एक राष्ट्र, एक चुनाव’ — मोदी सरकार की लोकतांत्रिक क्रांति की दिशा में एक निर्णायक कदम

परिचय

भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, लगभग हर कुछ महीनों में किसी न किसी राज्य या केंद्र स्तर के चुनाव में व्यस्त रहता है। इस लगातार चुनावी चक्र के कारण शासन प्रक्रिया बाधित होती है, विकास योजनाएं रुक जाती हैं, प्रशासनिक मशीनरी थम जाती है, और जनता का करोड़ों रुपये खर्च होता है।

ऐसे में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) की अवधारणा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक मजबूत राजनीतिक और प्रशासनिक सुधार के रूप में उभर कर सामने आई है। यह विचार भारत के लोकतंत्र को अधिक प्रभावशाली, सुचारू और समावेशी बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।

  1. क्या है ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’?

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का अर्थ है कि लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ, एक ही समय पर कराए जाएं। इससे देश हर समय चुनावी मोड में रहने की बजाय स्थिरता की दिशा में बढ़ेगा और शासन पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित किया जा सकेगा।

  1. क्यों ज़रूरी है एक साथ चुनाव?

क. लगातार चुनावों से बाधित होता है शासन

बार-बार चुनाव होने से आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू हो जाती है, जिससे विकास कार्यों पर रोक लग जाती है और प्रशासनिक निर्णय टल जाते हैं।

ख. चुनावों पर होने वाला खर्च

2019 के आम चुनावों में सरकार और पार्टियों का कुल खर्च करीब ₹60,000 करोड़ से अधिक रहा। एक साथ चुनाव होने से यह खर्च काफी हद तक कम हो सकता है।

ग. सुरक्षा बलों पर दबाव

हर चुनाव में बड़ी संख्या में अर्धसैनिक बलों की तैनाती करनी पड़ती है। इससे उनकी क्षमता और मनोबल पर असर पड़ता है।

घ. राजनीतिक ध्रुवीकरण और लोकलुभावन घोषणाएं

लगातार चुनावी माहौल से नेता अल्पकालिक वादों और घोषणाओं पर केंद्रित रहते हैं, जिससे दीर्घकालिक नीति निर्माण बाधित होता है।

  1. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के प्रमुख प्रवर्तक

क. 2014 से लगातार इस विचार को बढ़ावा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही बार-बार इस विचार को सामने रखा है। चाहे वह संसद हो, नीति आयोग की बैठक हो या सार्वजनिक मंच, उन्होंने इस मुद्दे को एक राष्ट्रीय एजेंडा के रूप में प्रस्तुत किया।

ख. रामनाथ कोविंद समिति का गठन

2023 में मोदी सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति गठित की, जिसने एक साथ चुनाव की व्यवहारिकता और संवैधानिक ढांचे का अध्ययन किया। यह कदम दर्शाता है कि मोदी सरकार इस विचार को लागू करने के प्रति गंभीर और प्रतिबद्ध है।

ग. गवर्नेंस और विकास से जोड़ना

प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ‘ease of living’ यानी जीवन को आसान बनाने से जोड़ा है। उनका कहना है कि जब सरकारें लगातार चुनावों से मुक्त होंगी, तो वे अधिक दृढ़ता से नीति निर्माण और विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगी।

घ. वृहद लोकतांत्रिक सुधार के भाग के रूप में देखना

पीएम मोदी एक राष्ट्र, एक चुनाव को डिजिटल इंडिया, चुनाव सुधार, सहकारी संघवाद और पारदर्शिता जैसे बड़े सुधारों की श्रृंखला का हिस्सा मानते हैं। उनके नेतृत्व में यह विचार मात्र प्रशासनिक नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक सुदृढ़ीकरण की दिशा में उठाया गया साहसी कदम है।

  1. ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लाभ
  • वित्तीय बचत: चुनावों पर होने वाला हजारों करोड़ का खर्च विकास योजनाओं में लगाया जा सकता है।
  • बेहतर प्रशासन: चुनावों से हटकर सरकारें 5 साल तक स्थिरता के साथ शासन कर सकती हैं।
  • राजनीतिक स्थायित्व: बार-बार होने वाले राजनीतिक उथल-पुथल से मुक्ति मिलेगी।
  • मतदाता सहभागिता में वृद्धि: एक ही समय पर चुनाव होने से जागरूकता और मतदान प्रतिशत दोनों बढ़ सकते हैं।
  • प्रशासनिक संसाधनों की बचत: बार-बार चुनाव करवाने में जुटे कर्मचारियों और सुरक्षा बलों का दोहन रोका जा सकेगा।

  1. अंतरराष्ट्रीय उदाहरण

कई लोकतांत्रिक देश जैसे:

  • दक्षिण अफ्रीका – राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव एक साथ कराता है।
  • स्वीडन और बेल्जियम – केंद्र और राज्य चुनाव एक ही समय पर कराते हैं।

भारत में भी 1951 से 1967 तक एक साथ चुनाव होते थे, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता के कारण यह क्रम टूट गया।

  1. चुनौतियां और समाधान
  • संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता (अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 आदि) – इसके लिए राजनीतिक सहमति आवश्यक है।
  • राज्यों की स्वायत्तता की रक्षा – राज्य सरकारों की अवधि को संविधान में सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • क्रमिक कार्यान्वयन – पहले कुछ राज्यों को एक साथ चुनाव में लाना, फिर पूरे देश में लागू करना।

प्रधानमंत्री मोदी बार-बार सर्वदलीय सहमति की बात करते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे इस मुद्दे को किसी पार्टी की विचारधारा से ऊपर उठाकर राष्ट्रहित में देख रहे हैं

  1. डॉ. भीमराव अंबेडकर के स्वप्नों का साकार रूप

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ केवल एक प्रशासनिक या चुनावी सुधार नहीं है — यह हमारे संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के उस दर्शन की दिशा में एक ठोस कदम है, जिसमें उन्होंने एक सशक्त, स्थिर और समावेशी लोकतंत्र की परिकल्पना की थी।

क. स्थायित्वपूर्ण शासन, जैसा कि बाबा साहेब ने परिकल्पित किया था

डॉ. अंबेडकर ने संविधान सभा में स्पष्ट रूप से कहा था कि लोकतंत्र तभी फल-फूल सकता है जब शासन व्यवस्था में निरंतरता और स्थायित्व हो। बार-बार चुनावों से उत्पन्न होने वाली अस्थिरता उस लोकतांत्रिक मूल भावना के प्रतिकूल है, जिसे अंबेडकर जी ने हमारे संविधान में अंतर्निहित किया।

ख. विकास का समान अवसर

बाबा साहेब का सपना था एक ऐसा भारत जहां हर वर्ग — विशेषकर दलित, वंचित, गरीब और पिछड़े — को सम्यक और समान विकास के अवसर मिलें। बार-बार चुनावों के कारण जो विकास योजनाएं अधूरी रह जाती हैं, ‘एक साथ चुनाव’ व्यवस्था से वे निरंतर गति से आगे बढ़ेंगी, जिससे अंतिम पंक्ति के नागरिक तक शासन की योजनाओं का लाभ सुगमता से पहुंचेगा।

ग. प्रशासनिक जवाबदेही और समावेशी शासन

डॉ. अंबेडकर ने प्रशासनिक जवाबदेही और ‘constitutional morality’ पर विशेष बल दिया था। जब सरकारें पांच वर्षों तक बिना चुनावी व्यवधानों के कार्य करेंगी, तब वे जवाबदेही, पारदर्शिता और संवैधानिक मूल्यों पर और अधिक केंद्रित रह सकेंगी।

घ. लोकतांत्रिक शक्ति का विकेन्द्रीकरण

जब देश एक साथ चुनावों में सहभागी होगा, तो यह लोकतांत्रिक सशक्तिकरण का पर्व बनेगा, जिसमें हर नागरिक की भूमिका निर्णायक होगी — यह वही आत्मनिर्भर लोकतंत्र है जिसकी नींव बाबा साहेब ने रखी थी।

  1. निष्कर्ष

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ न केवल एक तकनीकी या व्यवस्थात्मक परिवर्तन है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की आत्मा को सशक्त बनाने का प्रयास है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में यह पहल उस लोकतांत्रिक दर्शन की पुनर्पुष्टि है, जिसकी आधारशिला डॉ. भीमराव अंबेडकर ने रखी थी।

आज जब भारत अमृत काल की ओर अग्रसर है, तब यह आवश्यक है कि हम अंबेडकर जी के संविधानिक विज़न को साकार करें — एक ऐसा भारत जहां स्थिरता हो, समावेश हो, और समान अवसर हों। ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ उस दिशा में एक ऐतिहासिक एवं दूरदर्शी कदम है।

लेखक :- कपिल मिश्रा , मंत्री दिल्ली सरकार

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