राष्ट्रीय (04/03/2016) 
नम्रता एक ऐसा दुर्लभ सद्गुण जिसे जीवन में धारण करना है: राजेंद्र सिंह
कैथल : सावन कृपाल रूहानी मिशन के अध्यक्ष परम संत राजेंद्र ङ्क्षसह जी महाराज का जीवन में लक्ष्य हासिल करने और मानवता की सेवा के प्रति समर्पण भाव रखने को लेकर जो मत है उसके अनुसार नम्रता एक ऐसा दुर्लभ सद्गुण है जिसे हमें अपने जीवन में धारण करना है। नम्रता का अर्थ ऐसे भाव से जीना है कि हम सब एक ही परमात्मा की संतान है। जब हमें यह अहसास होता है कि प्रभु की नजरों में सब एक समान हैं, तो दूसरों के प्रति हमारा व्यवहार नम्र हो जाता है। जब हमारा अहंकार खत्म हो जाता है तो हमारा घमंड और गर्व मिट जाता है। तब हम किसी को पीड़ा नहीं पहुंचाते। हम महसूस करते हैं कि प्रभु की दया से हमें कुछ पदार्थ मिले हैं और जो पदार्थ हमें दूसरों से अलग करते हैं वे भी प्रभु के दिए उपहार है। अपने भीतर प्रभु का प्रेम अनुभव करने से हमारे अंदर नम्रता आती है। तब हर चीज में हमें प्रभु का हाथ नजर आता है। हम देखते हैं कि करनहार तो प्रभु हैं। जब हमारे अंदर इसी तरह की आत्मिक नम्रता का विकास होता है तब हमारे अंदर धन, मान-प्रतिष्ठा, ज्ञान और सत्ता का अहंकार नहीं आ पाता। कहा जाता है कि जहां प्रेम है, वहां नम्रता है। हम जिनसे प्यार करते हैं उनके आगे अपनी शेखी नहीं बघारते, न ही उन पर क्रोध करते हैं। हमें उन लोगों के प्रति भी इसी तरह का व्यवहार करना चाहिए जिनसे हम अपरिचित है। यह भी कहा जाता है कि जहां प्यार है, वहां नि:स्वार्थ सेवा का भाव होता है। हम जिनसे प्रेम करते हैं उनकी सहायता करना चाहते हैं लेकिन हमें जो भी मिले, इमें उसकी मदद करनी चाहिए क्योंकि सब में प्रभु की ज्योति है। अपने भीतर नम्रता विकसित करने का एक तरीका है-ध्यान का अभ्यास। जब हम अपने अंतर में स्थित प्रभु की ज्योति एवं शब्द से जुड़ते हैं तो हमसे प्रेम, नम्रता और शांति का प्रवाह होता है। हम दूसरों की नि:स्वार्थ सेवा करते हैं ताकि उनके दुख-तकलीफ कम हो सकें। जीवन के तूफानी समुद्र में हम एक दीप-सतम्भ बन जाते हैं। समुद्री तूफान के समय जब जहाज और नावें रास्ता भटक जाते हैं तो वे हमेशा दीप-स्तम्भ की ओर देखते हैं। एक बार अंतर में प्रभु की ज्योति का अनुभव पाने और यह अहसास करने के बाद की हम प्रभु के अंश हैं, हम एक सच्चे इंसान के प्रतीक बनकर, एक प्रकाश-स्तम्भ की तरह दूसरों को सहारा देते हैं, उन्हें राह दिखाते हैं। जब हम प्रभु के प्रेम से भर उठते हैं हम देखते हैं कि इससे हमारे जीवन में टिकाव आया है। हम पाते हैं कि जो खुशी और दिव्य आनंद हमें ध्यान-अभ्यास के दौरान मिलता है वह केवल उसी समय के लिए नहीं होता बल्कि उसके बाद भी हमारे साथ बना रहता है। इसका हमारे दैनिकजीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और हमारे आसपास के लोग भी इससे अछूते नहीं रहते।
(राजकुमार अग्रवाल)
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