राष्ट्रीय (25/05/2015) 
सुर्खियां समेटने वाली सरकार बनाम निवेश समेटने वाली सरकार- शोभा ओझा

25 मई, 2015, साल 2014 में श्री नरेंद्र मोदी अच्छे दिनसुशासनआसान कारोबारजीडीपी में 10 प्रतिशत बढ़ोत्तरी, 5 साल में 10 करोड़ रोजगार पैदा करनाडिजिटल इंडियाकिसान को फसल की कीमत में (लागत$50 प्रतिशत का मुनाफा)कालाधन वापस लाने व हर भारतीय के खाते में 15 लाख रु. जमा करवाने का निश्चयमहंगाई कम करने तथा एक नई अर्थव्यवस्था के गठन के सपने दिखाकर 2014 में सत्ता में आए थे।

 

नरेंद्र मोदी ने अर्थशास्त्रियों और भारतीय उद्योग को नए आर्थिक ब्लूप्रिंट का सपना दिखाया था। एक साल बीत चुका है। आर्थिक ब्लूप्रिंट सुर्खियां आकर्षित करने वाला प्रिंट बन गया है। व्यक्तिगत प्रचार प्रसार, ईवेंट मैनेज़मेंट और लुभावने नारों की कभी न मिटने वाली चाह ने मोदी सरकार को सुर्खियां आकर्षित करने वाली सरकार बना दिया हैन कि निवेश बढ़ाने वाली सरकार।

 

एक मजबूत अर्थव्यवस्था का किया कांग्रेस ने निर्माण 

वैश्विक मंदी और भाजपा के नकारात्मक अभियान के बावजूद कांग्रेस की यूपीए सरकार के 10 सालों (2004 से 2014) के दौरान भारत में सर्वाधिक आर्थिक वृद्धि हुई। भारतीय अर्थव्यवस्था 7.6 प्रतिशत के औसत से बढ़ी। प्रतिव्यक्ति आय 2004 में 24,143 रु. से तीन गुना बढ़कर 2014 में 68,747 रु. हो गई। उद्योग में 7.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई। सेवा क्षेत्र 9.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा और कृषि में 4.1 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की गई।

विदेशी मुद्रा भंडार 2003-04 में 113 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से बढ़कर 2013-14 में 300 बिलियन अमेरिकी डाॅलर हो गया।2004-14 के बीच भारत में 318 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का विदेशी सीधा निवेश (एफडीआई) प्राप्त हुआ। भारतीय निर्यात प्रतिवर्ष16 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से बढ़कर 31.5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर हो गया। ग्रामीण इलाकों में औसत आय में प्रतिवर्ष 17.5प्रतिशत की वृद्धि हुई। अनाज का उत्पादन 213 मिलियन टन से बढ़कर 263 मिलियन टन हो गया और कृषि निर्यात 2002-03 के7.5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से बढ़कर 2013-14 में 42.6 बिलियन अमेरिकी डाॅलर हो गया। विभिन्न अधिकार आधारित कानूनों और योजनाओं में सभी को सम्मिलित और समावेशी विकास करके सामाजिक सुरक्षा के घेरे में लाया गया। इसके परिणामस्वरूप पिछले 10 सालों में 14 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में अभूतपूर्व सफलता मिली।  

 

अवसर गंवाएमौके खोए- देश को वित्तीय दिशाहीनता की ओर धकेला

देश को विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए मोदी सरकार के पास न तो आर्थिक दूरदृष्टि हैऔर न ही राजस्व संबंधी दिशा और वित्तीय समझदारी। वरिष्ठ भाजपा नेता और मोदी के सलाहकार अरुण शौरी ने भी स्पष्ट रूप से कहा हैकि सरकार आर्थिक तौर से दिशाहीन है। इसका वर्णन निम्न बिंदु करते हैं:-

(क) काॅर्पोरेट और उद्योग मोदी के जादू में विश्वास खो रहे हैं

    वाकपटुता के मुकाबले मोदी सरकार की वास्तविक आपूर्ति में इंडिया इंक का विश्वास खो रहा है। इंडिया इंक चाहता है कि नरेंद्र मोदी भाषण देने की बजाए ठोस काम करना प्रारंभ करें।

  2014-15 में आठ प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों (कोयलेकच्चा तेलप्राकृतिक गैसरिफाईनरीउर्वरकबिजलीस्टील) में वृद्धि 3.5 रही,जो 2009 के बाद सबसे कम है। दिसंबर की तिमाही में सीमेंट उद्योग में शून्य वृद्धि दर्ज की गई और कुल लाभ 26 प्रतिशत घट गया। मार्च 2015 में सीमेंट उद्योग के उत्पादन में 4.2 प्रतिशत की कमी आई। इंजीनियरिंग कंपनियों में बिक्री में शून्य वृद्धि दर्ज की जा रही है। रियल इस्टेट सेक्टर में नकारात्मक विकास हो रहा है। इंडेक्स आॅफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (आईआईपी) मार्च में केवल2.1 प्रतिशत बढ़ा।

  पिछले साल के मुकाबले 2015 में निर्यात में 11 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है।

  मार्च 2015 की तिमाही में 315 बड़ी कंपनियों की कुल बिक्री में 2014 के मुकाबले 7 प्रतिशत की कमी आई है। यहां तक कि कच्चे माल और बिक्री का अनुपात भी मार्च 2015 में 40 प्रतिशत रहाजो पिछले दो सालों में सबसे कम है।

  उद्योग गंभीर चिंता जाहिर कर रहे हैं।दीपक पारिखचेयरमैनएचडीएफसी बैंक ने हाल ही में कहाकारोबार आसान बनाने के लिए जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं आया है। एक महत्वपूर्ण विदेशी निवेशक जिम रोजर्स ने कहा, मेरे पास अभी भी भारतीय शेयर हैं। मैं सोच रहा हूंकि मैं इन्हें रखूं या नहींक्योंकि एक साल तक कोई कार्य नहीं हुआ हैऔर लगता हैकि अब आगे भी कुछ नहीं होगा।

  उद्योग की दो नई चिंताएं सामने आई हैं। पहली हैपुरानी तारीखों पर टैक्स की मांग के रूप में टैक्स आतंकवाद। विदेशी संस्थागत निवेशकों के शोरगुल के कारण इसके लिए एक कमेटी का गठन कर दिया गया है। दूसरी चिंता हैभाजपा व संघ परिवार के अनियंत्रित व बेलगाम नेताओं की जो एक पूर्वनिर्धारित एजेंडा के तहत् सामाजिक भाईचारे को तोड़ने में लगे हैंइसके कारण निवेशकों को गलत संदेश मिल रहा है।

(ख) रोजगार का नाश

2014 के आखिर में वेतन बढ़ोत्तरी गिरकर मात्र 3.8 प्रतिशत रह गईजो जुलाई 2005 के बाद सबसे कम है। यह उपभोक्ता मुद्रास्फीति से काफी कम है। प्रमुख मजदूरी आधारित क्षेत्रों- टेक्सटाईललेदरमेटलआॅटोमोबाईलजेम्स एवं ज्वेलरीपरिवहन,आईटी-बीपीओहैंडलूम और पाॅवरलूम में मंदी दिखने लगी है।

  साल में दो करोड़ नौकरियां देने के वायदे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार के पहले साल में केवल 17.5 लाख नौकरियां निर्मित हुईं।

   फैक्ट्रीज़ एक्टअपरेंटीसेस एक्ट और अन्य श्रम कानूनों को कमजोर बनाने के कारण मोदी सरकार के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन किए जा रहे हैं। प्रदर्शन करने वाले विरोधी यूनियनों में भाजपा द्वारा स्पाॅन्सर्ड भारतीय मजदूर संघ भी है।

 

(ग) मेक इन इंडिया का छलावा

   मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया को एक राजनीतिक नारे के तौर पर लगातार इस्तेमाल किया है। परंतु मोदी सरकार ने उद्योगों को उत्पादन में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में बराबरी का दर्जा दिलवानेइनवर्टेड टैक्स संरचना को बदलनेकच्चे माल की लागत पर नियंत्रण करने एवं लाॅजिस्टिक्स की स्थिति सुधारने बारे एक भी कदम नहीं उठाया। इस कारण मेक इन इंडिया एक नारा बनकर रह गया है।

  जनवरी 2015 में निर्यात 23.88 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक गिर गया हैजो कि एक वर्ष पहले के 26.89 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के निर्यात के आंकड़े से कम है। यहां तक कि कृषि क्षेत्र में गेंहूंचावल और मक्का का निर्यात साल 2014-15 में 29 प्रतिशत या 135 लाख टन के बराबर घट गया है। दूसरी वस्तुओं जैसे चायकाॅफीतम्बाकूमसाले आदि में भी नकारात्मक विकास हुआ है। यहां तक कि कुछ प्रमुख निर्यात की वस्तुएं जैसे मक्कीधागाफार्माकेमिकल्स और जेवरात सेक्टर का प्रदर्शन भी काफी खराब रहा है।

   जीएसटी बिल में 1 प्रतिशत इंटर-स्टेट टैक्स का प्रस्ताव आर्थिक मुद्दों की जानकारी न होने को दर्शाता है। यह जीएसटी के मूलभाव के विरुद्ध है और यह मेक इन इंडिया पर विपरीत प्रभाव डालेगा।

   मेक इन इंडिया की एक सबसे बड़ी असफलता मल्टी बिलियन डाॅलर राफेल फाईटर जेट सौदा हैजो  नरेंद्र मोदी और फ्रांस की सरकार के बीच हाल में ही हुआ है। इससे पहले इसी सौदे को लेकर कांग्रेस सरकार ने एक पारदर्शी बिडिंग प्रक्रिया के द्वारा तीन साल से अधिक समय तक चर्चा की थी। इसके तहत फ्रांस से केवल 18 राफेल फाईटर विमान खरीदे जाने थे और बाकी के 108विमानों का निर्माण तकनीक के हस्तांतरण समझौते के द्वारा हिंदुस्तान एयरोनाॅटिक्स लिमिटेड में किया जाना था। मोदी सरकार ने स्थापित डिफेंस खरीदी प्रक्रिया और रक्षा अधिग्रहण काउंसिल को नकार कर एकतरफा निर्णय लेते हुए फ्रांस से 36 राफेल फाईटर विमानों को खरीदने का निर्णय किया है। इसमें तकनीक के हस्तांतरण या एचएएल के द्वारा भारत में उनके निमार्ण का कोई उल्लेख नहीं किया गया। मोदी सरकार ने करोड़ों डाॅलर की इस सबसे बड़ी फाईटर विमान निर्माण डील को मेक इन इंडिया से मेक इन फ्रांस में तब्दील कर दिया।

 

(घ) ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट में और जनता निराश

 

     भारत की जनसंख्या का 62.5 हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र में हैजिसमें कुल 49 प्रतिशत लोग कार्य करते हैं। यह जीडीपी में 17 प्रतिशत का योगदान देता है। ग्रामीण खपत विकास का एक सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ हैजो देश की अर्थव्यवस्था में 35 प्रतिशत का योगदान देता है। मोदी सरकार के द्वारा नीतियों को पलट देने से खेत खलिहान में भारी निराशा छाई है। कांग्रेस शासन के समय ग्रामीण वेतन की दर 17.5 प्रतिशत से बढ़ीजो अब घटकर मात्र 3 प्रतिशत रह गई है। कृषि क्षेत्र का विकास भी 2013-14 में 4.7प्रतिशत के मुकाबले 2014-15 में मात्र 1.1 प्रतिशत रह गया है (आर्थिक सर्वे 2015)। कुल अनाज उत्पादन साल 2013-14 में2650 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले 2014-15 में 2500 लाख मीट्रिक टन तक रह गया है। कृषिजगत में कुल कैपिटल फाॅर्मेशन2012-13 में कृषि जीडीपी का 18.3 प्रतिशत थाजो साल 2014-15 में घटकर 14.5 प्रतिशत हो गया।

    नरेंद्र मोदी ने लागत$50 प्रतिशत पर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने का वायदा किया था। मोदी सरकार द्वारा अक्टूबर 2014 में निर्धारित एमएसपी में (-) 0.3 प्रतिशत का परिवर्तन कर दिया। यह 38 सालों में नीचे से सबसे अधिक कमी के सातवें पायदान पर था। गैर-एमएसपी फसलों की कीमतें भी 100 प्रतिशत तक औंधे मुंह गिरी हैं। इसके अलावा बारिश/ओलावृष्टि के कारण 200 लाख हेक्टेयर से अधिक रबी फसलों को 40,000 करोड़ रु. से अधिक का नुकसान हुआ है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारी संकट में हैं।

     सबसे दुखद बात यह हैकि सरकार का कृषि क्षेत्र में निवेश कम हुआ है। राष्ट्रीय कृषि योजना में 7426 करोड़ रु. की कटौती की गई है। इसी तरह प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में 8156 करोड़ रु. की कटौती की 

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