राष्ट्रीय (16/08/2014) 
भाजपा आदिवासी विरोधीः बस्तर के आदिवासी भाजपा को सबक सिखायेंगे-कांग्रेस
रायपुर/16 अगस्त 2014। अंतागढ़ उपचुनाव के कार्यक्रमों की घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये प्रदेष कांग्रेस महामंत्री शैलेष नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि अंतागढ़ में बस्तर में आदिवासी भाजपा को सबक सिखायेंगे। भाजपा की केन्द्र सरकार बनते ही पहली घोषणा पोलावरम बांध बनाने की गयी है। पोलावरम बांध में बस्तर का एक बड़ा भू-भाग वन भूमि भी कृषि भूमि भी डूब में आयेगी। बस्तर को डुबोनी वाली जंगल को डुबोने वाली खेती को डुबोने वाली भाजपा, आदिवासियों को डुबोने वाली आदिवासियों पर लाठियां बरसाने वाली भाजपा कभी आदिवासियों की और बस्तर की हित चिंतक हो ही नही सकती है। केन्द्र में भाजपा की सरकार बनते ही पीएमटी में आदिवासियों के हित की उपेक्षा की गयी है। आदिवासियों बच्चों को उनके मेडिकल कालेज में दाखिल के अधिकार से वंचित किया गया है। भाजपा ने लगातार आदिवासियों के हितों को नुकसान पहुंचाया है। परिसीमन में छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के लिये आरक्षित विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 34 से 29 हो गयी । परिसीमन आयोग ने स्पष्ट कहा था कि यदि रमन सिंह परिसीमन आयोग को एक पत्र लिख देगे तो झारखंड की ही तरह छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित क्षेत्रों की संख्या 34 ही रखी जायेगी लेकिन रमन सिंह की सरकार ने एक पत्र भी नहीं लिखा और आदिवासियों की सीटों की संख्या कम होकर 29 हो गयी। विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति भी भाजपा ने आदिवासी वर्ग को उपकृत करने और सिर्फ झूठी वाहवाही लेने के लिये की थी। वास्तव में भाजपा आदिवासी विरोधी है। मुख्य सचिव के पद पर नियुक्ति के समय भाजपा को नारायण सिंह के आदिवासी होने की याद क्यों नहीं आयी तब भाजपा सरकार को नारायण सिंह दागी अफसर दिख रहे थे? वरिश्ठ आईएएस अधिकारी नारायण सिंह तथा सरजियस मिंझ को मुख्य सचिव बनने से जब रोका गया तब भाजपा का आदिवासी प्रेम कहां सोया पड़ा था? जब नारायण सिंह के ऊपर आपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया था तब भाजपा सरकार को यह ख्याल क्यों नहीं रहा कि वो आदिवासी है। डीजीपी के चयन में भी अनुसूचित जाति वर्ग के वरिष्ठ आदिवासी एस.के. पासवान के दावों को भी भाजपा सरकार ने इसी दलित विरोधी भावना के कारण ही खारिज किया था। भाजपा सरकार दलित और आदिवासी विरोधी रही है। आदिवासी दलितों गरीबों की विरोधी भाजपा किस मुंह से आज आदिवासियों की हितैषी होने का दावा करती है। यदि भाजपा सचमुच में आदिवासियों के षुभचिंतक होती तो मीना खल्खों के हत्यारों के ऊपर अभी तक मुकदमा दर्ज हो चुका होता। 10000 आदिवासी महिलायें और लड़कियां लापता है। इनको खोजने में रमनसिंह जी ने प्रभावी कार्यवाही की होती। आरक्षण में हीला हवाला के कारण 5000 आदिवासी को क्यो नौकरी नहीं मिल सकी। बस्तर के पंचायत प्रतिनिधियों और नगरीय निकायों के प्रतिनिधियों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन किया गया है। भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल में सुहेला में आदिवासियों पर लाठिया बरसायी गयी, पिछली विधानसभा के बजट सत्र में आदिवासियों पर टिकरापारा में गोड़वाना भवन के पास लाठियां बरसायी गयी। आदिवासियों पर किये गये इन दोनो लाठी चार्ज के लिये जिम्मेदार लोगो पर भाजपा सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की। एडिषनल एसपी डीएस मरावी जैसे आदिवासी पुलिस अधिकारियों के साथ न्याय नहीं हुआ। भाजपा ने बस्तर में षांति बहाली का भरोसा दिलाया था। बस्तर के भरोसे 2003 और 2008 में भाजपा की सरकार बनी लेकिन आज बस्तर में ही सरकार कही नही है, षांति भी नहीं है। बस्तर में सरकार का अस्तित्व ही नहीं है। आदिवासियों के साथ भाजपा सरकार के छलप्रपंच को छत्तीसगढ़ के आदिवासी और छत्तीसगढ़ की जनता अब भली-भांति समझ चुकी है। इसी का परिणाम विधानसभा चुनाव में बस्तर और सरगुजा में सामने आया था। अंतागढ़ उपचुनाव में भी भाजपा का यही हाल होने वाला है।
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