
नई दिल्ली, 23 जुलाई।
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों के बीच एक सशक्त और भावनात्मक गीत “अब तू कांप रे दरिंदे” इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। यह गीत न सिर्फ़ एक रचनात्मक अभिव्यक्ति है, बल्कि महिला सशक्तिकरण की गूंजती आवाज़ भी बन चुका है। इस गीत की लेखिका और गीतकार कविता डे हैं, जिन्होंने इस रचना के माध्यम से समाज को झकझोर कर रख दिया है।
गीत की विशेषता इसकी तीव्र संवेदनाओं और आक्रोश से भरे शब्दों में छिपी है। यह गीत पीड़िता की चुप्पी नहीं, बल्कि न्याय की ललकार है। गीत में उस औरत की तस्वीर खींची गई है जो अब सिर्फ आँसू नहीं बहाती, बल्कि अत्याचार के खिलाफ दहाड़ती है।
गीत का भाव और प्रस्तुति:
गीत की पंक्तियाँ भावनात्मक अत्याचार, न्याय और महिला सशक्तिकरण को एक सूत्र में पिरोती हैं।
थंबनेल में दिखाया गया जलता अग्निपथ और महिला की गुस्से भरी आँखें, सीधे समाज के दरिंदों को चेतावनी देती हैं।
AI जनरेटेड आवाज़ और रियल फुटेज के संयोजन ने इसे और भी प्रभावशाली बना दिया है।
संगीत निर्देशन: शंकर डे
रिकॉर्डिंग स्टूडियो: Swar Seema Studio
गीत की लोकप्रियता सोशल मीडिया और युवाओं के बीच तेजी से बढ़ रही है। इसे एक ‘संगीत के माध्यम से सामाजिक आंदोलन’ के रूप में देखा जा रहा है।
गीत का केंद्रीय संदेश:
“अब और नहीं… अब तू कांप रे दरिंदे।
क्योंकि इस बार औरत रोएगी नहीं… दहाड़ेगी।”
लेखिका कविता डे ने बताया कि यह गीत हर उस महिला के लिए है जिसने अन्याय सहा, पर अब चुप नहीं रहेगी। यह एक आह्वान है — उस बदलाव का, जिसमें नारी केवल पीड़िता नहीं, न्याय की प्रतीक बने।