एक दिया मैं भी जलाऊ, के आग भूझने को है।
एक दिया तुम भी जालाओ, के आस भुझने को है।
तीखी सी रौशनी तो है चारों ओर,
पर उजाला तो लगता एक साया सा है।
चमक तेरे चेहरे की भी स्कुन देती नहीं अबतो,
कौन कमबख्त आज सूरज को ढक आया है।
एक दिया मैं भी जलाऊ....
बे आवाज़ गलिया है वीरान पड़ी है राहें,
उजड़ी सी है बस्तियां बियाबान है शहर।
मगर अपने है कहीं ना कहीं,
यह एहसास भी तो बचाना है।
एक दिया मैं भी जलाऊ....
आंखो आंखो से ना सही,
दिल से दिल तक तो पैग़ाम पहुंचाना है।
अपना हो या कोई गैर हो आज मुश्किल में,
आत्म लौ को जलाकर उसको भी तो बचाना है।
एक दिया मैं भी जलाऊ....
इन्सानियत धर्म ईमान से ऊंची हो आज,
बोल कर ही नहीं कुछ कर के दिखाना है।
चंद दानों की खातिर ना पेट की आग जलाय किसी घर को,
बस