निर्मित उन नियमों व कानूनों से है जिनके द्वारा उद्योगों, कारखानों व मीलों में कार्यरत श्रमिकों के हितों को ध्यान में रखते हुए श्रमिकों के लिए संविधान में नए कानून बनाए जाते है व उनमें संशोधन किए जाते है।इस प्रकार के कानूनों को लागू करने की जरुरत इसलिए हुई क्योकि इन अधिनियमों के लागू ना होने से पहले उद्योगपत्ति व मालिक वर्ग उनके उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों का शोषण किया करते थे व सरकार द्वारा निर्धारित काम करने की समय सीमा से अधिक काम उनके द्वारा करवाया जाता था।

साथ ही साथ अमानवीय व प्रतिकूल परिस्थितियों में उनसे श्रम करवाया जाता था जिसमे श्रमिक यदि कुछ समय तक खूब मेहनत कर अपनी जीवन परिस्थितियों को सुधारने का प्रयास करते है तो उन मेहनतपुर्ण श्रम समय के कारण उन्हें भविष्य में ऐसे रोगों का सामना करना पडता है जो या तो मृत्यु शैय्या तक पहुँचाने वाले होते है या जीवनभर रोगग्रस्त रहते हुए मौत से हर समय बचाव के लिए उपचार लायक होते है। मालिकों द्वारा कम वेतन, कठिन परिश्रम, अमानवीय परिस्थितियों में काम व अनेकों बीमारियों से घिर जाने के भय के कारण इस प्रकार का कानून बनाना अत्ति आवश्यक है व इनमें संशोधन होना भी अनिवार्य है।

श्रम कानून में सम्मिलित अधिनियम निम्नलिखित है:-

मजदूरी संदाय अधिनियम - 1936
केन्द्र सरकार रेलवे, खदान-तेल क्षेत्रों, वायु, परिवहन एवं महत्वपूर्ण बन्दरगाहो के प्रतिष्ठानों के संबंध में अधिनियम के अर्न्तगत उपयुक्त सरकार है। प्रत्येक नियोक्ता रेलवे (कारखानों को छोडकर) को मजदूरी के भुगतान के लिए जिम्मेदार है, यदि नियोक्ता रेलवे प्रशासन है और रेलवे प्रशासन ने संबंधित स्थानीय क्षेत्र के लिए इसके लिए किसी व्यक्ति को नामित किया है। नियोक्ता श्रमिकों द्वारा कमाई मजदूरी को रोक नहीं सकते हैं और ना ही वे कोई अनधिकृत कटौती कर सकते हैं। 
मजदूरी की अवधि के अन्तिम दिन के बाद आखिरी दिन समाप्त होने से पूर्व भुगतान अवश्य किया जाना चाहिए। जुर्माना केवल उन कृत्यों अथवा विलोपों के लिए नहीं लगाया जा सकता है जिन्हें उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित कर दिया गया है और जुर्माना देय मजदूरी के तीन प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए । 
यदि मजदूरी के भुगतान में विलम्ब होता है अथवा गलत कटौतियाँ की जाती हैं तो श्रमिक अथवा उनके मजदूर संघों द्वारा पीडब्ल्यू अधिनियम के अन्तर्गत प्राधिकारी के समक्ष दावा दायर कर सकते हैं और प्राधिकारी के आदेश के विरूद्ध अपील दायर की जा सकती है।वर्तमान समय में 18,000 प्रति माह तक वेतन लेने वाले कर्मचारी इस अधिनियम के अर्न्तगत शामिल हैं।

न्यूनतम मजदूरी अधिनियम - 1948
यह अधिनियम सरकार को विनिर्दिष्ट रोजगारों में कार्य कर रहे कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने के लिए प्राधिकृत करता है। इसमें उपयुक्त अन्तरालों और अधिकतम पाँच वर्षो के अन्तराल पर पहले से निर्धारित न्यूनतम मजदूरियों की समीक्षा करने तथा उनमें संशोधन करने का प्रावधान है।
केन्द्र सरकार अपने प्राधिकरण द्वारा अथवा इसके अर्न्तगत चलाए जा रहे किसी अनुसूचित रोजगार के लिए अथवा रेलवे प्रशासन में अथवा खदानों,तेल क्षेत्रों अथवा बडे बन्दरगाहों अथवा केन्द्रीय अधिनियम के अर्न्तगत स्थापित किसी निगम के संबंध में उपयुक्त एजेन्सी है। अन्य अनुसूचित रोजगार के संबंध में राज्य सरकारें उपयुक्त सरकार हैं। केन्द्र सरकार का भवन एवं निर्माण कार्यकलापों जो अधिकतर केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग, रक्षा मंत्रालय आदि द्वारा संचालित किए जाते हैं, में तथा रक्षा एवं कृषि मंत्रालयों के अर्न्तगत कृषि फार्मो के साथ सीमित संबंध है। अधिकतर ऐसे रोजगार राज्य क्षेत्रों के अर्न्तगत आते हैं और उनके द्वारा ही मजदूरी निर्धारित/संशोधित करना तथा उनके अपने क्षेत्रों के अर्न्तगत आने वाले अनुसूचित रोजगार के संबंध में उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करना अपेक्षित होता है।

केन्द्रीय क्षेत्र में न्यूनतम मजदूरी का प्रवर्तन केन्द्रीय औद्योगिक संबंध तंत्र(सी आई आर एम) के जरिए सुनिश्चित किया जाता है। केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय क्षेत्र के अर्न्तगत 40 अनुसूचित रोजगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी अधिनियम,1948 के अर्न्तगत न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की है। मुख्य श्रमायुक्त छ महीने के अन्तराल पर अर्थात् 1 अप्रैल और 1 अक्तूबर के प्रभाव से इसकी समीक्षा करने वाला वी डी ए है।

मातृत्व लाभ अधिनियम 1961
मातृत्व के समय महिला के रोजगार की रक्षा करता है और मातृत्व लाभ का हकदार बनाता है- अर्थात अपने बच्चे की देखभाल के लिए पूरे भुगतान के साथ उसे काम से अनुपस्थित रहने की सुविधा देता है। यह अधिनियम दस या उससे अधिक व्यक्तियों के रोजगार वाले सभी प्रतिष्ठानों पर लागू है। ये संशोधन संगठित क्षेत्र के लगभग 1.8 मिलियन महिला श्रमबल के लिए मददगार साबित होंगे।

बाल श्रम अधिनियम 1986
यह अधिनियम खतरनाक पेशों और प्रक्रियाओं में बच्चों के रोजगार को प्रतिबंधित करता है और अन्य क्षेत्रों में उनके रोजगार को विनियमित करता है।
केन्द्र सरकार के नियंत्रण में जो प्रतिष्ठान अथवा रेलवे प्रशासन अथवा बडे बन्दरगाह अथवा खान अथवा तेल क्षेत्र के संबंध में उपयुक्त सरकार है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने रिट् याचिका (सिविल) संख्या 465/86 में दिनांक 10.12.1996 के अपने निर्णय में कतिपय निर्देश दिया है कि किस प्रकार खतरनाक रोजगार में कार्य कर रहे बच्चों को ऐसे रोजगारों से निकाला जाए और उन्हें पुनर्स्थापित किया जाए। उच्चतम न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्देशों में से एक बाल श्रम के सर्वेक्षण संचालन से संबंधित है। सर्वेक्षण कराने का मुद्दा केन्द्रीय श्रम मंत्री की अध्यक्षता में दिनांक 22.01.1997 को नई दिल्ली में आयोजित सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के श्रम मत्रियों, श्रम सचिवों एवं श्रम आयुक्त के सम्मेलन में विचार विमर्श के लिए आया। सम्मेलन में विचार विमर्श के बाद श्रम मंत्री द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय को कार्यान्वित करने हेतु राज्य सरकारों के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं।

इन अधिनियमों के अलावा बोनस संदाय अधिनियम - 1965, समान पारिश्रमिक अधिनियम -1976, अन्र्तराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम - 1979, रेलवे कर्मचारी नियमावली -2005 इत्यादि कानून भी श्रम कानून के अंतर्गत सम्मिलित किए जाते है।

व इन नियमों की आवश्यकता हमें उस समय तक रहेगी जब तक उद्योग जगत व श्रमिक वर्ग कार्यरत है क्योकि यदि इन नियमों को हटा दिया जाए तो पूंजीपति मालिक वर्ग श्रमिक वर्ग का शोषण करना प्रारंभ कर देगा और उसे कभी भी अपना जीवन जीने का अधिकार नही देगा।

कोमल शर्मा
समाचार वार्ता


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