राष्ट्रीय (07/03/2016) 
विष्णु सहाय मुजफ्फरनगर दंगा जाँच रिपोर्ट सिर्फ लीपापोती- मायावती
नई दिल्ली : बी.एस.पी. की राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद (राज्यसभा) व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश मायावती ने उत्तर प्रदेश विधानसभा में पेश की गयी मुजफ्फरनगर जि़ले में सन् 2013 में हुये भीषण साम्प्रदायिक दंगों से सम्बन्धित विष्णु सहाय न्यायिक आयोग की रिपोर्ट को केवल "लीपापोती" करके राज्य सरकार को बचाने वाला बताते हुये कहा कि इससे यह साबित होता है कि केन्द्र में भाजपा व प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार में ग़रीबों, महिलाओं, किसानों, बेरोज़गारों आदि के साथ-साथ दलितों, अन्य पिछड़ों व धार्मिक अल्पसंख्कों में से ख़ासकर मुस्लिम समाज के लोगों को "जान-माल व मज़हब की सुरक्षा व न्याय" मिल पाना कितना ज़्यादा मुश्किल ही नहीं, बल्कि एक प्रकार से असम्भव सा हो गया है।
यह एक काफी कड़वा सच है और इसको मानकर ही इन वर्गों के लोगों को आगे सतर्क रहना होगा व साथ ही उसी के अनुसार अपने हित की रक्षा के लिये राजनीतिक क़दम भी उठाने होंगे। मायावती जी ने आज यहाँ जारी एक बयान में कहा कि मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान लोगों के जान-माल की व्यापक हानि हुई क्योंकि प्रदेश की सपा सरकार की भाजपा से साफतौर पर मिलीभगत थी। दंगों में व्यापक जान-माल की हानि के साथ-साथ बड़े पैमाने पर घर-बार छोड़कर पलायन करने वाले लोगों के प्रति भी सपा सरकार का रवैया काफी असंवेदनशील व अमानवीय बना रहा था। और जहाँ तक प्रथम दृष्टि में दोषी पाये गये भाजपा के लोगों आदि के खि़लाफ सख़्त क़ानूनी कार्रवाई करके पीडि़त लोगों को इन्साफ दिलाने की बात थी, तो इस मामले में भी सपा सरकार पूरी तरह से लचर व विफल साबित हुई है। दंगाई, बलवाई, हत्यारे व दंगा भड़काने का षडयंत्र करने वाले लोग इस सपा सरकार के अत्याधिक लचर रवैये के कारण खुलेआम हीरो बने घूमते रहे। इस कारण अन्ततः आमजनता के दबाव में सपा सरकार को न्यायिक आयोग बनाने को मजबूर होना पड़ा था। परन्तु अब जस्टिस (रि.) विष्णु सहाय की जाँच रिपोर्ट ने इन्साफ पसन्द लोगों को वैसे ही मायूस किया है, जैसाकि इस दंगों के प्रति सपा सरकार के लचर व ग़लत रवैये ने देश व प्रदेशवासियों को मायूस किया था।
वास्तव में सर्वसमाज के लोगों के साथ-साथ ख़ासकर उत्तर प्रदेश के मुस्लिम समाज के लोगों के लिये अब यह सोचने व समझने का समय है कि इस सपा सरकार में उनके जान-माल व मज़हब की क़ीमत क्या रह गई है?
इस मुजफ्फरनगर दंगा जाँच आयोग की रिपोर्ट से इस आरोप को भी बल मिलता है कि वास्तव में न्यायिक जाँच आयोग का सही मकसद दोषियों को सज़ा व पीडि़तों को न्याय दिलाना नहीं होता है, बल्कि सरकारों को क्लीन चिट देना व मामले को रफा-दफा करना व लीपापोती करना होता है। पूर्व में यही काम कांग्रेस व भाजपा की सरकारें भी लगातार करती रही हैं। विष्णु सहाय आयोग की रिपोर्ट भी इसी की एक कड़ी है।
मुजफ्फरनगर के भीषण दंगे व उस सम्बन्ध में सपा सरकार की घोर व गम्भीर आपराधिक लापरवाही के बारे में हालांकि माननीय उच्चतम न्यायालय ने अखिलेश यादव सरकार को काफी फटकार लगाते हुये कई सख़्त टिप्पणियाँ की थी, लेकिन विष्णु सहाय जाँच आयोग रिपोर्ट ने काफी निचले स्तर पर छोटे पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों पर दोष डालकर अपनी रिपोर्ट का खुद ही उपहास उड़ाया है क्योंकि ऐसी रिपोर्टें शायद कमिश्नर स्तर पर भी नहीं लिखी जाती है। इतने बड़े व सुनियोजित दंगे में राज्य सरकार को एक प्रकार से क्लीनचिट दे देना वास्तव में व्यवस्था पर से भरोसा उठाने वाला कदम है।
इस रिपोर्ट के बल पर विभिन्न अपराधबोधों से घिरी अखिलेश यादव सरकार भले ही अपने आप में काफी राहत महसूस कर रही हो, परन्तु इस भीषण दंगे की काली छाया व इसमें प्रदेश सपा सरकार की षडयंत्रकारी नीति से दंगा पीडि़त परिवार ही नहीं बल्कि आमजनता के दिल-दिमाग पर भी अंकित हैं और वह उन्हें विचलित करती रहती है। इसका दुष्परिणाम तो अखिलेश यादव सरकार को अवश्य ही झेलना पड़ेगा।
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