राष्ट्रीय (13/07/2014) 
बंद होना चाहिए वायदा कारोबार
पचास के दशक में चुनिंदा जिंसों में शुरू हुआ वायदा कारोबार का सफर 2003 में सभी कमोडिटी तक फैलने में कामयाब हो गया। 70 के दशक में एक बार इस कारोबार पर रोक लगी लेकिन 80 के दशक में यह फिर शुरू हो गया। राजनेताओं और कारोबारियों का एक वर्ग इसे विशुद्ध सट्टेबाजी के रूप में देखता रहा और इसके विरोध में खुलकर अपनी आवाज भी उठाता रहा।

देश में नई सरकार बनने के बाद एक बार फिर इस पर रोक की संभावना प्रबल होती नजर आ रही है क्योंकि प्रधानमंत्राी नरेंद्र मोदी भी इस पर खुलकर विरोध जता चुके हैं हालांकि एक बड़ा वर्ग आज भी वायदा कारोबार पर रोक लगाने की बजाए इसमें सुधार की गुंजाइश ही देख रहा है।

भविष्य में किसी वस्तु की होने वाली कीमत का अनुमान लगाकर उसकी खरीद व बिक्री का अग्रिम अनुबंध करना व निर्धारित समय पर वस्तु की आपूर्ति का व्यवसाय वायदा कारोबार है। छोटे भूभाग पर होने वाली फसलें जैसे हल्दी, जीरा, धनिया, ग्वार आदि की पहले कोई भी काॅर्पोरेट और कार्टेल बड़ी खरीद कर लेते हैं। फिर अचानक से दाम बढ़ाना शुरू करते हैं। जब एक वक्त पर आम ट्रेडर या किसान के बस में कुछ भी नहीं रहता, तब ये लोग मुनाफा कमाकर निकल जाते हैं और लोग फंस जाते हैं।

अर्थव्यवस्था की चुनौतियों से जूझने मंे मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार नाकाम रही तो विपक्ष में बैठी भाजपा ने उस पर चैतरफा हमला बोल दिया। नरेंद्र मोदी ने महंगाई बढ़ने के पीछे सरकार की गलत नीतियों को तो जिम्मेदार ठहराया ही, साथ ही वायदा बाजार के खेल को भी महंगाई के लिए बड़ा कारण बताया। भाजपा का मानना है कि हर साल होने वाला 125 लाख करोड़ का वायदा कारोबार देश के आम बजट से कई गुना अधिक है। देश के पांच फीसदी बड़े कारोबारी वायदा बाजार की बदौलत रातों रात धन कुबेर बन रहे हैं तो शेष 95 फीसदी आबादी की जेब से यह पैसा निकल रहा है। इस 95 फीसदी जनता को उम्मीद है कि मोदी अब उस वायदा कारोबार पर लगाम लगाएंगे जिसका विरोध वे और उनकी पार्टी लगातार करती आ रही है।

नरेंद्र मोदी की पहली प्राथमिकता महंगाई पर काबू पाना है ताकि ‘अच्छे दिन आने वाले हैं‘ के नारे को पूरा किया जा सके। मोदी का मानना रहा है कि जिंस एक्सचेेंजों का वायदा कारोबार राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास के रास्ते में बाधक है। गुजरात के मुख्यमंत्राी रहते हुए गांधीनगर में राज्यों के व्यापारी नेताओं के साथ बैठक में उन्होंने साफ कर दिया था कि वे वायदा कारोबार के विरोध में हैं। मोदी ने खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई का भी विरोध किया था। एक बात और, वर्ष 2010 में प्रधानमंत्राी मनमोहन सिंह ने महंगाई रोकने की दिशा में तीन कार्य समूहों का गठन किया था। एक कार्य समूह की अगुवाई मोदी ने की थी।

मोदी कमेटी की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ाने में जिंस वायदा बाजार की भूमिका के स्पष्ट प्रमाण हैं। महंगाई रोकना है तो तुरंत ही आवश्यक वस्तुओं को वायदा बाजार के दायरे से अलग कर देना चाहिए। यह भी सुझाव है कि केंद्रीय स्तर पर मूल्य स्थिरीकरण के लिए संस्था का गठन किया जाए ताकि महंगाई के समय राज्य आवश्यक वस्तुओं की कमी न होने देने के लिए खरीद सुनिश्चित कर सकें। ये सिफारिशें संप्रग सरकार ने नहीं मानी थी।

एग्रीकल्चर कमोडिटी में वायदा को बंद करने के पीछे दो-तीन मुख्य कारण हैं। पहला, कहा जाता है इससे ‘प्राइस रीयलाइजेशन‘ यानी वास्तविक दामों का पता लग जाता है पर बुनियादी तौर पर ऐसा नहीं होता। दुनिया में गेहूं की जितनी पैदावार होती है, उससे 46 गुणा ज्यादा वायदा कारोबार होता है। इसी तरह मक्के की पैदावार से 24 गुणा ट्रेडिंग हो रही है, यानी स्पष्ट है कि असली दाम उस वस्तु के क्या हैं, इसका पता नहीं लग पाता। सरासर सट्टेबाजी चल रही है। किसानों को आज भी वास्तविक दामों का पता सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य से ही लग पाता है, वायदे से नहीं। दूसरा, कहा जाता है कि इससे महंगाई नहीं बढ़ती लेकिन पूर्व में कंेद्र सरकार ने खुद माना था कि वायदे में सट्टे से महंगाई बढ़ रही है। यह बात मिनिस्ट्री आॅफ काॅमर्स की रिपोर्ट में कही गई थी।

महंगाई नियंत्रित करने के दावे की पोल विश्व स्तर पर भी खुल चुकी है। वर्ष 2007 में दुनिया में खाद्यान्न संकट पैदा हो गया था। 37 देशों में भोजन के लिए दंगे हुए थे। उस वक्त संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट में स्वीकारा था कि खाद्यान्न के दाम बढ़ने के पीछे 75 फीसदी तक कृषि कमोडिटी ट्रेडिंग जिम्मेदार है। जब वैश्विक स्तर पर ये हाल हैं तो हम भारत में तर्क दे रहे हैं कि वायदे से महंगाई नहीं बढ़ती। यह सरासर धोखा देना है, इसे बंद करना चाहिए।

महंगाई एक ऐसा मुद्दा है जिसने मोदी को प्रधानमंत्राी बनाने में बड़ी भूमिका अदा की है। देश के मतदाताओं को विश्वास है कि मोदी देश की नब्ज समझते हैं और वे ये भी जानते हैं कि महंगाई बढ़ने के पीछे वायदा कारोबार की बड़ी भूमिका है। भाजपा ही नहीं, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस भी वायदा कारोबार पर रोक लगाने की मांग प्रखर तरीके से उठा चुके हैं। देखना यह कि नई सरकार वायदा कारोबार पर पूरी तरह से रोक लगाती है अथवा वायदा कारोबार की सूची मंे से आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं को हटाकर इस व्यापार को चलने देती है।

सवा सौ करोड़ की जनसंख्या वाले देश में यह कैसे संभव है कि चंद सट्टेबाज अर्थव्यवस्था पर हावी हो जाएं और सरकार असहाय होकर टुकुर-टुकुर देखती रहे। आंकड़े गवाही देते हैं कि वायदा कारोबार से जुड़ी अधिकांश वस्तुआंे की कीमतों में उछाल आया। फसल अच्छी होने के बावजूद जिंसोें के भावों में बढ़ोतरी से यह साफ है कि वायदा कारोबार और कुछ वायदा करता हो या न करता हो लेकिन महंगाई बढ़ाने का वायदा अवश्य करता है। महंगाई की यह रफ्तार रूकती नजर आए तो आम भारतीयों को लग सकता है कि ‘अच्छे दिन‘ आ गए।
नरेन्द्र देवांगन(अदिति)


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