पितृ पक्ष के दौरान पितरों के लिए सभी प्रकार के अनुष्ठान करने से पितृ दोष (Pitra Dosh) से मुक्ति मिलती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इससे जीवन मे परेशानियों का अंत होता है और सुख-समृद्धि बढ़ती है.
पितृपक्ष के नियम
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान हर व्यक्ति को सात्विक रहना चाहिए। और द्वार पर आए किसी पशु, जीव और व्यक्ति का अनादर नहीं करे और अन्न एवं जल प्रदान करे। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि पितृगण पितृपक्ष के दौरान किसी भी रूप में अपने परिवार के लोगों के बीच आते हैं और अनादर होने पर दुखी और अनादर होकर चले जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में पंच बलि का भी नियम है कि जिस तिथि पर माता अथवा पिता की मृत्यु हुई हो उस तिथि पर भोजन बनाकर एक भाग कुत्ते, बिल्ली, गाय, कौआ तथा चींटी को देना चाहिए।
श्राद्ध करने की सामान्य विधि
अपने परिवार के तीन पीढ़ियों के पूर्वजों के निमित्त उनकी वार्षिक तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। सद्गृहस्थी को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए जिससे हमें अपने पूर्वजों की कृपा प्राप्त हो सके। सबसे पहले प्रातः काल नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नानादि करके ईश्वर भजन के पश्चात अपने पूर्वजों का स्मरण करें एवं प्रणाम करे और उनके गुणों को याद करें। अपनी सामर्थ्य के किसी विद्वान ब्राह्मण को आमंत्रित कर भोजन कराएं और उन्हीं से पूर्वजों के लिए तर्पण व श्राद्ध करें। सबसे पहले संकल्प करें। संकल्प के लिए हाथ में जल, पुष्प और तिल अवश्य रखनी चाहिए।
ऐसे लें संकल्प
ॐ तत्सत्,अद्य ————-गोत्रोत्पन्न: (गोत्र बोलें) ——————- नामाऽहम् (नाम बोलें) आश्विन मासे कृष्ण पक्षे——– ———-तिथौ—————वासरे स्व पित्रे (पिता) /पितामहाय (दादा) मात्रे (माता) मातामह्यै (दादी) निमित्तम् तस्य श्राद्धतिथौ यथेष्ठं , सामर्थ्यं श्रद्धानुसारं तर्पणं/ श्राद्ध/ ब्राह्मण भोजनं च करिष्ये ।
इस संकल्प को हिंदी में भी बोल सकते हैं।
आज—— गोत्र में उत्पन्न — मैं आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की—- तिथि को अपने पिता/ दादा/ माता/ दादी के निमित्त उनकी श्राद्ध तिथि पर इच्छा ,सामर्थ्य और श्रद्धा के अनुसार तर्पण ,श्राद्ध और ब्राहमण भोजन कराउंगा। उसके पश्चात तर्पण हेतु किसी बड़े बर्तन अथवा परात में शुद्ध जल, गंगाजल, दूध, दही और शहद,काले तिल एवं कुछ पुष्प डालें। इस अवसर पर पितृतर्पण के साथ-साथ देव तर्पण और ऋषि तर्पण भी किया जाता है। सबसे पहले देव तर्पण करते हैं। सीधे हाथ के अंगूठे के नीचे कुछ दुर्वांकुर लेंगे। बाहर की ओर को उनके पत्ते रखेंगे। (इसे देव मुद्रा कहते हैं) ओम् भूर्भुव: स्व:ब्रह्माविष्णुरूद्रेभ्य; तृपयामि। ऐसा बोलकर अंजुलि में कनिष्ठा उंगली की ओर से जल भरेंगे और जहां पर हमने दूब घास अंगूठे की नीचे दबा रखी है। उस और हाथ को घुमाकर बाहर निकाल देंगे। इस मंत्र से सात बार बोल कर देवों के लिए तर्पण करें। इसके पश्चात ऋषि तर्पण के लिए देव तर्पण की ही तरह सात बार सप्तर्षियों के निमित्त तर्पण करेंगे। ओम् भूर्भुव: स्व: सप्तर्षिभ्य; तर्पयामि। इसके पश्चात उस दुर्वा घास को अंगूठे के नीचे से निकालकर पांच उंगलियों को एक साथ मिलाएंगे। इसे पितृ मुद्रा कहते हैं। उसमें दुर्वा घास दबा लेंगे। अपने पितृ देवता के लिए सात बार तर्पण करेंगे। ओम भूर्भुव: स्व: पितरेभ्य: तृपयामि। ऐसे मंत्र को बोलकर कनिष्ठा उंगली के नीचे की ओर से जल भरेंगे और हाथ को सीधा करके उंगलियों के बीच में से परात में छोड़ देंगे.
पिता के लिए :
ओम भूर्भुव: स्व: पित्रेभ्य: तृपयामि।
माता के लिए :
ओम भूर्भुव: स्व: मात्रेभ्य:तर्पयामि।
दादा के लिए :
ओम् भूर्भुवः स्व: पितामहेभ्य:तर्पयामि।
दादी जी के लिए:
ओम् भूर्भुव: स्व: मातामहीभ्य:तर्पयामि।
परदादा के लिए प्रपितामहेभ्य: बोलेंगे
श्राद्ध में यह बातें वर्जित हैं… * श्राद्ध के दौरान यह सात चीजें वर्जित मानी गई- दंतधावन, ताम्बूल भक्षण, तेल मर्दन, उपवास, संभोग, औषध पान और परान्न भक्षण।
- श्राद्ध में स्टील के पात्रों का निषेध है।
- श्राद्ध में रंगीन पुष्प को भी निषेध माना गया है।
- गंदा और बासा अन्न, चना, मसूर, गाजर, लौकी, कुम्हड़ा, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज, काला नमक, जीरा आदि भी श्राद्ध में निषिद्ध माने गए हैं।
- श्राद्ध क्रम मेंजल्दबाजी न करें पाठ पूजा व ज्ञान बिल्कुल आराम से और शांत चित से करें
- श्राद्ध करके यात्रा नहीं करनी चाहिए
संकल्प अवश्य लें… - संकल्प लेकर ब्राह्मण भोजन कराएं या सीधा इत्यादि दें। ब्राह्मण को दक्षिणा अवश्य दें।
- भोजन कैसा है, यह न पूछें।
- ब्राह्मण को भी भोजन की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए।
- सीधा पूरे परिवार के हिसाब से दें।
इस प्रकार आप पितरों को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद लेकर अपने कष्ट दूर कर सकते हैं। यूं भी यह व्यक्ति का कर्तव्य है, जिसे पूर्ण कर पूरे परिवार को सुखी एवं ऐश्वर्यवान बना सकते हैं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि श्राद्ध करते समय संकल्प अवश्य लें ।
श्राद्ध में तीन बातें अत्यावश्यक हैं- दौहित्रः कुतपः तिलाः। दोहित्र (कन्या का पुत्र) एवं तिल को छोड़कर
करने के लिए तीसरा कुतप काल कूतक समय श्राद्ध पिंड दान का समय ज्योतिष द्वारा बताया गया है। सूर्योदय काल के अनंतर पांचवा घण्टा कुतकसंज्ञक कहलाता है, जो की ‘श्राद्ध काल होता है यद्यपि शास्त्रों ने आठ प्रकार के कुतपों का वर्णन -। किया है तथापि श्राद्धयोग्य ‘कुतप’ काल में रहने वाली तिथि में ही श्राद्धक्रम सम्पादित होता है।
इसलिए ‘पितृयज्ञ श्राद्ध के सम्पूर्ण फल प्राप्ति के हेतु मध्यान्हव्यापिनी कुतप या काल युक्त तिथि में श्राद्ध की संगति होती है जैसा कि किसी का श्राद्ध अष्टमी तिथि को है और अष्टमी अपने अष्टमी के दिन सूर्योदय से 3 घंटा मान की है, यदि 6 बजे सूर्योदय हो तो 3 घंटे बाद तक अष्टमी का मान 9 बजे तक होगा। तदुपरांत नवमीं तिथि का प्रवेश हो जाता है। श्राद्ध अष्टमी तिथि का है, अब इसके पहले तिथि सप्तनी का समापन 10 बजे के आस-पास मध्याहन ‘कुतप’ में यदि पूर्व अष्टमी का मान आ जाता है तो श्राद्ध औदयि की ■, अष्टमी नहीं होकर पूर्व दिन सप्तमीयुक्त कुतपकालव्यापी के अष्टमी में होगा। इसके ज्ञान के लिए पंचागस्थ तिथ्यादि र्व मान एवं धर्म कृत्योपयोगी तिथ्यादि- निर्णय में ज्योतिषशास्त्र व के गहन अध्ययन- मनन- चिंतन आवश्यकता है।
यानी साधारण शब्दों में समझ जिस दिन का श्राद्ध है उसे दिन सूर्य उड़ा ए का समय निर्धारित कर लीजिए यदि उसे दिन सूर्य सवेरे 6:00 बजे है तो 3 घंटे यानी 9:00 बजे तक उसे तिथि का श्राद्ध माना जाएगा।
ज्योतिषाचार्य मनोज शर्मा उपाय एक्सपर्ट@
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