राष्ट्रीय (21/09/2014) 
अंतागढ़ में भाजपा को जीत के साथ पूरे छत्तीसगढ़ की नाराजगी भी मिली
 प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि भाजपा ने अंतागढ़ उपचुनाव में जीत के साथ-साथ पूरे छत्तीसगढ़ की जनता की नाराजगी भी हासिल की है। नोटा का प्रावधान लागू करने के बाद चुनाव में पहली बार नोटा को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है। विपक्षी दल कांग्रेस के साथ-साथ 10 निर्दलीय प्रत्याशियों के नाम वापसी के लिये पैसा प्रशासन और पुलिस का जो कुचक्र रचा गया, उससे स्पष्ट है कि भाजपा अपनी हार से कितनी डरी हुयी थी। अंतागढ़ के मतदाताओं ने बड़े पैमाने पर मतदान में हिस्सा न लेकर और नोटा का बटन दबाकर भी अपनी नाराजगी को जाहिर किया है। यह उपचुनाव निरस्त किये जाते और फिर से चुनाव करवाये जाते तो ज्यादा अच्छा मुकाबला होता, भाजपा कांग्रेस सहित सभी प्रत्याशियों में स्वस्थ राजनैतिक प्रतिस्पर्धा होती, छत्तीसगढ़ में और देश में लोकतंत्र को बल मिलता। लोकतांत्रिक परंपराओं की यह बहाली देश और छत्तीसगढ़ के लिये बस्तर में होना बहुत आवश्यक था और है। कांग्रेस इसे भली-भांति इसलिये भी समझती है क्योंकि नंदकुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेन्द्र कर्मा, उदय मुदलियार, दिनेश पटेल, योगेन्द्र शर्मा, अभिशेक गोलछा, गोपी माधवानी सहित अनेक कांग्रेस नेताओ ने अपने प्राणों की कुर्बानी इसी बस्तर में लोकतंत्र की पुर्नस्थापना के लिये दे दी। अंतागढ़ उपचुनाव में हुआ घटनाक्रम लोकतंत्र की स्वस्थ परंपराओं पर कुठाराघात साबित हुआ। भारतीय लोकतंत्र और छत्तीसगढ़ के इतिहास में इसे एक दुर्भाग्यपूर्ण और स्तरहीन राजनीति के अध्याय के रूप में याद रखा जायेगा। छत्तीसगढ़ प्रदेश में यह एक ऐसा चुनाव जिसमें विपक्ष नहीं था। विपक्ष की अनुपस्थिति सुनिष्चित करने के लिये भाजपा ने हर तरह की कुचाल चली। विपक्ष की अनुपस्थिति में हुये उपचुनाव की जीत पर भाजपा भले ही अपनी पीठ थपथपाती रहे, अंतागढ़ के गैरलोकतांत्रिक घटनाक्रम को छत्तीसगढ़ के लोगो ने पसंद नहीं किया है। सब में भाजपा के प्रति गहरी नाराजगी है। भाजपा ने अंतागढ़ उपचुनाव में जो जीत हासिल की है, लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों की अनदेखी करके प्राप्त की है।
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