रामायण के हर अध्याय में भगवान राम और रावण का द्वंद्व प्रमुखता से उभरता है। जहां राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में माना जाता है, वहीं रावण को एक अद्वितीय शिवभक्त, विद्वान, योद्धा और शासक के रूप में भी देखा जाता है। भारतीय संस्कृति में राम की पूजा व्यापक रूप से की जाती है, लेकिन रावण की भूमिका और उसके विचारों पर भी गंभीरता से विचार करना जरूरी है। रावण की छवि केवल एक खलनायक तक सीमित नहीं है; वह अपनी असाधारण शक्तियों और सिद्धांतों के लिए भी जाना जाता है।
रावण केवल एक राजा नहीं था, बल्कि वह त्रिलोक विजेता भी था। उसकी विद्वता और शक्ति का प्रमाण यह है कि वह वेदों और शास्त्रों का ज्ञाता था, और शिवभक्ति में पूरी तरह से समर्पित था। रावण के व्यक्तित्व के कई पहलू हैं, जिनमें उसका पराक्रम, ज्ञान, तपस्या, और संगीत के प्रति प्रेम शामिल हैं। ऐसा कहा जाता है कि रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना की थी, जो आज भी शिव भक्तों के बीच बहुत प्रसिद्ध है।
रावण के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा उसकी नारी सम्मान की भावना थी। हालांकि उसने माता सीता का अपहरण किया, लेकिन वह कभी भी सीता माता की मर्जी के बिना उसे अपनी पत्नी बनाने का प्रयास नहीं किया। वह सीता माता को लंका लेकर तो गया, लेकिन उसने कभी उन्हें हाथ तक नहीं लगाया। यह तथ्य रावण की नारी सम्मान के प्रति गंभीरता को दर्शाता है। उसकी यह मर्यादा उसे एक असाधारण चरित्र के रूप में प्रस्तुत करती है।
बिसरख गाँव और रावण की पूजा
जहां पूरे देश में राम की पूजा की जाती है और रावण को दुष्ट समझकर हर साल दशहरे पर उसका पुतला जलाया जाता है, वहीं उत्तर प्रदेश के बिसरख गाँव में रावण को पूजा जाता है। बिसरख, जो ग्रेटर नोएडा के पास स्थित है, को रावण का जन्मस्थान माना जाता है। यहां की मान्यता के अनुसार, रावण का संबंध इस भूमि से था, और यहां के लोग रावण को सम्मान और श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं।
बिसरख गाँव में रावण का एक मंदिर भी स्थित है, जहां उसकी पूजा की जाती है। इस गाँव के लोग दीपावली का त्यौहार नहीं मनाते हैं, क्योंकि वे इसे रावण की मृत्यु के प्रतीक के रूप में देखते हैं, जिसे वे शोक का समय मानते हैं। दशहरे के दौरान भी यहाँ पुतला दहन नहीं होता, बल्कि रावण की पूजा-अर्चना की जाती है। इस प्रकार, बिसरख गाँव रावण के प्रति अपनी विशेष मान्यताओं और धार्मिक आस्थाओं के लिए जाना जाता है।
भारत में रामायण की कथा को अनेक प्रकार से समझा और प्रस्तुत किया जाता है। जहां एक ओर भगवान राम का आदर्श और मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में गुणगान किया जाता है, वहीं दूसरी ओर रावण के व्यक्तित्व पर भी गहरी चर्चा होती है।
रावण को नकारात्मक चरित्र के रूप में प्रस्तुत करना आसान है, लेकिन उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझना आवश्यक है। रावण की तपस्या और शिवभक्ति उसकी आध्यात्मिक ऊँचाई को दर्शाती है। उसने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे कई वरदान प्राप्त किए, जिनके बल पर वह त्रिलोक विजेता बना। उसकी विद्वता और विज्ञान के प्रति उसकी रुचि उसे एक आदर्श विद्वान शासक के रूप में स्थापित करती है।
रावण की सबसे बड़ी विशेषता उसके नारी सम्मान के प्रति दृष्टिकोण में निहित है। सीता माता का अपहरण करना एक बड़ी गलती थी, लेकिन रावण ने उनके साथ कभी भी किसी प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं किया। उसने माता सीता को अपनी अशोक वाटिका में रखा, लेकिन उनकी इच्छा के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। यह उसके चरित्र की एक अनोखी विशेषता थी, जो उसे रामायण के अन्य नायकों से अलग बनाती है।
रावण का व्यक्तित्व अनेक परतों में बंटा हुआ है। वह केवल एक खलनायक नहीं था, बल्कि एक महान शिवभक्त, विद्वान, और त्रिलोक विजेता भी था। उसकी नारी सम्मान की भावना और विद्वता उसे एक अद्वितीय नायक बनाते हैं। बिसरख गाँव में उसकी पूजा यह दर्शाती है कि भारतीय समाज में रावण के प्रति दृष्टिकोण विभाजित है। रावण की पूजा हमें यह सिखाती है कि किसी भी चरित्र को पूरी तरह से नकारात्मक या सकारात्मक रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि उसके जीवन के सभी पहलुओं का सम्यक दृष्टि से अध्ययन करना चाहिए।
रविंद्र कुमार की रिपोर्ट