राष्ट्रीय (22/11/2014) 
मेयर को राज्य निर्वाचन आयुक्त के वैधानिकता का ज्ञान नहीं : सभापति

रायपुर। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता व नगर निगम में सभापति संजय श्रीवास्तव ने महापौर द्वारा राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति पर दिये गए बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अधिवक्ता होने के बावजूद महापौर को राज्य निर्वाचन आयुक्त की वैधानिकता व नियुक्ति के संबंध में जानकारी न होना हास्यास्पद है। श्री श्रीवास्तव ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 के तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं के संबंध में प्रावधान किए गए हैं। इन्हीं प्रावधानों के अंतर्गत अनुच्छेद 243 (क) के अनुसार राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है। वहीं अनुच्छेद 243 (क)2 के अनुसार राज्य निवार्चन आयुक्त की नियुक्ति की गई है। इसी प्रावधान में यह स्पष्ट किया गया है कि राज्य निर्वाचन आयुक्त का उसके पद से उसी रीति से और उसी आधार पर हटाया जाता है। इसका अर्थ यही है कि राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद उच्च न्यायालय के न्यायधीश यके समकक्ष है। संविधान के अनुच्छेद 243 (क)1 के प्रावधान का पालन करते हुए छग के माननीय राज्यपाल ने राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की है। अनुच्छेद 243 (क)2 के प्रावधान के अनुसार छग राज्य शासन ने राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद को उच्च न्यायालय के पद के समकक्ष घोषित किया है। देश के अन्य राज्यों में भी राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद का कार्यकाल पूरा करने के बाद उसे समकक्ष घोषित किया है।  कुछ राज्यों में तो राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद का कार्यकाल पूरा करने के बाद उसे उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की भांति सुविधाएं भी दी जाती है।
संविधान के प्रावधानों और सर्वाच्च न्यायालय के निर्णयों के अनुसार स्थानीय निकायों के निर्वाचन के संबंध मं राज्य निर्वाचन आयोग को बिलकुल वैसे ही अधिकार निर्वाचन के संचालन के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के लिए प्राप्त हैं जैसे कि संसद और राज्य विधान मंडलों के निर्वाचन के संबंध में भारत निर्वाचन आयोग को प्राप्त हैं।
अनुच्छेद 243 के अनुसार नगरपालिका निर्वाचन क लिए निर्वाचक नामावली तयारी करने आर निर्वाचन करवाने का अधिकार राज्य निर्वाचन आयोग को है। नगरपालिका निर्वाचन नियमों के अनुसार परिसीमन का कार्य राज्य शासन द्वारा किया जाता है, न कि राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा। इस प्रकार परिसीमन के लिए राज्य निर्वाचन आयुक्त पर दोषारोपण करना भी असंवैधानिक है और संविधि के विरूद्ध है।
राज्य निर्वाचन आयुक्त का पद एक संवैधानिक पद है। उसे केवल संसद में (लोकसभा और राज्यसभा) में महाभियोग लाकर ही उसके पद से हटाया जा सकता है। इसके लिए संविधान में विस्तृत प्रक्रिया निर्धारित है। अत: राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद की गरिमा के विरूद्ध अनुपयुक्त मंच पर किसी प्रकार का निराधार कथन करना संविधान के प्रावधानों की अवहेलना करना है।
यह स्पष्ट है कि भारत निर्वाचन आयोग में भी सेवानिवृत्त अधिकारियों को निर्वाचन आयुक्त या मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया जाता है। देश के सभी राज्यों में राज्य निर्वाचन आयुक्त भी सेवानिवृत्त अधिकारी होते हैं। भारत निर्वाचन आयोग के निर्वाचन आयुक्तों की भांति राज्य निर्वाचन आयुक्त भी संवैधानिक पद पर संविधान क ेप्रावधानों के अनुसार नियुक्त होते हैं। अत: राज्य निर्वाचन आयुक्त को किसी राज्य सरकार का संविदा नियुक्त अधिकारी कहना भारत के संविधान के प्रावधानों की अवहेलना करना है। राज्य निर्वाचन आयुक्त के विरूद्ध संसद में महाभियोग के तहत ही आरोप लगाए जा सकते हैं। उच्च न्यायालय के न्यायधीश के समकक्ष संवैधानिक पदधारी राज्य निर्वाचन आयुक्त क विरूद्ध अनुपयुक्त मंप पर निराधार वक्तव्य देना न केवल संवैधानिक पद की मानहानि करना है बल्कि संविधान की भी उपेक्षा करना है। इस तरह का असंवैधानिक कृत्य करने के लिए दोषी व्यक्तियों के विरूद्ध भारतीय दंड संहिता के तहत कार्यवाही करना उपयुक्त है। श्री श्रीवास्तव ने कहा कि इस तरह की असंवैधानिक बयानबाजी महापौर को वो भी एक अधिवक्ता होने के बाद कतई शोभा नहीं देता है। उनका इस तरह का वक्तव्य उनके मानसिक दिवालियापन की निशानी है। महापौर के बयानो से कांग्रेस की उल-जलुल बातें करने और तथ्यहिन आरोप लगाने की सच्चाई सामने आ गई है।

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