राष्ट्रीय (23/10/2013) 
पत्रकारिता स्वान्तः सुखाय न होकर पाठकों के लिए है Ц अवधेश कुमार

गांधी शांति प्रतिष्ठान में पत्रकारिता एवं लेखन पर आयोजित दस दिवसीय कार्यशाला के तीसरे दिन वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार तथा अरुण कुमार त्रिपाठी ने प्रतिभागियों को संबोधित किया. मशहूर लेखक अवधेश कुमार ने जहां लेखन की बारीकियों पर चर्चा की वहीँ अरुण कुमार त्रिपाठी ने जनांदोलनों की पत्रकारिता के बारे में प्रतिभागियों को बताया.

अवधेश कुमार ने अपने मूल्यों के साथ पत्रकारिता करने को कहते हुए कहा कि पत्रकारिता केवल नौकरी नहीं है. यह समाज के प्रति दायित्वों का निर्वाह है. उन्होंने कहा कि चाहे टीवी का पत्रकार हो या समाचार पत्रों का लेखक उसकी अनिवार्य योग्यता है. लेखन सृजनात्मक संसार की अभिव्यक्ति होता है. उन्होंने समाचार पत्रों में लेखन के हर पहलू पर प्रकाश डाला. किसी खबर या संपादकीय में शीर्षक लगाने से लेकर पत्रकारिता के सरोकारी पहलू पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का लेखन स्वान्तः सुखाय लेखन न होकर समाज के लिये होता है इसलिये लिखते समय इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिये कि जो लिखा जा रहा है वह किन पाठकों के लिये लिखा जा रहा है. जो भी विचार आये उन्हें तथ्यों पर जांचकर देखा जाना चाहिए कि वे सही हैं या गलत. उन्होंने कहा कि खबर की समझ के बिना कोई पत्रकार नहीं हो सकता. पत्रकार वही है जिसकी नजर से खबर बचने न पाये.

अरूण कुमार त्रिपाठी ने जनांदोलनों और उनकी पत्रकारिता के बारे में बहुत ही विस्तृत जानकारी दी. अरुण कुमार ने अपनी बात को समझाने के लिये अपने समय के आंदोलनों के साथ-साथ आज के अन्ना आंदोलन, दामिनी के समर्थन में हुए आंदोलनों का उदाहरण देते हुए अपनी बात कही. उन्होंने कहा कि पत्रकार का काम केवल आंदोलनों को रिपोर्ट कर देना नहीं है. बल्कि आंदोलनों पर बारीक नजर रखते हुए उसकी पृष्ठभूमि, आक्रोश तथा उसके नारों के साथ-साथ उसमें लगने वाले धन पर भी नजर रखनी चाहिये. आंदोलन में कौन सा वर्ग अधिक शिरकत कर रहा है इस बात पर भी ध्यान देना चाहिये. आंदोलन की तत्कालीन और दीर्घकालीन मांग के साथ उस पर सरकार की प्रतिक्रिया भी देखी जानी चाहिये.

 उन्होंने खासकर स्त्रियों के आंदोलन के बारे में बात करते हुए कहा कि स्त्रियों का आंदोलन बाजारवाद और उपभोक्तावाद के चलते बहुत कमजोर हुआ है अतः स्त्रियों के आंदोलनों को रिपोर्ट करते समय हमें विशेष ध्यान देते हुए सामाजिक व्यवस्था तथा इतिहास में भी उसके कारणों की पड़ताल करनी होगी. आंदोलनों को कवर करते समय पीड़ित की पहचान को बचाते हुए मामले को उठायेंगे लेकिन दूसरे पक्ष द्वारा उठाये जा रहे वाजिब सवालों पर भी बात करेंगे. किसी भी आंदोलन को कवर करते समय पत्रकार के भी आंदोलन में बह जाने का खतरा रहता है इसलिये पत्रकारों को इससे बचते हुए आलोचनात्मक दृष्टि बनाये रखनी चाहिये.

 

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