राष्ट्रीय (06/03/2016) 
समाचार वार्ता के पत्रकार सागर शर्मा की कन्हैया को खरी खरी
जब तिरंगे की आन के लिए चल रही थी गोलियाँ !
तब क्यों नहीं आ रही थी देश भक्ति की जेएनयू से बोलियां !!

जब तिरंगे पर करने प्रहार दुश्मन संसद पर आ चढ़ा !
कहाँ था कन्हैया,येचुरी जा क्यों नहीं आतंकियों से लडा !!

लड़नी है लड़ाई तो सरकार से शहीदों की लड़ो !
जाकर उनके सम्मान मे एक कायदा तुम गढो !!

जिन वीरों ने दी शहादत उनका अपमान क्यों करते हो !
अफजल को बताकर शहीद कौनसी आजादी चाहते हो !!

अगर देशद्रोही नारों के तुम जिम्मेवार नहीं !
कैसे फ़िर ठहराते हो पीएम को कसूरवार,क्या तुम पर धिक्कार नहीं ?

अंतरात्मा तुम्हारी तुमसे क्यों करती कतई पुकार नहीं !
जो निकल पडे नतमस्तक हो कर दुश्मन की मन कि क्यों  करने तुम को शर्म लिहाज नहीँ !!

याद नहीं तुम्हें तो मैने आज़ याद तुम्हे दिलाता हूँ ! 
जो आजादी तुमको चाहिये वो नहीं मै आज़ादी नई एक बतलाता हूँ !!

शर्मिन्दगी हो तो डूब मरना चुल्लू भर पानी मे !

क्या तुमने शहीदों की कुर्बानी का न्याय कभी देश से माँगा था !
व्यथा को मन से बिन द्वेष देश से बाँटा था !!

फिर ये कौनसी घुट्टी, किस रोज़, किसने तुझे पिलाई थी ?
क्या कभी शहीदों के बिना ओ नामुराद क्या कोई आज़ादी आई थी ?

शिकायत मुझे इस सरकार से बहुत बड़ी हो आई थी !
जब तेरे जैसों का अभिव्यक्ति के नाम पर कुछ नहीं कर पाई थी !!

अब याद दिलाता हूँ सुनो वीर सैनिकों ने कैसे आज़ादी बचाई है !
डूब कर मर जाना ज़रा शर्म लिहाज़ अगर बेच नहीं खाई है !!


शहीद सैनिक को समर्पित

तिरंगे की आन के लिए मिटा दिया दुल्हन का कुमकुम !
भारत माँ की शान के लिए सो गये वीर तुम !!

साल भर की बेटी पापा को अब पुकारती है !
मम्मी ,दादी अब उसको नहीं पुचकारती है !!

मेहन्दी गुरुतेज़ की हाथों में अब तक लाल है !
तेरे चेहरे को देख कैसे वो छूकर करती मलाल है !!

कोई बेटी पापा को कैसे देखो नहीं अब भुलाती है !
देखो शहादत पर बाप की खुद रोकर सबको रूलाती है !!

कोई कुक हो कर भी आतंकी से भिड़ जाता है !
देख कर मौत देखो वो ज़रा नहीं घबराता है !!

बांध कफ़न सर पर जब वीर जवान मौत से लड़ने चले !
हम सोये रहे घरों में जब उनके घरों में चूल्हे नहीं जले !!

आज़ रूह उनकी न्याय न्याय चिल्लाती है !
अब देखेंगे हम कैसे सम्मान वीरों को ये सरकार दिलाती है !!

हर वीर वो मेरे देश का आज़ सुभाष भगत हो चला है !
जो तानकर सीना दुश्मन से जा लडा है !!

उनके गाँव की मिट्टी तक उन पर फूली नहीं समाती है !
मगर देखो कैसे नेताओ की फौज वोट वोट चिल्लाती है !!

हे वीरों फ़िर लौट आना अपने घर फ़र्ज अपना निभाने !
एक का कर्ज़ चुकाया तुमने दूजी तुम्हे बुलाती है !!

सागर शर्मा
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