(09/12/2016) 
वित्त मंत्री ने देश से झूठ बोला -आप
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की गोपनीयता के मसले पर भारत की जनता से झूठ बोला है। पीएम मोदी ने नोटबंदी की जानकारी अपने कुछ दोस्तों के साथ पहले ही साझा करके उनका 3 लाख करोड़ रुपए का कालाधन सफ़ेद करा दिया था।

आप नें कहा की एक अखबार की खबर के हवाले से यह तथ्य सामने आए हैं कि सितम्बर महीने की 15 से 30 तारीख़ के बीच सरकारी बैंकों में अप्रत्याशित तौर पर 3 लाख़ करोड़ रुपए की एफ़डी कराई गई थीं जिन्हें अगले महीने तुड़वा भी दिया गया था। यह ख़बर और इसमें मौजूद तथ्य वित्त मंत्री अरुण जेटली के उन दावों को भी झूठा साबित कर देते हैं जिसमें वित्त मंत्री यह दलील देते हुए नज़र आए थे कि सितम्बर महीने की तिमाही में 7वें वेतन आयोग की वजह से बैंक डिपॉज़िट बढ़े थे। बिज़नेस स्टैंडर्ड अख़बार की यह ख़बर यह भी बताती है कि सितम्बर महीने में 3 लाख करोड़ रुपए किसी वेतन खाते, बचत खाते या फिर चालू खाते में जमा ना होकर फ़िक्स डिपॉज़िट कराए गए थे।

पार्टी कार्यालय में आयोजित की गई प्रेस कॉंफ्रेस में बोलते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता आशीष खेतान ने कहा कि “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की गोपनीयता को अपने कुछ चुनिंदा दोस्तों को कई महीने पहले ही बता दिया था और पीएम ने उनके कालेधन को सफ़ेद कराने में उनकी मदद की थी। दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल ने नोटबंदी के बाद 12 नवम्बर को प्रेस कॉंफ्रेंस करके देश को यह बताया था कि कैसे चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के आख़िरी महीने यानि सितम्बर में देश के बैंकिंग सिस्टम में अप्रत्याशित तौर पर तक़रीबन 4 लाख करोड़ रुपए जमा किए गए और निश्चित तौर पर यह कोशिश कालेधन को सफ़ेद में तब्दील करने की थी। इसके जवाब में वित्त मंत्री अरुण जेटली जी की दलील यह थी कि ‘वो सारा पैसा 7वें वेतन आयोग के तहत किए गए 45 हज़ार करोड़ रुपए के भुगतान का असर था। वित्त मंत्री जी की यह दलील बेबुनियाद और झूठी है।

बिज़नेस स्टैंडर्ड अख़बार का एक ख़ुलासा चौंका देने वाला है, अख़बार द्वारा किए गए इस ख़ुलासे के मुताबिक सितम्बर महीने में सार्वजनिक क्षेत्र यानि सरकारी बैंकों में जमा हुई राशि में से 3 लाख करोड़ रुपए की राशि तो सिर्फ़ 15 सितम्बर से 30 सितम्बर के बीच के 15 दिन में जमा की गई थी, और यह सारी राशि किसी वेतन खाते, बचत खाते या फिर किसी चालू खाते में नहीं बल्कि फ़िक्स डिपॉज़िट (FD) के माध्यम से जमा कराई गई थी और हैरानी की बात तो यह है कि इन फिक्स डिपॉज़िट को अगले ही महीने तुड़वा भी दिया गया था। यह सारे तथ्य ना केवल वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली जी के 7वें वेतन आयोग वाली दलील को झूठा साबित करते हैं बल्कि देश के साथ एक बहुत बड़े धोख़े और घोटाले की तरफ़ भी इशारा करते हैं।

एक और चौंका देने वाला ख़ुलासा बिज़नेस स्टैंडर्ड की ख़बर से हुआ है कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के चीफ़ इकॉनोमिक एडवाइज़र श्री सौम्यकांति घोष ने इसी साल के मार्च महीने में बिज़नेस स्टैंडर्ड में उनके द्वारा लिखे गए एक कॉलम में और एसबीआई की एक जारी हुई एक रिपोर्ट में उन्होने यह लिखा था कि बहुत जल्द पुराने नोट बंद कर दिए जाएंगे जिसके चलते कुछ लोग अपने कालेधन को या तो गोल्ड या फ़िर डॉलर में तब्दील करने लगे हैं।

एसबीआई के एक उच्च अधिकारी के द्वारा मार्च महीने में ही नोटबंदी के संदर्भ में रखे गए इन तथ्यों के बाद प्रधानमंत्री जी का वो दावा झूठा साबित हो जाता है जिसके तहत पीएम मोदी नोटबंदी के फ़ैसले को टॉप सीक्रेट बता रहे थे। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपने ख़ास दोस्तों को पहले ही यह बता दिया था कि उनकी सरकार नोटबंदी का फ़ैसला लेने जा रही है और जिस-जिस के पास भी कालाधन है वो उसे पहले ही सफ़ेद में तब्दील कर ले। क्या इस पूरे मामले की जांच होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए

एक तरफ़ देश के वित्त मंत्री हैं जो इस मामले की जांच नहीं होने देना चाहते तो वहीं दूसरी तरफ़ हैं दो बड़े अर्थशास्त्री जिनमें एक हैं सरकार के पूर्व सांख्य-शास्त्री श्री प्रणव सेन, जिनका कहना है कि ‘इस पूरे मामले से गंद आती है और इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए’ और दूसरे हैं आरबीआई के पूर्व अधिकारी विपिन मलिक जिनका कहना है कि ’सितम्बर महीने में जो भारी मात्रा में पैसा बैंकों में आया है वो अभूतपूर्व है, अव्यवहारिक है और अप्राकृतिक है। इसकी जांच होनी चाहिए कि यह पैसा किस-किस ने जमा कराया और किस-किस ने निकलवाया

एक तरफ़ एक आम आदमी अपने खाते में ढाई लाख रुपए जमा करता है तो उसके पास नोटिस भेज कर उसके घर या दुकान पर रेड़ मारी जा रही है और दूसरी तरफ़ घर की महिलाओं ने अपनी अलमारी में कितने आभूषण रखें हैं इस पर सरकार नज़र रख रही है। लेकिन दूसरी तरफ़ नोटबंदी से ठीक पहले बैंकों में 4 लाख़ करोड़ रुपया जमा करके उसे सफ़ेद कर लिया जाता है तो सरकार इसकी जांच कराने को तैयार नहीं है। बिज़नेस स्टैंडर्ड अख़बार का यह खुलासा यह साबित करता है कि यह बहुत बड़ा घोटाला है और आम आदमी पार्टी भी शुरु से ही यह बात कह रही है कि यह आज़ाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला है जिसके तहत मोदी सरकार ने 8 लाख़ करोड़ रुपए का घोटाला किया है और इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए

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