राष्ट्रीय (11/09/2012) 
"भारतीय व्यापार में प्रेरणादायक विश्वास" ---सम्मेलन
पिछले दो दशकों के दौरान कई समय ऐसे आये है जब संगठन के नैतिक व्‍यवहार आकर्षण का केंद्र रहे है। इसका कारण अनुपालन संबंधित मुद्दों पर ज्ञान की कमी भी हो सकती है। अनुपालन पूर्णत: आंतरिक नियत्रंण प्रक्रिया है। बोर्ड को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रणनीतिक योजना और उत्‍पाद विकास दोनों में अनुपालन का महत्‍वपूर्ण योगदान है। अनुपालन ऐसा नहीं होना चाहिए कि जो उत्‍पादों, पुर्नगठन और समान निर्णय से जुड़ा हो। इसे संगठन के डीएनए के हिस्‍से के साथ-साथ प्रारूप और निर्णय क्षमता का भी हिस्‍सा होना चाहिए।

भारत में कॉर्पोरेट शासन नियम अनुपालन सुधार की एक नियत अवस्‍था है जो स्‍वैच्छिक और अनिवार्य दृष्टिकोण के बीच संतुलन की खोज करता है। समानत: भारत में कॉर्पोरेट शासन का दृष्टिकोण व्‍यापक नहीं है जहां भारतीय परिवेश के संदर्भ में निगमों से अनुपालन की आशा करने से पहले विनियमन पर मौजूदा कारकों पर अधिक समझदारी की आवश्‍यकता है। मानवीय विचार-विमर्श और बढ़ते अनिश्चित वैश्विक परिवेश में सुशासन एक महत्‍वपूर्ण विषय बन गया है। निगम आज भरपूर आर्थिक शक्ति (कभी-कभी कुछ देशों के जीडीपी से ज्‍यादा) के रूप में उभर रहे हैं और इस आर्थिक शक्ति के आधार पर इन्‍हें महत्‍वपूर्ण राजनीतिक शक्ति के रूप में देखा जा रहा है। आश्‍चर्य की बात नहीं है कि पूरे विश्‍व में निगमों के विनियमन की मांग तेजी से हो रही है। इस कारण व्‍यवहारिक रूप से प्रत्‍येक देश में कानूनों, विनियमों और उनके अनुपालन की परिपाटी में हलचलें बढ़ गई है।

हालांकि अभी कोई समूह और अंतिम उत्‍तर मौजूद नहीं है और संगठन के प्रत्‍येक स्‍तर पर शासन के लक्ष्‍यों को निहित करने के साथ-साथ लागू की गई विनियमों के क्रियान्‍वयन के संदर्भ में एक व्‍यवहारिक समाधान पर पहुंचने के लिए सुशासन एक चर्चा का विषय है जो जारी है।

भारत में केन्‍द्र सरकार और राज्‍यों के जटिल नियम हैं। जिनका व्‍यवसायी को अनुपालन करना पड़ता है। परिवर्तनों की आवश्‍यक अनुपालन प्रक्रियाओं के कार्यान्‍वयन को ध्‍यान में रखते हुए लागू नियमों का अनुसंधान करना एक दीर्घकालीन और खर्चीली प्रक्रिया है।

आईआईसीए ने गैर अनुपालन के मुख्‍य कारणों की पहचान की है जो इस प्रकार हैं:-

1) अनुपालन की अधिक कीमत
2) कानूनों के ज्ञान की कमी
3) उद्यमों में विधायी अनुपालन की निगरानी करने के लिए पद्धति की कमी
4) अनुपालन को अनावश्‍यक बोझ के रूप में समझना
5) लागू करने में समानता का अभाव

विशेष रूप से लघु और मध्‍यम उद्योगों के लिए, देश में कानूनी अनुपालन में स्थिरता की चुनौतियों पर विचार - विमर्श करने के लिए आईआईसीए ने कॉरपोरेट शासन पर ''भारतीय व्‍यापार में प्रेरणादायक विश्‍वास'' नामक शीर्षक पर एकदिवसीय सम्‍मेलन का आयोजन किया। इस बारे में जागरूकता लाने और चुनौतियों के समाधान उपलब्‍ध कराने के उद्देश्‍य से जाने-माने और अनुभवी वक्‍ता उपस्थित लोगों को सम्‍बोधित करेगें।

आईआईसीए और इन्‍टेल के मध्‍य समझौता ज्ञापन (एमओयू) के एक भाग के रूप में कानूनी अनुपालन मैन्‍युअल (एलसीएम) विकसित किया गया है। इसे सामान्‍य मैन्‍युअल के रूप में विकसित किया गया है जो समान व्‍यवसाय में कार्यरत कंपनियों पर लागू होगा और भारत में बड़ी संख्‍या में कंपनियों पर लागू फैक्‍ट्री अधिनियम जैसे संबद्ध क्षेत्रों में भी इसका विस्‍तार किया गया है।

एलसीएम का आईआईसीए प्रारूप सभी प्रकार के व्‍यवसाय पर लागू नहीं होगा। लेकिन यह बिना किसी लागत के दायित्‍वों के अनुपालन के बारे में तेजी से सीखने के लिए बड़ी संख्‍या में इन व्‍यवसायों की मदद करेगा। एलसीएम इस चेतावनी के साथ उपलब्‍ध कराया जाएगा की नए क्षेत्रों में शामिल करने के लिए इसे लगातार नवीनीकृत किया जाए।

उल्‍लेखनीय है कि आईआईसीए ने थॉट आरबिट्रेज रिसर्च इं‍स्‍टीट्यूट (टीएआरआई) और भारतीय प्रबन्‍ध संस्‍थान, कलकत्‍ता (आईआईएमसी) के साथ मिलकर परिमाणात्‍मक और अनुभवजन्‍य तकनीकी का उपयोग करते हुए शासन के चार मौलिक पहलुओं को समाहित करते हुए भारत में कॉरपोरेट शासन की स्थिति का विस्‍तृत अध्‍ययन करने के लिए वर्ष 2011 में एक सहयोगी अनुबंध किया है। अध्‍ययन कंपनियों, नीति बनाने वालों, विश्‍लेषकों और विद्वानों के लिए दिलचस्‍प होना चाहिए इसका शीर्षक है:- ''भारत में कॉरपोरेट शासन की स्थिति- नीतियों से वास्‍तविकता तक।''
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