राष्ट्रीय (28/09/2012) 
अपराधशास्त्र एवं विधि विज्ञान संस्थान का स्थापना दिवस कल

लोक नायक जय प्रकाश नारायण राष्ट्रीय अपराध शास्त्र एवं विधि विज्ञान संस्थान अपने स्थापना दिवस के अवसर पर कल नई दिल्ली में आपराधिक न्याय- पुलिस जांच की स्वायत्ता और निरीक्षण संबंधी दृष्टिकोण विषय पर संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है। स्वतंत्र निकाय द्वारा अपराध जांच की तृतीय पार्टी निगरानी का प्रचलन हाल के समय में सामने आया है और अलग अलग तरीकों से इसे प्रस्तुत किया गया है। इस संदर्भ में निगरानी की दिशा और पद्धति एक समान नहीं है बल्कि यह स्थिति के अनुसार होती है और सिविल सोसायटी, अपराध पीडित, पुलिस, सुनवाई न्यायालय, उच्चतर न्यायपालिका और स्वतंत्र राष्ट्रीय आयोगों जैसे विभिन्न हितधारकों पर इसके अलग-अलग प्रभाव रहे है। विभिन्न हितधारकों के दृष्टिकोणों को जानना, नवीन विकास के विभिन्न आयामों और असर का विश्लेषण करना और सभी हितधारकों के प्रतिनिधित्व में एक औपचारिक परस्पर चर्चा के माहौल में उपर्युक्त सभी मुद्दों को संबोधित करना इस संगोष्ठी का उद्देश्य है। सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता  फाली एस. नरीमन, भारत के भूतपूर्व प्रमुख न्यायधीश/अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग न्यायमूर्ति जे. एस. वर्मा, सूचना आयुक्त (सीबीआई के भूतपूर्व विशेष निदेशक)  एम. एल. शर्मा, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति, एनएएलएसएआर के संस्थापक कुलपति डॉ. रनबीर सिंह, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (भूतपूर्व दिल्ली न्यायपालिका / दिल्ली उच्च न्यायालय) के सदस्य न्यायामूर्ति एस. एन ढींगरा संगोष्ठी के वक्ताओं में शामिल हैं।

इस अवसर पर अपराधशास्त्र एवं विधि विज्ञान में उत्कृष्टता के लिए एनआईसीएफएस पदक की नई योजना की भी शुरुआत की जाएगी। डीएसपी और सब-इंस्पेक्टर के तौर पर नियुक्ति के पश्चात पुलिसकर्मियों द्वारा अपने संबंधित राज्यों में आधारभूत प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम है। प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में अपराधशास्त्र और विधि विज्ञान का अध्य्यन शामिल है।

केन्द्रीय अपराधशास्त्र और विधि विज्ञान संस्थान की स्थापना के लिए विश्वविद्याल अनुदान आयोग की संस्तुतियों के फलस्वरुप पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो के तहत 1972 में अपराधशास्त्र और विधि विज्ञान संस्थान की स्थापना की गई थी। लंदन में 1955 में यूनेस्को द्वारा कानून क्रियान्वयन अधिकारियों द्वारा अपराधशास्त्र और विधि विज्ञान की सुनियोजित समझ की आवश्यकता और विश्वविद्यालयों द्वारा पाठ्यक्रम में इसे बढावा देने के लिए आयोजित एक संगोष्ठी के प्रस्ताव के आधार पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अपराधशास्त्र और विधि विज्ञान को विश्वविद्यालय शिक्षा के मुख्य धारा में लाने के लिए कदमों के सुझाव के वास्ते विशेषज्ञ समिति का गठन का था। 1991 में इसे राष्ट्रीय संस्थान का दर्जा मिला और 2003 में लोक नायक जयप्रकाश नारायण के नाम से इसका पुनः नामकरण किया गया।

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