फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस (शिक्षक संगठन) ने शिक्षा मंत्रालय द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालयों की कार्यकारी परिषद (ईसी) में अपने प्रतिनिधियों को शामिल करने के प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया है। फोरम के चेयरमैन डॉ. हंसराज सुमन ने इस कदम को विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर सीधा हमला बताया है।
शिक्षा मंत्रालय ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी कर केंद्रीय विश्वविद्यालयों की कार्यकारी परिषद में अपने प्रतिनिधियों को शामिल करने का अनुरोध किया है। मंत्रालय का तर्क है कि 48 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में से 20 में पहले से ही मंत्रालय के प्रतिनिधि शामिल हैं, जबकि 28 विश्वविद्यालयों में ऐसा कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। मंत्रालय ने प्रशासनिक एकरूपता के लिए सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अपने प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव दिया है।
डॉ. सुमन का कहना है कि मंत्रालय द्वारा भेजे जाने वाले प्रतिनिधि सरकारी नीतियों को लागू करने का प्रयास करेंगे, जिससे विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता खतरे में पड़ जाएगी। उन्होंने कहा, “डीयू एक्ट 1922 के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय को पूरी स्वायत्तता प्राप्त है, जबकि अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थिति भिन्न है।” उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि मंत्रालय के प्रतिनिधियों के आने से विश्वविद्यालयों में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ेगा और कुलपति की शक्तियों को कमजोर किया जाएगा।
डॉ. सुमन ने उदाहरण देते हुए कहा कि दिल्ली सरकार द्वारा शत-प्रतिशत वित्त पोषित 12 कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी में सरकार के नुमाइंदे रखे गए हैं, जो अपनी मनमानी कर रहे हैं। इसके चलते शिक्षकों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा है और पिछले एक दशक से स्थायी नियुक्तियों पर कोई प्रगति नहीं हुई है।
फोरम ने डीयू की कार्यकारी परिषद (ईसी) की आगामी बैठक में इस सर्कुलर का विरोध करने का आह्वान किया है, जो सोमवार, 14 अक्टूबर को होने वाली है।
डॉ. हंसराज सुमन ने जोर देकर कहा कि यह कदम विश्वविद्यालयों में दूसरा पावर सेंटर बनाने का प्रयास है, जो उनकी शैक्षणिक स्वायत्तता के लिए बेहद घातक साबित होगा। उन्होंने डीयू ईसी की संरचना का हवाला देते हुए कहा कि पहले से ही विजिटर और चांसलर के रूप में सरकारी प्रतिनिधित्व मौजूद है, और ऐसे में उच्च शिक्षा सचिव या उनके नामित व्यक्ति को शामिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है।