राष्ट्रीय (20/08/2014) 
दोहरी कर प्रणाली वाला जी एस टी व्यापारियों को स्वीकार नहीं जी एस टी पर उच्च समिति व्यापारियों से शुरू करे संवाद

दोहरी कर प्रणाली वाला जी एस टी व्यापारियों को स्वीकार नहीं

व्यापारिक समुदाय के शीर्ष संगठन कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने यद्यपि देश में गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) को शीघ्र लागू करने की जोरदार वकालत की है लेकिन उधर दूसरी  जी एस टी पर गठित राज्यों के वित्त मंत्रियों की उच्च अधिकार प्राप्त समिति द्वारा जी एस टी के प्रारूप बनाने के तौर तरीके को सार्वजानिक करना और इस मुद्दे से सीधे तौर पर जुड़े व्यापारियों और अन्य वर्गों को प्रारूप बनाने की प्रक्रिया से अलग थलग रख कर अब तक कोई चर्चा भी करने से देश भर के व्यापारियों में खासी नाराज़गी भी है ! इसी प्रकार केंद्रीय बिक्री कर जिसको वर्ष 2010 तक समाप्त करने की घोषणा पिछली सरकार ने संसद में की थी, के अब तक जारी रहने पर भी कैट ने अफ़सोस जाहिर किया है !

 

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खण्डेलवाल ने आज यहाँ जारी एक संयुक्त वक्तव्य में स्पष्ट तौर पर कहा की जी एस टी के अंतर्गत दोहरी कर प्रणाली व्यापारियों को स्वीकार नहीं होगी ! उन्होंने कहा की देश में जी एस टी लागू हो इसका हम समर्थन करते हैं लेकिन पूरे देश में एक समान जी एस टी कानून बने, सभी राज्यों में कर की दरें समान हों, एक ही प्रकार का कर हो और कर प्रणाली को चलाने के लिए एक ही अथॉरिटी हो, यह जी एस टी कर प्रणाली का मूलमंत्र है और इसी प्रकार का जी एस टी देश में लागू हो, तभी कर प्रणाली का सरलीकरण होगा !

 

उन्होंने ने कहा की जी एस टी कर प्रणाली की सफलता जभी संभव है जब कर एकत्रित करने वालों का दायरा व्यापक रूप से विकसित हो जिससे राजस्व में वृद्दि हो तथा स्वयं कर पालने की भावना विकसित हो और यह तभी संभव है जब कर प्रणाली की जटिलताएं और विसंगतियिों को दूर किया जाए! उच्च समिति द्वारा वर्ष 2009 में एक चर्चा प्रपत्र जारी किया गया था और तब से लेकर अब तक 5 वर्षों में उच्च समिति द्वारा जी एस टी के विषय में एक शब्द भी सार्वजानिक नहीं किया गया ! उन्होंने कहा की समाचारपत्रों में छपे समाचारों के अनुसार राज्य सरकारें और केंद्र सरकार राजस्व बांटने पर तो चर्चा में लगे हैं किन्तु जी एस टी के किस स्वरुप के आधार पर राजस्व आएगा और राजस्व एकत्र करने वालों की क्या जमीनी समस्याएं क्या हैं, प्रस्तावित स्वरूप पर उनकी क्या राय है, इन पर उच्च समिति ने आज तक कोई चर्चा ही नहीं की है और व्यापारियों एवं अन्य वर्गों से चर्चा करना जरूरी भी नहीं समझा गया है

 

श्री भरतिया एवं श्री खण्डेलवाल ने

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