हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष स्थान है, जिसे पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित किया जाता है। ज्योतिषाचार्य कृष्णा शर्मा के अनुसार, इस वर्ष पितृ पक्ष 17 सितंबर से प्रारंभ होकर 2 अक्टूबर तक चलेगा। इस अवधि में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्मकांड किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करना और पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त करना होता है।
श्राद्ध कर्म हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें मृत पूर्वजों की आत्मा को तृप्त करने के लिए उन्हें अर्पण और तर्पण किया जाता है। माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण और श्राद्ध की अपेक्षा रखते हैं। इसलिए, इन दिनों में किए गए धार्मिक कार्य और दान से पितर संतुष्ट होते हैं और परिवार पर सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद बरसाते हैं।
पितृ पक्ष के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है:
नया सामान न खरीदें: इस दौरान नए कपड़े, जूते, फर्नीचर या किसी प्रकार का कीमती सामान नहीं खरीदा जाता है। विवाह, सगाई, और अन्य मांगलिक कार्यों पर भी रोक रहती है।
ब्रह्मचर्य का पालन: पितृ पक्ष में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस अवधि में मांसाहार, शराब, प्याज और लहसुन से परहेज करने की सलाह दी जाती है।
श्राद्ध में काश के फूल का उपयोग: श्राद्ध कर्म में काश के फूल का विशेष महत्व है। इसे इस्तेमाल न करने से श्राद्ध कर्म अधूरा माना जाता है।
तिथि अनुसार श्राद्ध: जिस तिथि को पितरों का निधन हुआ हो, उस दिन श्राद्ध करना सबसे उत्तम माना जाता है।
पालतू जानवरों को दूर रखें: श्राद्ध के समय घर के कुत्ते-बिल्ली जैसे पालतू जानवरों को दूर रखा जाता है, क्योंकि उनकी उपस्थिति से पितर परेशान हो सकते हैं।
तर्पण और दान का महत्व
तर्पण के दौरान सूर्य देव को जल अर्पित किया जाता है, जिसमें काले तिल और कच्चे दूध का मिश्रण होता है। ऐसा करने से पितृ दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, गाय, कुत्ते, कौवे और चीटियों को भोजन कराना भी श्राद्ध के महत्वपूर्ण कर्मों में शामिल है। दान करने से पितर प्रसन्न होते हैं, और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
श्राद्ध के दिनों में गीता का सातवां अध्याय सुनना और भागवत पुराण की कथा करवाना अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
पितरों की कृपा से मिलता है आशीर्वाद
श्राद्ध और पिंडदान करने का उद्देश्य यह है कि जब पितर अपने लोक को जाएं, तो वे प्रसन्न होकर परिवार के लिए सुख और समृद्धि का वरदान देकर जाएं। पितृ पक्ष के दौरान किए गए कार्य न केवल पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए होते हैं, बल्कि यह एक ऐसा अवसर भी है, जब हम अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर सकते हैं।
पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध और तर्पण कर्मकांड पितरों की आत्मा की शांति और वंशजों की सुख-समृद्धि के लिए अति आवश्यक माने जाते हैं। इन धार्मिक कर्मों से परिवार को पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।