(28/07/2016) 
दलितों की दुर्दशा का सच....
हाल ही में दबंगो दुवारा गुजरात के ऊना में दलितों के साथ किया गया अमानवीय व्यवहार ने सारे देश के बहुजनो को हिलाकर रख दिया वैसे तो देशभर में आये दिन इस प्रकार की घटनाये देखने में व् सुनने में आती रहती है ।

पर इस घटना से एक बात साफ दिखाई देती है की दबंगो के हौंसले कितने बुलंद है की वो दलितों के साथ मार् पिटाई करके अपनी दबंगई का साबुत सोशल मीडिया पर वायरल करते है उन्हें कानून का तनिक भी भय नहीं है इससे प्रतीत होता है कि वो दूषित मानशिकता के  लोग यह दिखना चाहते है की आप लोग आज भी गुलाम है और हम मालिक हैहम इस देश में जैसा चाहेंगे वैसा करेंगे कोई भी हमारा बाल बांका भी नहीं कर सकता ।

इस घटना के विडियो को देखकर रोंगटे खड़े हो जाते है और ऐसा लगने लगता है कि देश में सरकार नाम की कोई चीज  है की नहीं और अगर है तो उनकी इन दबंगो के साथ मिलीभगत होने की बू सी आती है । इस प्रकार की देश में यह पहली  घटना नहीं इससे पहले भी इस प्रकार की घटनाये होती रही है जैसे कि  अक्टूबर 2002 में हरियाणा के जिला झाझर में  हुई जिसमे 5 दलितों को गाय की खाल उतारने के बहाने दबंगो ने  5 दलित  युवाओं को बुरी तरह पिट-पिट कर मौत के घाट उतार दिया था ।

इन दबंगो ने समय समय पर  बहुजन समाज में दहसत फ़ैलाने  का काम किया जिससे की वो देश की धन धरती पर काबिज रहे  सके और बहुजन समाज के लोग उनकी गुलामी करते रहे  है । अभी हाल ही में हरियाणा के रोहतक जिले में एक दलित युवती  के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया इन्ही दबंगो ने इस युवती के साथ पहले भी सामूहिक बलात्कार किया था जिसके कारण ये दबंग लोग जेल में थे और अभी जमानत पर छूट कर आये थे।

पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के गौतम बुध्द नगर के दादरी में एक मुस्लिम व्यक्ति अख़लाक़ को इस लिए मौत के घाट उतार दिया की उनके घर में गौमास है । व् उसके बेटे को  पिट पिट कर बुरी तरह घायल कर दिया |

पिछले ही वर्ष हरियाणा के फरीदाबाद जिले के एक गावँ सुनपेड़  में एक दलित व्यक्ति जितेन्द्र के सोते हुए  परिवार पर गावँ के ही दबंगो ने पैट्रॉल छिड़क कर  आग लगा दी थी जिसमे उनके दो माशूम बच्चे जलकर मर गये थे  और जितेंद्र की पत्नी रेखा बुरी तरह जल गई थी जिसका  अभी तक इलाज चल रहा है । पता चला है की इस गुजरात की घटना से घबराकर हरियाणा के बी.जे.पी. सरकार ने चुपके से जितेंद्र को सरकारी नौकरी का ऑफर दिया है कही ये मुद्दा फिर न उठ जाये ।

पिछले ही वर्ष दलित छात्र रोहित वेमुला की मृत्यु पर पुरे देश में खूब बवाल हुआ था लकिन दोषियों का कुछ नहीं हुआ ।

देशभर में दलितों  के साथ इस  प्रकार की घटनाये आम है जिनकी खबर तक नहीं बन पाती है और दोषी युही घूमते रहते है |

गुजरात की इस  घटना को थोड़ी और गहराई से देखे तो हम पाते है की देशभर में  इस प्रकार की या इससे भी और घ्रणित घटनाएं होती रहती है पर इस घटना के वीडियो का सार्वजिनिक वायरल करना ये साबित करता है की वो (दूषित मानशिकता के लोग) बहुजन समाज को एक सन्देश देना चाहते है कि उनका दबंगई में वर्चस्व है ।

गुजरात की इस घटना से तो यही साबित होता है की उन्होंने एक व्यक्ति को नहींएक परिवार को नहीं,एक जाति एक समाज को नहीं उन्होंने तो पुरे के पुरे बहुजन समाज को मारा है । परंतु  दलित समाज  के नेताओं ने  इसके विपरीत समझा और ये मान के चले की ये घटना एक व्यक्ति के साथएक परिवार के साथ या एक जाति के साथ हुई है और इन  गुलाम दलित नेताओं की जुबान तक नहीं खुली जैसा की हमेसा होता है किसी एक नेता का नाम लेना उचित नहीं होगा सारे के सारे दलित नेता ऐसे ही है । अगर किसी ने इस घटना का पुरजोर विरोध किया तो वो बहिन मायावती है जिसकी वजह से बहुजन समाज में एक बार फिर जान पड़ती सी दिखाई दे रही है |

इस बात को देश के विशेषतौर पर गुजरात के दलितों ने अच्छी तरह से समझा की ये घटना एक व्यक्तिएक परिवारएक जातिएक समाज की नहीं है ये घटना पुरे बहुजन समाज की है तभी तो गुजरात के लोगो ने देश में पहली बार सड़कों पर उतरकर इस घटना का पुरजोर विरोधकर  अपनी ताकत का अहसास कराया और देश के अन्य दलितों को भी एक रास्ता दिखाया है कि हमें एकसूत्र में बांध कर इस प्रकार की घटनाओं का मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए नाकि हमें किसी नेता के सहारे की जरुरत होनी चाहिए वैसे भी  वो लोग राजनैतिक पार्टियों के गुलाम है उनसे किसी भी प्रकार की उम्मीद करना अपने आप को धोका देना है । इन राजनैतिक पार्टियों के गुलामो को भी सबक सिखाने का समय आ गया है और इन गुलाम नेताओ का भी हमें हर छेत्र में विरोध करना चाहिए ।

धन्य है ये गुजरात के भाई बहन जिन्होंने इस घटना का पुरजोर विरोध किया और मनुवादियो को सोचने के लिए मजबूर किया। ये भाई बहेने इस आंदोलन के लिए हमेशा याद किये जायेंगे और देश में दलितों के आंदोलन के प्रेरणा स्रोत्र रहेंगे |

इन ( दूषित मानशिकता के लोग) की दबंगई की इसी कड़ी में बी.जे.पी. के उपाध्यक्ष  दयाशंकर सिंह ने बी.एस.पी. की अध्यक्षा बहिन मायावती जो की उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी और बहुजन समाज की एक मजबूत निडर व् प्रखर नेत्री है, जो भी परस्तिथि रही हो बहिन जी ने  इन मनूवदियो को अपना लोहा मनवाती रही है और विश्व में उनको लेडी आयरन के नाम से जाना जाता है उन पर एक अभद्र टिपणी कीयह घटना भी ( दूषित मानशिकता के लोग) की दूषित सोच को  सिद्ध करती है कि चाहे दलित समाज का कोई व्यक्ति किसी भी होदह पर पहुंच जाये उसकी इस देश में कोई कद्र नहीं है  जो मनुवादी लोग चाहेंगे वो ही होगा ।

अगर इस आजाद देश में इतने बड़े और मजूबत व्यक्ति की ये स्तिथि है तो आसानी से अंदाजा  लगया जा सकता है कि आम दलित की किया स्तिथि होगी ।

दलितों की इस दुर्दशा का मुख्य कारण मनुवादी तो है ही लकिन दलित समाज के नेता भी मुख्य भूमिका में है इस भोले भाले दलित समाज की मनुवादियो के साथ साथ दलित नेताओ ने  भी खूब सवारी की  है और अब  समय आ गया है की इनको अपने ऊपर से उतार कर नीचे फेक दे और उनको उनकी औखत दिखा दे,  जिससे निश्चित तौर पर दलित समाज की स्तिथि में सुधार आयेगा |

जिस प्रकार से बी.एस.पी. के कार्यकर्ताओ व् बहुजन समाज के लोगो ने इस अभद्र टिपणी का मुंहतोड़ जवाब दिया है उससे मनुवादी लोग बैकफुट पर दिखाई दिये और इससे लगने लगा है कि अब बहुजन समाज के साथ अन्याय अत्याचार आसान नहीं होगा ।

बहिन जी पर इस अभद्र टिपणी के बाद जो बहुजन समाज का  प्रतिकार हुआ है उससे ऐसा लगने लगा है जैसे की 1990 के आस पास  का समय फिर वापस आ गया है जब मान्यवर कांशी राम जी के नेतृत्व में बहुजन समाज अपने सम्मान की लड़ाई में उचाईयो की ओर तेजी से बढ़ रहा था तब बहुजन समाज अपने सम्मान में अपनी ताकत को प्रखर करते हुए नारा लगा रहा था  तिलक तराजू  और तलवार उनको..

मान्यवर कांशी राम जी के इस आंदोलन के कारण ही ( दूषित मानशिकता के लोग) के हौसले प्रस्त होते दिखाई दे रहे थे ।

एक बहुत अच्छी बात देखने में आई कि बहुजन समाज के जो लोग बहिन जी पर तरह तरह की टिपणी करते थे वो लोग भी इस घटना में बहिन जी के साथ खड़े दिखाई दिए। जिससे ये बात सिद्ध होती दिखाई दे रही है की बहुजन समाज के लोग वैचारिक तौर पर अलग हो सकते है लकिन जब भी बहुजन समाज केआंदोलन की बात आएगी तो पूरा का पूरा बहुजन समाज एक दिखाई देगा जो की बहुजन समाज के आंदोलन के लिए अच्छे संकेत है |

लेखक- डॉ खजान सिंह, भारतीय समन्वय संगठन (लक्ष्य)

लेखक के अपने विचार है,

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