राष्ट्रीय (04/03/2016) 
कन्हैया के बेल पर रिहा होने के बाद आत्मा को कटोचती ये पंक्तिया !!
साहित्य सेवक-
बेख़बर देहलवी की कलम से


सत्ता के गलियारो में जयचंदो का अनोखा खेल देखो,
मुलजिम और न्याय तंत्र का भी ये अनोखा मेल देखो,
गऱ जो बनानी हो इस दुनिया मे भी खुद की पहचान ,
कन्हैया की तरह बाद मे बेल लेकिन पहले जेल देखो,

सत्ता का आभार है जिन्होंने पहचान इनको दिलायी है,
जनता लड़ती आपस मे पर सब आपस मे भाई भाई है,
डायन भी छोड़ देती है यहाँ पड़ोसियों के भी चार घर ,
देशी गद्दार रिहा देख माँ भारती की आखे भर आयी है,
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