राष्ट्रीय (29/07/2015) 
चिकित्सा के अभाव में गरीब आदमी तडफ़- तडफ़ कर मरने को मजबूर
कैथल:- केन्द्र व राज्य सरकारें बेशक से गरीब व्यक्तियों का मुक्त चिकित्सा सेवा देने के दावे करती हो, परन्तु ये दावे हकीकत से कोसों दूर है। चिकित्सा के अभाव में गरीब आदमी तडफ़- तडफ़ कर मरने को मजबूर है। सरकार के द्वारा इसके लिये खोले गये प्रधानमंत्री राहत कोष व मुख्यमंत्री राहत कोष शायद गरीबों को राहत देने की बजाये मंत्रियों, नेताओं व अमीर व्यक्तियों के काम ही आते है। जिसका जीता जागता उदाहरण राष्ट्रीय अवार्ड विजेता श्याम सुन्दर पाई है। इसके अलावा गरीबी में लगी बड़ी बीमारी से थक हार कर इलाज के अभाव में ज्ञान चन्द आदि पता नही कितने मौत की गोद में चले गये।   श्याम सुन्दर कभी अपनी आवाज के जादू के दम पर लोगों के दिल पर राज करता था, लेकिन अब पिछले एक साल से गले के कैंसर के रोग से पीडि़त है। गरीबी इस राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित श्याम सुंदर की दुश्मन बन चुकी है और हालत यह बने हुए कि इलाज करवाने के लिए पीडि़त के पास पैसे नहीं है। ऐसा नहीं है कि अपनी दयनीय हालत व इलाज के लिए श्याम सुंदर ने सरकार व प्रशासन से कोई गुहार ना लगाई हो, लेकिन उसकी आवाज सरकार व अधिकारियों के कानों तक पहुंच ही नहीं रही है। पीडि़त कलाकार सही समय पर इलाज ना होने के कारण अपने जीवन को नारकीय रूप में जीने पर विवश है। पीडि़त का कैथल सरकारी अस्पताल में इलाज चल रहा है और यहां के चिकित्सयों ने उसे पी.जी.आई. रोहतक इलाज करवाने की सलाह दी थी, लेकिन रोहतक जाने के लिए पीडि़त के पास किराए की राशि ही नहीं है तो इलाज करवाना तो दूर की बात है। पीडि़त ने प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन से गुहार लगाई है कि उसे इलाज के लिए आर्थिक सहायता मुहैया करवाई जाए, ताकि समय पर अपना इलाज करवा सके। 

राष्ट्रीय पुरस्कार के बाद भी नहीं बदली हालत
गांव पाई निवासी श्याम सुंदर वर्ष 1997 से अपनी अवाज के माध्यम से विभिन्न प्रकार के पशु, पक्षियों व वहानों की आवज निकाल लोगों का मनोरंजन किया करता था और लोगों के सिर उसकी आवाज का जादू चढ़कर बोलता था। श्याम सुंदर की सफलता का आलम यह था कि एस.एम. बैंड रेडियों शिमला व कुरुक्षेत्र में अपनी अवाज के माध्यम से लाखों लोगों का मनोरंजन करते थे और इसके बदले में मामूली कमाई दी जाती थी, लेकिन श्याम सुंदर को तालियों की गंूज में नामात्र कमाई मिलने पर भी कोई मलाल नहीं था। विभिन्न आवाजों के साथ गले व नाक से राष्ट्रीय गान की धुन निकालने में भी माहरत हासिल थी। इसी अवाज के दम पर 25-7-1997 में राष्ट्रीय पुस्कार से श्याम सुंदर को सम्मानित किया गया था और आशा की किरन दिखाई दी थी कि अब गरीबी के दिन दूर होंगे, लेकिन बदकिस्मती शायद श्याम सुंदर का साथ छोडऩे का तैयार हीं नहीं थी। 

घर में दो वक्त की रोटी के पड़े लाले 
कैथल के सरकारी अस्पताल में अपना इलाज करवा रहे श्याम सुंदर ने बताया कि उसके घर की हालत काफी खस्ता हो चुकी है और घर में खाने के लाले पड़े हुए है। उसकी पत्नी दिन रात मजदूरी करके परिवार को काफी कठिनाईयों से गुजर-बसर कर रही है। लेकिन सरकार व प्रशासन उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है। घर की हालत भी काफी दयनीय है और काफी स्थानों से टूटा हुआ है। उसने बताया कि अब डाक्टरों ने इलाज पी.जी.आई. रोहतक से करवाने का कहां, ताकि समय पर बीमारी काबू आ सके, लेकिन इलाज तो दूर की बात रोहतक जाने के लिए किराया भी नहीं है। उसने बताया कि उसे इस बात का जीवन भर मलाल रहेगा कि कैंसर होने से पूर्व कैथल प्रशासनिक अधिकारियों से आर्थिक सहायता की गुहार भी लगाई थी, लेकिन कोरे आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं मिला था। मात्र सरकारी कार्यालयों के चक्कर ही काटता रहा। गरीब की बीमारी के इलाज का खर्च लाखों में और भूल कर सरकारी सहायता मिलती है हजारों में गरीब व्यक्ति जब सरकारी कोष से अपना इलाज करवाने की सहायता मांगता है तो उसको मामूली रकम थमा दी जाती है और वह भी उस समय जब सहायता मांगने वाला मौत की गोद में चला जाता है। विदित रहे कि एक गरीब व्यक्ति ज्ञान चन्द ने सरकार से सहायता मांगी थी। उसके इलाज पर लगभग चार लाख रुपये का खर्चा आना था। सहायता मांगने की फाइल एक महीना कैथल में ही घूमती रही। उसके बाद प्रधान मंत्री के पास भेजी गई। वहां से दो महीने के बाद सहायता राशि मंजूर होकर आई सिर्फ 30 हजार और वो भी उसकी मृत्यु के बाद।  मृत्यु के बाद वह भी वापस चली गई।  इस प्रकार सरकार के द्वारा गठित राहत कोषों से गरीब व्यक्तियों को राहत मिलती है। अब यदि सरकार से जाना जाये कि यदि ज्ञान जीवित होता तो वह अपने इलाज का बाकी का पौने चार लाख कहा से लाता। सरकार को चाहिये कि ऐसी हालत में गरीब का इलाज बिना देर किये सीधे तौर पर हो और उसका सारा बिल सरकार वाहन करे।
राजकुमार अग्रवाल 
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