राष्ट्रीय (04/04/2015) 
छोटे व्यवसायियों की वित्तीय जरूरतों के लिए मुद्रा का नियामक बनना बेहद जरूरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आगामी 8 अप्रैल को नई दिल्ली में माइक्रो एंड स्माल डेवलपमेंट रिफाइनान्स एजेंसी (मुद्राको लांच किये जाने का मुद्दा देश के नॉन कॉर्पोरेट सेक्टर में बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि यह अपनी तरह के पहला ठोस कदम है जिसके द्वारा देश के छोटे व्यावसायिओं को व्यवसाय हेतु ऋण देने के लिए एक पृथक संस्थान का गठन हो रहा है ! नॉन कॉर्पोरेट सेक्टर के विभिन्न वर्गों के राष्ट्रीय एवं राज्यस्तरीय संगठनों की शिखर संस्था एक्शन कमेटी फॉर फॉर्मल फाइनेंस फॉर नॉन कॉर्पोरेट स्माल बिज़नेस नेकेंद्र सरकार की इस पहल को दूरगामी एवं क्रन्तिकारी पहल बताया है ! एक्शन कमेटी गत अगस्त 2014 सेइस मुद्दे पर देश भर में जनमत बना रही थी !


एक्शन कमेटी के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर प्रवीन खण्डेलवाल ने कहा की नेशनल सैंपल सर्वे 2013 के अनुसार देश के नॉन कॉर्पोरेट सेक्टर में 5 .77 करोड़ व्यावसायिक प्रतिष्ठान हैं जिनमें से 30 प्रतिशत मैन्युफैक्चरिंग में, 36 प्रतिशत व्यापार में एवं 34 प्रतिशत सर्विस क्षेत्र में हैं ! लगभग 2 .07 करोड़ छोटा व्यापार, 1 .72 करोड़ लघु उद्योग तथा 1 .97 करोड़ सर्विस प्रदाता हैं ! इन सभी वर्गों के केवल 4 प्रतिशत हिस्से को ही बैंकों से ऋण मिल पाता है जबकि बचे 96 प्रतिशत हिस्से को अपनी वित्तीय जरूरतों की पूर्ती इनफॉर्मल स्रोतों से करनी पड़ती है जिसका बड़ा हिस्सा अघोषित ही रहता है ! वित्तीय मामलों में अब तक उपेक्षा झेल रहे इस सेक्टर को अब मुद्रा के माध्यम से ऋण मिल पायेगाइसलिए मुद्रा योजना नॉन कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए बेहद अहम है 

इक्रा के एक सर्वे के अनुसार सेल्फ हेल्प ग्रुपनॉन बैंकिंग फाइनेंस कम्पनीज एवं माइक्रो फाइनेंस कम्पनीज को मिलाकर देश में 30 सितम्बर, 2014 तक  माइक्रो फाइनेंस का पोर्टफोलियो 780 बिलियन का है जिसकीआगे दो वर्षों में 1 ट्रिलियन होने की सम्भावना है ! मार्च 2016 तक नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनीज़ एवं माइक्रोफाइनेंस कंपनीज़ की ऋण राशि 360 -420 बिलियन हो जायेगी ! इस दृष्टि से मुद्रा नॉन कॉर्पोरेट सेक्टर केवित्तीय विकास और रि-फाइनेंस में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा ! बैंकों द्वारा प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग मेंसे बचे हुए धन से मुद्रा को 20 हजार करोड़ रुपये का कैपिटल प्राप्त होगा और इसी कारण से मुद्रा के द्वारा मिलने वाले ऋण पर ब्याज की दर काफी कम रहने की सम्भावना है !


कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैटके राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.सी.भरतिया ने मुद्रा को एक नियामक संस्थान बनाये जाने की जोरदार पैरवी करते हुए कहा की वर्तमान में सेल्फ हेल्प ग्रुपनॉन बैंकिंग फाइनेंस कम्पनीजमाइक्रो फाइनेंस कम्पनीजट्रस्टसोसाइटी आदि जो नॉन कॉर्पोरेट सेक्टर को ऋण उपलब्ध कराते हैंअनेक विभिन्न कानूनो के अंतर्गत आते हैं ! नॉन कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए वित्तीय क्षेत्र में एकरूपता बनाने केलिए इन सभी को मुद्रा के अंतर्गत लाते हुए मुद्रा को नेशनल हाउसिंग बैंक की तर्ज़ पर  नियामक बनाया जाए!

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