डॉ शंकर दयाल सिंह व्याख्यान माला कार्यक्रम मैं 27 दिसम्बर 2024 को ऑडिटॉरीयम एनडीएमसी कन्वेन्शन सेंटर नई दिल्ली में जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल मुख्य अतिथि के रूप मैं पधार रहे है तथा मुख्य वक्ता रहेंगे स्वामी चिदानंद सरस्वती
उल्लेखनीय है कि डॉ शंकर दयाल सिंह (27 दिसंबर 1937 – 27 दिसंबर 1995 ) राजनीति वसाहित्य दोनों क्षेत्रों में समान रूप से लोकप्रिय थे। उनकी असाधारण हिंदीसेवा के लिए उन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।
बिहार के औरंगाबाद जिले के भवानीपुर गावं में 27 दिसंबर 1937 को प्रसिद्धस्वंत्रता सेनानी, साहित्यकार व बिहार विधान परिसद के सदस्य स्वःकामता प्रसाद सिंह के यहाँ जन्मे बालक के माता – पिता ने अपने आराध्य देवशंकर की दया का प्रसाद समझ कर उनका नाम शंकर दयाल रखा।
बनारस हिन्दू विश्वविधालय से स्नातक (बी ए ) तथा पटनाविश्वविधालय से स्नातकोत्तर (एम ए ) की उपाधि (डिग्री) लेने के पश्चात सन1966 में वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने और 1971 मेंसांसद चुने गये। एक पाँव राजनीति की धुप तो दूसरा साहित्य की छाया में। श्रीमती
कानन बाला जैसी सुशीला प्राध्यापिका पत्नी, दो पुत्र – रंजन व
राजेश तथा एक पुत्री – रश्मि, ।
समाचार भारती के निदेशक पद से लेकर शंकर दयाल सिंह की जीवन – यात्रा संसदीय राजभाषा समिति, दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी, भारतीय रेलपरामर्श समिति, भारतीय अनुवाद परिषद् , केंद्रीय हिंदी सलाहकार समितिजैसे अनेक पड़ाव को पार करती रही।
शंकर दयाल सिंह लोकसभा व राज्यसभा दोनों के सदस्य रहे चूँकि मूलतः वेएक साहित्यकार थे शंकर दयाल सिंह विभिन्न देशों व स्थानों की यात्रा लेखों के माध्यम से अपनेपाठको को भी उन स्थानों का परिचय लगातार करते रहे। सोवियत संघ की राजधानी मास्को से लेकर सूरीनाम और त्रिनिदाद तक की महत्वपूर्ण यात्राओंके वृतांत पढ़कर हमे यह लगता ही नहीं कि शंकर दयाल सिंह हमारे बीच नहींहै।
राष्ट्रभाषा हिंदी के लिए शंकर दयाल सिंह ने आजीवन संघर्ष किया , उन्हें सन1993 में हिंदी सेवा के लिए अनन्तगोपाल सेवडे हिंदी सम्मान तथा सन1995 में गाडगिल राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया। इसके अतिरिक्त उनकोभारतवर्ष से कई संस्थाओं, संगठनों व राज्य – सरकारों से अनेको पुरस्कारप्राप्त हुए। शंकर दयाल सिंह जी की स्मृति में जनभाषा सम्मान दिया जाताहै। इसके अंतगर्त Rs1 लाख का पुरस्कार विभिन्न संस्थाओं / व्यक्तियों कोअबतक दिया जा चूका है। इसी क्रम में अब बनारस हिन्दू विश्वविधालय(BHU ) में डॉ शंकर दयाल सिंह जी के नाम पर एक फ़ेलोशिप आरम्भकिया गया है।बिहार सरकार ने शंकर दयाल सिंह के गृह स्थान देव, जिला औरंगाबाद(बिहार) की एक महत्वपूर्ण सड़क का नामकरण उनकी स्मृति में किया है। राष्ट्रीय उच्च पथ -2 पर स्तिथ देव मोड़ से शुरू होकर भवानीपुर गावं तक कीसड़क डॉ शंकर दयाल सिंह पथ के नाम से जानी जाती है। यही सड़क आगेदेव स्थित सूर्य मंदिर तक चली जाती है, जहा वर्ष में दो बार छठ के अवसरपर बड़ा मेला लगता है। भवानीपुर गावँ जो की देव ब्लॉक स्थित है शंकरदयाल सिंह जी का जन्म स्थान है। यही उनका बचपन बीता। भारत सरकारके भारी उद्योग एवं लोक उपक्रम मंत्रालय ने देश भर के लोक उपक्रमों मेंराजभाषा के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के लिए शंकर दयाल सिंह राजभाषापुरस्कार भी दिया जा रहा है। ज्ञातव्य है की शंकर दयाल सिंह जी संसदीयराजभाषा समिति की तीसरी उपसमिति के संयोजक और फिर संसदीयराजभाषा समिति के उपाध्यक्ष के तौर पर इन संस्थाओं में राजभाषा के प्रयोगको लेकर बेहद प्रयत्नशील रहे थे। यह पुरस्कार हरेक वर्ष हिंदी दिवस परराजभाषा के क्षेत्र में श्रेष्ठतम योगदान के लिए किसी लोक उपक्रम को दिया जाता है।
27 दिसंबर 1995 की भोर मेंपटना से नई दिल्ली जाते हुए रेल यात्रा में टूंडला रेलवे स्टेशन पर हृदय गतिरुक जाने के कारन उनका प्राणान्त हो गया।
26 नवम्बर 1995 को उनके आकस्मिक निधन के बाद उनकी स्मृति मेंव्याख्यानमाला का आरंभ हुआ, जो सन 1995 से हर वर्ष उनके जन्मदिन (27 दिसंबर ) पर अनवरत आयोजित होता रहा है।
नई दिल्ली से विजय गौड़ ब्यूरो चीफ की विशेष रिपोर्ट