राष्ट्रीय (23/08/2013) 
सियासत का एक रंग ये भी!
सियासत के जितने रंग देखता हूं, मन उतना ही बेरंग हो जाता है। सबसे ताज़ा रंग दिखाया है भारतीय जनता पार्टी की साध्वी उमा भारती ने। उमा भारती ने कहा है कि आसाराम तो कुसूरवार हो ही नहीं सकते। ये तो उन कांग्रेस शासित राज्यों का दुष्चक्र है, जिन्होंने आसाराम बापू जैसे पूजनीय संत के खिलाफ़ साज़िश रची और मुकदमा दर्ज कर लिया। चलिए उमा भारती की कुछ बातों पर यकीन कर लेते हैं। मान लेते हैं कि ये कांग्रेस की साज़िश है। वो साज़िश, जो राहुल गांधी के खिलाफ़ टीका-टिप्पणी करने की वजह से आसाराम के खिलाफ रची गई। ये भी मान लेते हैं कि आसाराम तो ऐसा कर ही नहीं सकते। लेकिन एक सामाजिक जीवन जीनेवाली इस साध्वी को ये हक़ किसने दिया कि वो एक नाबालिग लड़की की तकलीफ़ और उसके साथ हुई ज़्यादती को सच्चाई की कसौटी पर कसे बगैर ही आसाराम को बचाने के चक्कर में उसे सिर्फ़ एक सियासी मोहरा करार दे? क्या उमा भारती का ये बयान एक औरत होने के बावजूद एक औरत के खिलाफ़ नहीं है? क्या उमा भारती का ये बयान एक इंसान होने के बावजूद इंसानियत के खिलाफ़ नहीं है? क्या उमा भारती का ये बयान एक साध्वी होने के बावजूद साधुत्व के खिलाफ़ नहीं है? सवाल ये उठता है कि सियासी गोटी लाल करने के चक्कर में आप किसी लड़की की तकलीफ़ या दर्द को फ़क़त एक बयान देकर कैसे खारिज कर सकती हैं? उमा जी आपको ये हक़ किसने दिया? मैं ये कतई नहीं कहता कि आसाराम ने रेप किया ही होगा। हो सकता है कि कल को सच कुछ और निकले। लेकिन क्या जब सच सामने नहीं आता, तब तक सिर्फ़ वोट के चक्कर में ऐसी अंधभक्ति कहीं से ठीक नहीं। ख़ास कर तब, जब मामला एक बच्ची की इज़्ज़त और दिल पर लगे ज़ख्मों से जुड़ा हो। सिर्फ़ एक बार सोचिए... कि अगर वाकई आसाराम गुनहगार निकले, तो क्या उमा भारती उस बच्ची से नज़र मिला पाएंगी? ... वैसे इन सियासतदानों का कुछ नहीं कह सकते।
लेखक सुप्रीतम बैनर्जी आज तक के पत्रकार हैं,यह लेख फेसबुक पर लिखा है

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