राष्ट्रीय (20/09/2012) 
रबी फसल की नीति तैयार करने के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन

आगामी रबी मौसम के दौरान फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए नीति तैयार करने हेतु दो दिवसीय रबी अभियान 2012 के लिए कृषि पर राष्ट्रीय सम्मेलन नई दिल्ली में सोमवार से शुरू हो रहा है।

इस सम्मेलन में देर से हुई बारिश का अधिक से अधिक उपयोग करने पर ध्यान दिया जाएगा। इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए कृषि मंत्रालय द्वारा परिपत्रित कागजों में इस नीति के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। खरीफ 2012 का मौसम मानसून की देरी से शुरू हुआ था और जून-जुलाई अवधि के दौरान बुआई की गतिविधियां बहुत धीमी रही, जिनमें अगस्त के दौरान धीरे-धीरे सुधार हुआ और ये सितंबर में भी जारी रही। इस कारण बुआई में काफी देरी हुई और कुछ क्षेत्र बिना बुआई के रह गए जिससे खरीफ में विशेष रूप से मोटे अनाजों के उत्पादन पर जरूर प्रभाव पड़ेगा। लेकिन हमें रबी फसलों का अतिरिक्त क्षेत्रों में बुआई करने का नया अवसर उपलब्ध हुआ और सितंबर के दौरान हुई व्यापक वर्षा ने फसलों का भविष्य सुधार दिया है। इससे वर्षा वाले क्षेत्रों में भूमि में नमी की स्थिति न केवल बीजों के जमने के लिए पर्याप्त है बल्कि नवंबर में या सर्दियों में दिसंबर-जनवरी में होने वाली वर्षा तक पौधों की वृद्धि करने लायक भी रहेगी। इसलिए फसल की समय पर बुआई करके भूमि में उपलब्ध नमी का अधिक से अधिक लाभ उठाना आवश्यक है तथा उचित गहराई पर बीज बोये जाएं और ठीक मात्रा में पोषण और फसल सुरक्षा का उपयोग किया जाए।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) गेहूं और अन्य शीतकालीन फसलों के लिए फसल और विशिष्ट क्षेत्र सिफारिशों के साथ आगे आया है। इसकी सिफारिशों में अधिक उपज देने वाली किस्में, बीमारी नियंत्रण और उन्नत कृषि विज्ञान प्रणाली का उपयोग शामिल हैं। इन पर भी सम्मेलन में विचार विमर्श किया जाएगा।

तिलहनों और दालों के उत्पादन को बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। सामान्य विचार विमर्श के अलावा इन फसलों पर विशेष रूप से आठ राज्यों के साथ अलग से सत्र का आयोजन किया जाएगा। ये राज्य हैं- मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मिजोरम, उत्तराखंड़, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, मेघालय और दिल्ली। विचार विमर्श में ध्यान देने के लिए दो अन्य क्षेत्रों की भी पहचान की गई है जो इस प्रकार हैं- कीटनाशकों का उचित उपयोग और जानकारी तथा प्रौद्योगिकी को किसान के खेत तक ले जाना। इस सम्मेलन में राज्यों के कृषि विभागों के वरिष्ठ अधिकारी, विशेषज्ञ, संबंधित मंत्रालयों के प्रतिनिधि आईसीआरए और अन्य अनुसंधान संस्थानों और फसल निदेशालयों के वैज्ञानिक भाग लेंगे।

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