समालखा में संत समागम: सच्चाई की पहचान और नई सोच का आह्वान

    सतगुरु माता जी ने आगे कहा कि हम अक्सर अपने विचारों और आदतों में सीमित रहते हैं। इसे उदाहरण द्वारा समझाया गया, जैसे पानी के स्रोतों को देखकर किसी का दृष्टिकोण ग्लास, बाल्टी, तालाब, या समुद्र तक सीमित हो सकता है। इसी तरह, हमें अपने जीवन में सोच और समझ का विस्तार करना है। कुएं के मेंढक की भांति अपनी सीमित सोच को सच्चाई मान लेने से जीवन का वास्तविक और विशाल स्वरूप छूट सकता है।

    आदतों में बदलाव लाने और अपनी कमजोरियों को पहचानकर उन्हें दूर करने का प्रयास भी विस्तार का एक रूप है। यदि हम जानते हैं कि कोई आदत गलत है और फिर भी उसे छोड़ने में असमर्थ हैं तब हमें आत्म-अवलोकन की आवश्यकता है। अपनी सोच और आदतों को सकारात्मक दिशा में विकसित करना जरूरी है। अक्सर, हमारी सोच केवल हमारे फायदे तक सीमित होती है किन्तु यदि हमारी सोच दूसरों के लाभ को भी शामिल करे, तो यह सच्चे विस्तार का प्रतीक होगा। अपने दृष्टिकोण को लचीला बनाना और दूसरों के विचारों को खुले दिल से अपनाना है। माता जी ने एक कहानी के माध्यम से समझाया कि जिद्दी सोच कैसे हमें वास्तविकता से दूर रख सकती है और रिश्तों में भी दूरी ले आती हैं। जीवन में विचारों का आदान-प्रदान और नई सीखों को अपनाने की क्षमता हमें आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाती है।

    इसके पूर्व निरंकारी राजपिता रमित जी ने अपने विचारों में कहा कि 77वें समागम में भाग लेना संतों और श्रद्धालुओं के लिए अनोखा अवसर है। यह समागम जीवन को गहराई और विस्तार प्रदान करता है। सद्गुरु की कृपा और शिक्षाओं ने मानव अस्तित्व को असीम और गौरवशाली बना दिया है। सच्चा स्वार्थ अपने अस्तित्व को पहचानने में है। सतगुरु सिखाते हैं कि जीवन का अर्थ समझने के लिए हमें अपने स्वार्थ से परे जाकर मानवता की सेवा करनी है।

    सतगुरु समझाते हैं कि भक्ति केवल साधन नहीं, बल्कि साध्य है। जब भक्ति जीवन का केंद्र बन जाती है, तो सांसारिक सुख गौण हो जाते हैं। सतगुरु द्वारा प्रदत्त आध्यात्मिकता हमारी सोच, हमारी दृष्टि, हमारे प्रेम, सेवा, समर्पण, करूणा व अन्य दिव्य गुणों का विस्तार करती है। संगत में आकर ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना और संतों के वचनों को सुनना, हमारी सोच को व्यापक बनाता है। जब हम इस निराकार से जुड़ते हैं, तो जीवन के हर रंग को अपनाते हुए उससे पृथक भी रहना सीखते हैं। यह निराकार हर समय, हर स्थिति में मौजूद है। इसे पहचानकर, हर व्यक्ति अपने जीवन को सही दिशा में विस्तार कर सकता है।

    उल्लेखनीय है कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने समागम में पधार कर सतगुरु माता जी एवं निरंकारी राजपिता जी के दर्शन करके आशीर्वाद प्राप्त किया।

    कायरोप्रैक्टिक शिविर और स्वास्थ्य सेवाएं

    77वें निरंकारी संत समागम में आधुनिक कायरोप्रैक्टिक तकनीक के जरिए निःशुल्क स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया जा रहा है। प्रतिदिन 3,000 से 4,000 लोग इस तकनीक का लाभ उठा रहे हैं। अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, स्पेन, फ्रांस और भारत के 25 डॉक्टरों की एक टीम निरंतर सेवाएं कर रही हैं।

    समागम स्थल पर पहली बार 100 बिस्तरों वाला अस्पताल बनाया गया है, जिसमें आईसीयू और चार वेंटिलेटर की सुविधा है। 40 एम्बुलेंस उपलब्ध हैं, जिनमें से 30 स्वास्थ्य विभाग द्वारा और 10 मिशन द्वारा प्रदान की गई हैं। सभी मैदानों में पांच डिस्पेंसरियां भी कार्यरत हैं। यहां प्रतिदिन 20,000 मरीजों का निःशुल्क उपचार किया जा रहा है।

    होम्योपैथी ग्राउंड ए और सी में होम्योपैथी की डिस्पेंसरी में प्रतिदिन 3,000-4,000 मरीज देखे जा रहे हैं। फिजियोथेरेपी के लिए 15 मशीनें उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त माइनर ओटी की सुविधा भी प्रदान की गई है। विशेषज्ञ सेवाएं दिल, ऑर्थापेडिक, छाती संक्रमण, आंखों और ईएनटी के मरीजों का उपचार किया जा रहा है। इन सेवाओं को 1,000 सर्जन, मेडिकल और पैरामेडिकल स्टाफ की टीम द्वारा संचालित किया जा रहा है, जिससे समागम में स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर उच्चतम बना हुआ है।

    वसुधैव कुटुंबकम् का लघु रूप – निरंकारी संत समागम निरंतर दूसरे दिन भी सकारात्मक तरंगे बिखेरता रहा।

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