नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के गाँधी भवन और अदिति महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में “आधुनिक शिक्षा और प्रबंधन में भगवद्गीता के मूल्यों को आत्मसात करने” पर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी ने देश-विदेश के सैकड़ों विद्वानों, शिक्षकों, और शोधार्थियों को एक मंच पर लाकर गीता के महत्व पर गहन चर्चा का अवसर प्रदान किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने की, जबकि मुख्य अतिथि भक्ति वेदांता सिद्धान्ती महाराज रहे। संगोष्ठी का आयोजन गाँधी भवन के निदेशक और कार्यक्रम संयोजक प्रोफेसर के.पी. सिंह के नेतृत्व में हुआ। इस अवसर पर प्रोफेसर श्रीप्रकाश सिंह, प्रोफेसर इंद्रमोहन कपाही, डॉ. एन.के. कक्कड़, प्रो. सविता राय सहित कई प्रतिष्ठित शिक्षाविद उपस्थित थे।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने गीता की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए कहा, “गीता की शिक्षाएं आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानव को बेहतर इंसान बनाने का मार्गदर्शक है।” उन्होंने यह भी कहा कि गीता को आधुनिक शिक्षा के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना समय की मांग है ताकि युवा पीढ़ी इसके मूल्यों को समझ सके।
प्रो. सिंह ने गीता के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी वर्तमान संदर्भ में आत्मसात करने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि “गीता के संदेश को समाज तक पहुंचाने में शिक्षक और शिक्षण संस्थान अहम भूमिका निभा सकते हैं।”
मुख्य अतिथि भक्ति वेदांता सिद्धान्ती महाराज ने गीता के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “अगर हम धर्म की रक्षा करेंगे, तो धर्म भी हमारी रक्षा करेगा।” उन्होंने भारत के प्राचीन शिक्षण संस्थानों जैसे नालंदा और तक्षशिला की परंपराओं का उल्लेख करते हुए युवाओं को अपनी जड़ों से जुड़ने का आह्वान किया।
गाँधी भवन के निदेशक प्रो. के.पी. सिंह ने बताया कि गीता की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने के लिए गाँधी भवन में नियमित रूप से योग और ध्यान सत्र आयोजित किए जाते हैं। इन सत्रों में बड़ी संख्या में युवा भाग ले रहे हैं, जो गीता के संदेशों से प्रेरित होकर अपने जीवन में बदलाव महसूस कर रहे हैं।
संगोष्ठी में प्रतिभागियों के लिए विशेष व्याख्यान, प्रश्नोत्तर सत्र, और गीता पर आधारित लघु नाट्य मंचन का आयोजन किया गया। अदिति महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफेसर ममता शर्मा ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया, जबकि कार्यक्रम का संचालन डॉ. मृदुल भाटिया ने किया।
यह संगोष्ठी गीता के ज्ञान और मूल्यों को शिक्षा के माध्यम से नई पीढ़ी तक पहुंचाने के उद्देश्य को सफलतापूर्वक पूरा करती नजर आई। विद्वानों ने एक स्वर में यह सुझाव दिया कि भारतीय शिक्षा नीति में गीता को प्राथमिक स्तर से उच्च शिक्षा तक शामिल किया जाना चाहिए।
इस संगोष्ठी ने एक बार फिर यह साबित किया कि गीता केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन को सार्थक बनाने का दर्पण है।