राष्ट्रीय (13/07/2014) 
गुणहीन नहीं होता अपना नाम
जिस प्रकार विभिन्न प्रकार के उपयोगी मंत्रों के सही उच्चारण से उपचार में सहायता मिलती है, उसी प्रकार अपने स्वयं के नाम का बार-बार उच्चारण करने से भी उपचार में मदद मिलती है। अपना परिचय देते समय हम प्रायः अपने कुल नाम अथवा नाम के आद्याक्षरों सहित कुल नाम का प्रयोग करते हैं।
इस प्रकार के परिचय से पारस्परिक संबंध मात्रा औपचारिक ही बनते हैं। इस प्रकार के लोग विभिन्न प्रकार की आंतरिक मानसिक रुकावटों के शिकार होते हैं। इसके विपरीत जो लोग आपस में एक दूसरे को उनके पहले नामों से संबोधित करते हैं, अपेक्षाकृत तनावमुक्त तथा आंतरिक रुकावटों से दूर होते हैं।
यहि हम अपना पूरा नाम नहीं बोलते या लिखते हैं तो इसका अर्थ यह है कि हमें अपना नाम स्वयं ही पसंद नहीं है अथवा हमारे अंदर यह भावना घर कर गई है कि यह नाम लोगों को अच्छा नहीं लगेगा और नाम सुनकर लोग मज़ाक़ उड़ाएँगे और यह सोच एक विकार एक आंतरिक अवरोध बनकर हमारी स्वाभाविक रोगोपचारक क्षमता का  हृास करती है।
व्यक्तित्व विकास अथवा अन्य प्रेरणार्थक कार्यशालाओं में प्रशिक्षणार्थियों को यहाँ तक कि प्रशिक्षक को भी प्रथम नाम से ही संबोधित किया जाता है और इसका उद्देश्य यही है कि हमारी मानसिक रुकावटें दूर होकर हमारी स्वाभाविक रोगोपचारक शक्ति बढ़ सके।
न जाने कितने लोग हैं जो अपना पहला नाम पुकारने पर पुकारने वाले को बदतमीज़ कहकर संबोधित करेंगे। यह हमारी बदकि़स्मती नहीं तो और क्या है? आप भी अपने पूरे नाम का अथवा प्रथम नाम का मज़े में प्रयोग कर स्वाभाविक रोगोपचारक शक्ति का विकास करें।
नाम में क्या है?
वास्तविक सुगंध नाम में नहीं, काम में है। अपनी अच्छी कृतियों से अपने नाम को सार्थक करने का प्रयास कीजिए। भाई या तो अपना नाम बदल डालिए और अपनी पसंद का दूसरा कोई सुंदर सा नाम रख लीजिए जो मुश्किल ही नहीं, असंभव सा ही है अन्यथा आपका जो नाम है, उसे पसंद करना शुरू कर दीजिए। मंत्रोच्चारण की तरह अपने नाम का ही जाप शुरू कर दीजिए।
सीताराम गुप्ता(अदिति)

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