(06/05/2017) 
सभी रस्मों के साथ महिलाओं द्वारा करवा एक नई परम्परा की शुरूआत..
नई दिल्ली,सभी रस्मों के साथ अमृतधारी नामधारी महिलाओं द्वारा विवाह (आनन्द कारज) करवा एक नई परम्परा की शुरूआत..

नई दिल्ली, मई 2017, नामधारी सिख, सिखों की ही एक सम्प्रदाय है। इस सम्प्रदाय ने सिख धर्म में समाज सुधार के लिए बहुत प्रगतिशील व समाज सुधारक नई परम्परायें प्रारम्भ की हैं। उन्हीं में से एक परम्परा सिखों में आनंद मर्यादा की शुरूआत है। क्योंकि इतिहास में लिखा है सभी सिख गुरूओं के विवाह वेद रीति से पंडितों ने किए थे। सतगुरू राम सिंघ जी ने सर्वप्रथम गुरूवाणी में से ‘लावाँ’ पढ़कर जून 1863 ई. में गांव खोटे, ज़िला फिरोज़पुर में 6 जोड़ियों के अंतरजातिय विवाह करके सिखों में विवाह (आनंद कारज) की रीति शुरू करवाई थी। उन्होंने बाल विवाह बंद करके 16 साल से ऊपर लड़की व 18 साल से ऊपर लड़के का विवाह विधान किया।

सबसे पहले स्त्रियों को सतगुरू राम सिंघ जी ने ही गांव सिआड़, जिला लुधियाणा में ‘‘खंडे का अमृत’’ तथा ‘‘कछहरे’’ देकर, उच्चता प्रदान की थी। विधवाओं के विवाह अनिवार्य करावाए, सति प्रथा को बंद किया।

उन्हीं की दिखाए मार्ग पर चलते हुए उनके वर्तमान गद्दी नशीन तथा वंशज सतगुरू दलीप सिंघ जी ने हाल ही में दिल्ली के मानसरोवर गार्डन में अमृतधारी नामधारी महिलाओं द्वारा विवाह (आनन्द कारज) करवा कर एक नई परम्परा की शुरूआत की। जिसमें प्रारम्भ से लेकर अंत तक सभी रस्में अमृतधारी नामधारी महिलाओं द्वारा की गई।

आद तथा दसम बाणीयों का पाठ करके 7 अमृतधारी महिलाओं ने ह्वन किया। इसके उपरांत 2 अमृतधारी महिलाओं ने वर तथा वधु को खंडे का ‘‘अमृत पान’’ करवाया। लड़के-लड़की को कान में गुरमंत्र भी महिला ने ही दिया। फिर एक महिला ने वर तथा वधु के पल्ले में 1.25 रू रख कर गाँठ बाँधी। यह सभी रस्में पूरी करने के उपरांत गुरूबाणी में से चार लावाँ का पाठ किया गया और वर तथा वधु ने हवन कुंड के 4 फेरे (भंवर) लिए। इस प्रकार से विवाह की हर रस्म अमृतधारी नामधारी महिलाओं ने पूरी की। इस विवाह की एक विशेषता यह भी थी की यह एक अंतरजातीय विवाह था। जिसमें लड़की जट सिख के परिवार की थी और लड़का सिख परिवार का था। अंतरजातीय विवाह करने में भी नामधारी अग्रणी हैं।

अब तक हमारे पुरूष प्रधान समाज में पुरूष ही महिलाओं को अमृत छकाते थे यह पहली बार हुआ है कि वर या किसी अन्य पुरूष को भी किसी महिला ने अमृत छकाया है, लड़की को कान में गुरमंत्र भी महिला ने ही दिया। इस मौके पर अमृतधारी नामधारी सभी महिलाओं ने बिना कड़ाई के सफेद वस्त्र पहने थे और बड़ी (3 फुटी) किरपानें पहनी थीं और यह दृश्य देखने लायक था।

सतगुरू दलीप सिंघ जी महिलाओं को पूर्ण सत्कार देकर हर क्षेत्र में विकास के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

महिलाओं को समाज में उच्च स्थान देने हेतु यह एक विलक्षण तथा क्रांतिकारी कदम नामधारी सिखों द्वारा उठाया गया है। संसार में पहले कभी भी ऐसा नहीं हुआ जहां महिलाओं द्वारा विवाह (आनन्द कारज) की समस्त रस्में अदा की गई हों।

नामधारी सिख हवन करके अग्नी के चौफेरे वर तथा वधु जोड़े को फेरे (भंवर) देते हैं। हवन करना तथा अग्नि के चौफेरे भंवर लेने के इस कार्य को कुछ लोग हिन्दू प्रथा मानकर उसको गलत कहते हैं। गलत कहने वाले यह विचार नहीं करते कि लावाँ पढ़नीयाँ तथा भंवर लेने (चाहे वह किसी भी वस्तु के चौफेरे हों) भी तो हिन्दू प्रथा है। पहली लाँव में स्पष्ट लिखा है ‘‘बाणी ब्रह्मा वेदु धरमु द्वड़हु पाप तजाइआ बलि राम जीउ’’। इस पंक्ति में ब्रह्मा जी द्वारा वेदों में लिखे धर्म की पुष्टि की गई है। ‘‘ब्रह्मा जी और वेद’’ वह नाम हैं जिनको हिन्दू कहा जाता है। इसलिए हिन्दुओं की हर प्रथा को छोड़ना संभव नहीं है।
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