राष्ट्रीय (25/02/2016)
इक्कीस वीं सदी में परचम एक नया है
इक्कीस वीं सदी में परचम एक नया है, दुनियां की नज़रों में भारत आगे बड़ रहा है। दोस्तों से दोस्ती और दुश्मनों से लड़ रहा है। अपने हुनर के दमखम से यह तरक्की कर रहा है। अलग बात है यह भले ही आज पहुंच गया है चाँद तक, मगर यह भी सच है की फिरंगियों के चाबुक सहे हैं सिद्दतों तक। उस मुसीबतों के दौर में मदत को पडोसी देश आया न पास तक, अलग बात है यह भले ही आज पहुंचा गया है चाँद तक। उस दौर को बदलने भारत माँ ने सपूतों को जन्म दिया, माँ की इज्जत का उन सपूतों ने सम्मान किया। एक से बढ़कर लाखों का अलख जगा, तब फिरंगियों को भगाने सभाओं का दौर चला। उस महा युध्ध में चार चार गोरों पर एक ही शेर भारी पड़ा, तब उस रणभूमि से योद्धाओं के रक्त का झरना निकल पड़ा। भयवीत हो गए फिरंगी जब जोश में हर धड़ भी लड़ पड़ा। भारत माँ के वीरों की ताकत का जब गोरों को अनुमान हुआ, 14 अगस्त 1947 की मध्य रात्री को अपना बोरी बिस्तर बांध लिया। उस अंधकार में बेईमानी की भावनाओं को लेकर छुपके से हो गए बिदा ।। देवेन्द्र कुमार (अमन) |
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