राष्ट्रीय (02/08/2015) 
खट्टर सरकार के भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने के दावों की निकली हवा
रेवाड़ी में बस अड्डे के समानांतर चल रहा अवैध अड्डा
अवैध बस अड्डे से प्रतिदिन होता है सैंकड़ों बसों का संचालन
एक परमिट पर लगाते हैं आधा दर्जन बसों के फेरे
रोडवेज को प्रतिदिन होता है लाखों के राजस्व का नुकसान
सिक्के की खनक पर चुप रहने को मजबूर हैं अधिकारी
रेवाड़ी। सरकार बनने से पहले भाजपा ने प्रदेश की जनता को भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने के लंबे-चौड़े दावे किए थे और इसी के चलते जनता ने भी भारी बहुमत देकर सरकार बनाई। मगर रेवाड़ी में आकर सरकार के तमाम दावों की हवा निकल गई है। इसका जीता जागता उदाहरण है रेवाड़ी का बस अड्डा। बेशक सरकार भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के दावे करते नहीं थकती हो, लेकिन स्थानीय अधिकारियों पर इसका कोई असर देखने को नहीं मिल रहा है। 
कहने को तो रेवाड़ी जिला मुख्यालय पर सामान्य बस अड्डा मौजूद है जहां से प्रतिदिन 130 बसों का संचालन होता है, लेकिन हम आपको बता दें कि इसके अलावा भी यहां एक समानांतर बस अड्डा धड़ल्ले से चल रहा है और यहां से भी रोजाना सैंकड़ों अवैध बसों का संचालन हो रहा है तथा अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी अंजान बने हुए हैं, क्योंकि एक ओर जहां उन पर भारी राजनीतिक दबाव है वहीं दूसरी ओर सिक्कों की खनक भी उन्हें चुप रहने को मजबूर कर देती है। ऐसे में चाहकर भी अधिकारी उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर सकते। 
अगर रोडवेज अधिकारी व कर्मचारियों की मानें तो राजस्थान सरकार ने हरियाणा में बसें चलाने के लिए निजी संचालकों को परमिट दिए हुए हैं। इनमें ज्यादातार परमिट दिल्ली-झुंझुनू, पिलानी, दिल्ली रूट के परमिट हैं। जिन बसों को ये परमिट दिए हुए हैं वे अपने निर्धारित रूट पर पूरे दिन में मात्र एक ही फेरा लगा सकती है, लेकिन ऐसी बसें निर्धारित मार्गों पर न चलकर मात्र रेवाड़ी-नारनौल के बीच ही दौड़ती नजर आ रही हैं और एक फेरा लगाने की बजाय ये दिन में आधा दर्जन फेरे लगाती हैं। ऐसे में हरियाणा परिवहन को लाखों रूपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है। वहीं इस मार्ग पर चलने वाली सवारियां भी अवैध वाहनों में सफर करने को मजबूर हैं। ये बसें मात्र एक बार ही बस अड्डे के भीतर प्रवेश करती हैं और उसके बाद दिनभर बस अड्डे के बाहर खड़ी होकर सवारियां भरती हैं और सरकार व प्रशासन को ठेंगा दिखाकर रोजाना लाखों के वारे-न्यारे कर रही हैं।
रोडवेज अधिकारियों की मानें तो इस मामले को लेकर वे कई बार धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं, लेकिन डीटीओ पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। वहीं रोडवेज अधिकारियों के पास ऐसी का चालान करने की कोई पावर नहीं है। इन पर लगाम कसने की जिम्मेदारी डीटीओ व आबकारी एवं काराधान विभाग के पास है, लेकिन डीटीओ साहब के तो दर्शन ही दुर्लभ होते हैं तो वहीं काराधान विभाग के अधिकारी संसाधनों की कमी का दुखड़ा रोने के साथ-साथ इस मामले में डीटीओ का सहयोग न मिलने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। 
नई सरकार बनने के बाद तथा अशोक खेमका को यातायात कमीश्रर नियुक्त करने के बाद लोगों में आस लगी थी कि अब ऐसी अवैध बसों पर जरूर कार्यवाही होगी, लेकिन स्थिति वही ढाक के तीन पात वाली साबित हुई और लोगों की उम्मीदें सिर्फ उम्मीदें ही बनकर रह गई। अब देखना यह होगा कि क्या खट्टर सरकार ऐसी बसों पर लगाम कस पाएगी या फिर पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ये धंधा पहले ही तरह फलता फूलता रहेगा।
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