अन्तरराष्ट्रीय (06/12/2022) 
धर्म को बचाने के लिए क्या ज्योतिषाचार्यों को आगे आना चाहिए ?
श्रष्टि का नियम है कि 84 लाख योनियों में सिर्फ मनुष्य योनि ही धन का उपयोग जीवन जीने के लिए करती है । बाकी योनियों को धन की आवश्यकता ही नहीं होती है । वो अपना जीवन प्रकृति से चलाते है । एक मनुष्य का जीवन ही अदबुद है । इसको धन की आवश्यकता होती है । और श्रष्टि की उत्पत्ति के साथ भगवान ने मनुष्य जीवन को धन दे दिया था  । मनुष्य की मनोवृति दो प्रकार की बनी होती  है । एक तो वो लोग जो धन के पीछे भागते हैं । और दूसरे धन के साथ-साथ ज्ञान की पीछे भी भागते हैं । 

जो ज्ञानी गुरु होता है उसको भी धन की आवश्यकता होती है क्योंकि बिना धन के वो ज्ञानी गुरु जिंदा नहीं रह सकता है । ज्ञान से उसका पेट नहीं भर्ता है । पेट भरने के लिए और जीवन को सुरक्षित रखने के धन चाहिए । ज्ञानी तो अपने ज्ञान के द्वारा अनर्थ नहीं कर सकता है । फिर जीएगा कैसे । इसके लिए उसको धनवान की शरण में जाना पड़ता है । 

जब ज्ञानी धनवान की शरण में जाएगा तो पाप के धन का उपयोग करेगा । जिसके कारण उसका हाल कृपाचार्य , द्रोणाचार्य और विदुर जैसा होगा । और सुरक्षा के लिए उसका हाल विश्वामित्र और ऋषि भारद्वाज जैसा होगा ।  कलयुग के गुरुओं ने इस परिपाठी को ही तोड़ दिया है । वो अब खुद पाप की कमाई करने लगे हैं । तथा सभी खरबपति है । जब ज्ञानी खरबपति होगा तो ज्ञान , अहम , क्रोध और पाप भी खरबपति होगा । 

इसलिए आजकल सनातन धर्म का विनाश का मुख्य कारण है । तथा सनातन हिन्दू धर्म के धीरे-धीरे खंडित होने के लिए ये धनवान गुरु ही जिम्मेदार हैं ।  अब इन खरबपति गुरुओं को राजा की भांति अपने साम्राज्य की चिंता रहती है । 
ये ज्ञानी गुरु अब अपने कर्म को त्याग कर धन की पीछे भाग रहे हैं । किसी तरह धन मिल जाये चाहे वो पाप का ही क्यों हो ? सभी पंथों में पाप का धन लगा हुआ है । सारा रिश्वत का धन , तस्करी का धन , मिलावट का धन , लोगों से ठगा हुआ धन इन आश्रमों में दान के रूप में लगा होता है । जो मेहनत से कमाएगा वो 100 Rs भी दान नहीं कर सकता है । 

इसलिए इस संसार में कलयुग में धन के आगे ज्ञान बोना हो जाता है । जब ज्ञान अपनी चरम सीमा पर होता है तो धनवांन ज्ञानी गुरु के चरणों में होता है । और ज्ञान में अज्ञानता का पाखंड होता है तो ज्ञान असाह हो जाता है और धनवान महान हो जाता है । जो धर्म के ठेकेदार धर्म के उच्च पदों पर विराजमान हैं वो ज्ञानी होते हुए भी राजनेताओं और धनवानों के तलवे चाटते नज़र आते हैं । दुष्कर्मो में लिप्त राजनेता या धनवान पापी तस्कर के आगे ये ज्ञानी गुरु भी झुक जाते हैं । 

इसलिए ऐसे ज्ञानी गुरुओं की म्रत्यु के बाद इंद्रदेव की भांति इन गुरुओं को कीड़े-मकोड़े का जन्म मिलता है । 

अब समय आ गया है सभी सनातन धर्मी लोगों को स्वयं ही धर्म की रक्षा करनी होगी । जो धर्म की रक्षा करेगा उसकी भगवान अवश्य ही रक्षा करेगा । 

लेखक डॉ एच एस रावत ( वैदिक धर्मगुरु )
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