(27/03/2015) 
कालयोगी आचार्य महिंदर कृष्ण शर्मा द्वारा परेशानियों के उपाय
शंकर ज़ी के द्वारा एक दिव्य ग्रन्थ जो बाबा गोरख नाथ ज़ी को दिया और वो ज्ञान गोरख नाथ ज़ी ने पहाड़ पर रहने वाले एक दिव्य ज्ञानी देव कालू नाग देवता ज़ी को और उनके द्वारा हम तक जो भी सिद्ध करके आया वो सब काफी ग्रन्थ में मिलता है कालयोग गौ सेवा ट्रस्ट शिमला आचार्य महिंदर कृष्ण के सानिध्य में आप तक अवगत करवाएगा ये ज्ञान जब भी जीव को मिला सभी जीवो को लाभ ही हुआ है कुछ टोटके आप इसे प्रयोग कर सकते है जेसे सफेद गुंजा की जड़ को घिस कर माथे पर तिलक लगाने से सभी लोग वशीभूत हो जाते हैं।

यदि सूर्य ग्रहण के समय सहदेवी की जड़ और सफेद चंदन को घिस कर व्यक्ति तिलक करे तो देखने वाली स्त्री वशीभूत हो जाती है |राई और प्रियंगु को ह्रीं' मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके किसी स्त्री के ऊपर डाल दें तो वह वश में हो जाएगी।शनिवार के दिन सुंदर आकृति वाली एक पुतली बनाकर उसके पेट पर इच्छित स्त्री का नाम लिखकर उसी को दिखाए जिसका नाम लिखा है। फिर उस पुतली को छाती सेलगाकर रखें। इससे स्त्री वशीभूत हो जाएगी।बिजौरे की जड़ और धतूरे के बीज को प्याज के साथ पीसकर जिसे सुंघाया जाए वह वशीभूत हो जाएगा।नागकेसर को खरल में कूट छान कर शुद्ध घी में मिलाकर यह लेपमाथे पर लगाने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है।
नागकेसर, चमेली के फूल, कूट, तगर, कुंकुंम और देशी घी का मिश्रण बनाकर किसी प्याली में रख दें। (कालयोग सेवा ट्रस्ट शिमला 8263882638) लगातार कुछ दिनों तक नियमित रूप से इसका तिलक लगाते रहने से वशीकरण की शक्ति उत्पन्न हो जाती है। शुभ दिन एवं शुभ लग्न में सूर्योदय के पश्चात उत्तर की ओर मुंह करके मूंगे की माला से निम्न मंत्र का जप शुरू करें। ३१ दिनों तक ३ माला का जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है।मंत्र सिद्ध करके वशीकरण तंत्र की किसी भी वस्तु
को टोटके के समय इसी मंत्र से २१ बार अभिमंत्रित कर इच्छित व्यक्ति पर प्रयोग करें। अमुक के स्थान पर इच्छित व्यक्ति का नाम बोलें। वह व्यक्ति आपके वश में हो जाएगा।
मंत्र इस प्रकार है -
ऊँ नमो भास्कराय त्रिलोकात्मने अमुक महीपति मे वश्यं कुरू कुरू स्वाहा।
रवि पुष्य योग (रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र) में गूलर के फूल एवं कपास की रूई मिलाकर बत्ती बनाएं तथा उस बत्ती को मक्खन से जलाएं। फिर जलती हुई बत्ती की ज्वाला से काजल निकालें। इस काजल को रात में अपनी आंखें में लगाने से समस्त जग वश में हो जाता है।ऐसा काजल किसी को नहीं देना चाहिए।अनार के पंचांग में सफेद घुघची मिला-पीसकर तिलक लगाने से समस्त संसार वश में हो जाता है।कड़वी तूंबी (लौकी) के तेल और कपड़े की बत्ती से काजल तैयार करें। इसे आंखों में लगाकर देखने से वशीकरण हो जाता है। बिल्व पत्रों को छाया में सुखाकर कपिला गाय के दूध में पीस लें। इसका तिलक करके साधक जिसके पास जाता है, वह वशीभूत हो जाता है।कपूर तथा मैनसिल को केले के रस में पीसकर तिलक लगाने से साधक को जो भी देखता है, वह वशीभूत हो जाता है।
केसर, सिंदूर और गोरोचन तीनों को आंवले के साथ पीसकर तिलक लगाने से देखने वाले वशीभूत हो जाते हैं।) ये प्रयोग गुरु के साथ ही करे कालयोगी आचार्य )श्मशान में जहां अन्य पेड़ पौधे न हों, वहां लाल गुलाब का पौधा लगा दें। इसका फूल पूर्णमासी की रात को ले आएं। जिसे यह फूल देंगे, वह वशीभूत हो जाएगा। शत्रु के सामने यह फूल लगाकर जाने पर वह अहित नहीं करेगा।
अमावस्या की रात्रि को मिट्टी की एक कच्ची हंडिया मंगाकर उसके भीतर सूजी का हलवा रख दें। इसके अलावा उसमें साबुत हल्दी का एक टुकड़ा, ७ लौंग तथा ७ काली मिर्च रखकर हंडिया पर लाल कपड़ा बांध दें। फिर घर से कहीं दूर सुनसान स्थान पर वह हंडिया धरती में गाड़ दें और वापस आकर अपने हाथ-पैर धो लें। ऐसा करने से प्रबल वशीकरण होता है।
प्रातःकाल काली हल्दी का तिलक लगाएं। तिलक के मध्यमें अपनी कनिष्ठिका उंगली का रक्त लगाने से प्रबल वशीकरण होता है। कौए और उल्लू की विष्ठा को एक साथ मिलाकर गुलाब जल में घोटें तथा उसका तिलक माथे पर लगाएं। अब जिस स्त्री के सम्मुख जाएगा, वह सम्मोहित होकर जान तक न्योछावर करने को उतावली हो जाएगी।
सम्मोहन सम्मोहन विद्या को हासिल करने के लिए प्रथम सीढ़ी है त्राटक का अभ्यास। यही वह साधना है जिसका निरंतर अभ्यास करने से आपकी आंखों में अद्भुत चुंबकीय शक्ति जाग्रत होने लगती है और यही चुंबकीय शक्ति दूसरे प्राणी को सम्मोहित करके अपनी ओर आकर्षित करती है। विधिवत् रूप से शिक्षा लेना कोई आवश्यक नहीं है,
क्योंकि यह तो मन और इच्छा शक्ति का ही खेल है। आप स्वयं के प्रयास, निरंतर अभ्यास और असीम धैर्य से सम्मोहन के प्रयोग सीखना आरंभ कर दें तो आप भी अपने अंदर यहअद्भुत शक्ति जाग्रत कर सकते हैं। यह विद्या मन की एकाग्रता और ध्यान, धारणा समाधि का ही मिला-जुला रूप है।आप किसी भी आसन में बैठकर शांतचित्त से ध्यानमग्न होकर मन की गहराइयों में झांकने का प्रयास करें। हालांकि प्रारंभ में आपको कुछ बोरियत अथवा कठिनाई महसूस होगी परंतु यहीं तो आपके धैर्य की परीक्षा आरंभ हो जाती है। आप विचलित न हों और धैर्यपूर्वक प्रयास जारी रखें। मन को कहीं भी न भटकने दें। मन के समस्त विचारों को एक बिंदु पर ही केंद्रित कर लें और सिर्फ दृष्टा बन जायें अर्थात् जो कुछ भी मन के भीतर चल रहा है उसे चलने दें, छोड़ें नहीं। सिर्फ देखते जायें। आपको तो बस मन की गहराइयों में उतरकर झांकने का प्रयास करना है। शनैः शनैः आप महसूस करेंगे कि आपको आंशिक सफलता प्राप्त हो रही है। आपको कुछ अनोखा सा सहसूस होने लगेगा। बस यहीं से आरंभ होती है आपकी वास्तविक साधना और अब आप तैयार हो जाएं एक)कालयोग गौ सेवा ट्रस्ट शिमला 8263882638 अद्भुत जगत में पदार्पण करने के लिए। जहां विचित्रताएं और आलौकिक अनुभूतियां बांहें पसारे आपका स्वागत करने को आतुर हैं। यहां आकर आपको सब कुछ (भूत-वर्तमान व भविष्य) एक चलचित्र की भांति स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होने लगता है। ध्यान के द्वारा मन की गहराइयों में आकर उसका रहस्य जाना जा सकता है। मन को वश में करने की प्रमुख विधि ध्यान ही है। सम्मोहन अथवा वशीकरण विद्या में दूसरों को वश में करने से पूर्व स्वयं अपने मन को अपने ही वश में करना परम आवश्यक है। जब आपका मन आपके नियंत्रण में हो जाये तो दूसरों को वशीभूत करना तो फिर बायें हाथ का खेल है।
सम्मोहन में प्रवीणता हासिल करने के सिर्फ तीन ही नियम हैं। पहला अभ्यास, दूसरा और ज्यादा अभ्यास तथा तीसरा और अंतिम नियम है निरंतर अभ्यास। इस विद्या को हासिल करने के लिए प्रथम सीढ़ी है त्राटक का अभ्यास। यही वह साधना है जिसका निरंतर अभ्यास करने से आपकी आंखों में अद्भुत चुंबकीय शक्ति जाग्रत होने लगती है और यही चुंबकीय शक्ति दूसरे प्राणी को सम्मोहित करके आकर्षित करती है। भारतीय मनीषियों ने जहां एक ओर सम्मोहन सीखने के लिए यम,नियम, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम, धारणा, ध्यान और समाधि जैसे आवश्यक तत्व निर्धारित किये हैं। वहीं दूसरी ओर पाश्चात्य विद्वानों और सम्मोहनवेत्ताओं ने हिप्नोटिज्म में प्रवीणता प्राप्त करने के लिए सिर्फ प्राणायाम और त्राटक को अधिक महत्व दिया है। पाश्चात्यवेत्ताओं का मानना है कि श्वास-प्रश्वास पर नियंत्रण एवं त्राटक द्वारा नेत्रों में चुंबकीय शक्ति को जाग्रत करके ही मनुष्य सफल हिप्नोटिस्ट बन सकता है।त्राटक के द्वारा ही मन को एकाग्र करके मनुष्य अपने मन पर नियंत्रण स्थापित कर सकता है। यहां हम अपने भारतीय ऋषि- मुनियों और सम्मोहनविज्ञों के दीर्घकालीन अनुभव का लाभ उठाते हुए उनके द्वारा प्रदत्त कुछ नियमों का भी यदि पालन कर सकें तो हम शीध्रता से सम्मोहन में कुशलता प्राप्त कर सकते हैं। आहार-विहार की शुद्धि, विचारों में सात्विकता, प्राणायाम-त्राटक और ध्यान का नियमित अभ्यास तथा असीम धैर्य और विश्वास के संयुग्मन से सम्मोहन विद्या को पूर्णता के साथ आत्मसात् किया जा सकता है। वैसे पाश्चात्यवेत्ताओं के मतानुसार सिर्फ प्राणायाम व त्राटक साधना करके भी सम्मोहन सीखने में कोई हानि नहीं है। हिप्नोटिज्म का उपयोग मुख्यतः मनोवैज्ञानिक चिकित्सा में किया जाता है। शारीरिक एवं मानसिक रोगों के उपचार में इसका प्रयोग पूर्णतः सफल रहा है।
पश्चिमी देशों में तो सम्मोहन को एक विज्ञान के रूप में कानूनी मान्यता प्राप्त हो चुकी है और वहां के समस्त अस्पतालों में अन्य चिकित्सकों, रोग-विशेषज्ञों की भांति हिप्नोटिस्ट्स (सम्मोहनवेत्ताओं) के लिए भी अलग से पद निर्धारित होते हैं। अब तो वहां की पुलिस भी अपराधों की रोकथाम करने एवं अपराधियों से अपराध कबूल करवाने में हिप्नोटिज्म का भरपूर उपयोग करने लगी है, परंतु विडम्बना यही है कि जिस देश में इस विद्या की उत्पत्ति हुई यानि भारतवर्ष में आज सैकड़ों वर्षों पश्चात् भी सम्मोहन को मान्यता नहीं मिल पायी है। सम्मोहन का अभ्यास साधकों को अत्यधिक लाभ पहुंचाता है।
जहां एक ओर उनकी आत्मिक शक्ति प्रबल होती है वहीं दूसरी ओर उनके आत्मविश्वास में अभूतपूर्व वृद्धि होकर इच्छा-शक्ति सृदृढ़ हो जाती है। इन सबका साधक के मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
फलस्वरूप उसका व्यक्तित्व चुंबकीय बन जाते है सम्मोहन विद्या का उपयोग सदैव दूसरों को लाभ पहुंचाने के लिए ही करना चाहिए। प्रतिकूल अथवा विरोधी भावना से किया गया सम्मोहन का प्रयोग प्रायः असफल ही रहता है। साधक को कभी भी अपनी इस शक्ति का अभिमान नहीं करना चाहिए। उसे इस शक्ति को जनकल्याण में उपयोग करना चाहिए। सम्मोहन का एक काला भाग यह भी है कि इस विद्या का उपयोग करके अपराध व अन्य बुरे कार्य भी करवाये जा सकते हैं लेकिन इस विद्या का दुरुपयोग करने के परिणामस्वरूप साधक की शक्ति का अत्यधिक अपव्यय होने लगता है और संचित शक्ति शीघ्र ही नष्ट हो जाती है साधक को मानसिक विकार उत्पन्न कर देती है।
बिंदु त्राटक :एक वर्गाकार सफेद कार्ड बोर्ड/ड्राइंग पेपर लेकर उसके बीचोंबीच में एक छोटा-सा काली मिर्च के आकार का काले रंग का गोल बिंदु बना लें। बिना शीशे वाले लकड़ी के फ्रेम के ऊपर कार्ड बोर्ड को चिपका दें और कमरे की दीवार पर इसे पर्याप्त उंचाई पर टांग दें। अब उस बोर्ड से लगभग तीन फुट की दूरी पर जमीन पर आसन बिछाकर सुखासन अथवा पद्मासन में बैठ जायें और काले बिंदु पर दृष्टि को एकाग्र कर लें। कुछ देर के अभ्यास के पश्चात् जब काला बिंदु कभी ओझल हो जाये और कभी पुनः प्रकट होने लगे तो समझना चाहिए कि आपको सफलता मिलना आरंभ हो गई है और अभ्यास निरंतर जारी रखें। जब आंखों से पानी आने लगे तो उठ जायें और अपनी आंखें ठंडे पानी अथवा गुलाब जल से धो लें। तत्पश्चात् अगले दिन पुनः अभ्यास करें। कुछ दिनों के अभ्यास के पश्चात जब काला बिंदु नजरों से पूर्णतः ओझल हो जाये और सिर्फ सफेद ड्रॉइंगशीट ही दिखाई देने लगे तो समझना चाहिए कि आपको पूर्ण सफलता प्राप्त हो चुकी है। इस प्रकार से यह अभ्यास कम से कम पंद्रह दिनों तक करना चाहिए। बिंदु त्राटक का अभ्यास करने से मन एकाग्र होता है और साधक की आंखों में चुंबकीय शक्ति उत्पन्न होने लगती है। यह भी आप गुरु के ही सानिध्य में करे तो अधिक लाभ ले पाओगे  दीपक त्राटक :रात्रि के समय शुद्ध देसी घी का एक दीपक जलाकर अपनी आंखों की सीध में ढाई-तीन फीट की दूरी पर रख लेना चाहिए। बैठने की स्थिति जमीन पर आसन बिछाकर अथवा सोफे या कुर्सी पर बैठकर भी बनाई जा सकती है। दीपक को जलाकर उसकी लौ पर अपना ध्यान केन्द्रित करें। कुछ देर के अभ्यास के पश्चात् फूंक मारकर लौ को बुझा दें और अंधेरे में देखने अभ्यास करें। कुछ दिनों के निरंतर अभ्यास के पश्चात् आपकी आंखों को बेधक दृष्टि प्राप्त हो जायेगी और आप अंधेरे में भी देखने में पूर्णतः सक्षम हो जायेंगे। इस प्रकार से निरंतर कम से कम बीस दिनों तक नियमापूर्वक अभ्यास करें। दीपक त्राटक का अभ्यास करने से आपको अलौकिक दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। इससे आपकी आंखों में अग्नि के समान चमक पैदा हो जायेगी। कोई भी व्यक्ति आपकी आंखों में आंखें डालकर बात करने का प्रयास करेगा तो वह तुरंत परास्त होकर मानसिक रूप से आपका आधिपत्य स्वीकार कर लेगा।
प्रतिबिंब त्राटक : प्रतिबिंब त्राटक एक अति सरल और महत्वपूर्ण साधना है। इसका अभ्यास दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखकर किया जाता है। सर्वप्रथम एक फुट चौड़ा और एक फुट ऊंचा चौकोर एक बढ़िया कांच (दर्पण) लेकर फ्रेम में कसवाकर कमरे में किसी एक दीवार पर इतनी उंचाई पर लगा दें कि जमीन पर बैठने के पश्चात् दर्पण आपकी आंखों की सीध में रहे।
अब जमीन पर आसन बिछाकर दर्पण से तीन-चार फीट की दूरी पर बैठ जायें और प्राणायाम का अभ्यास करें।
(यहां ध्यान देने योग्य आवश्यक तथ्य यह है कि प्रतिबिम्ब त्राटक में स्नान और प्राणायाम का सर्वाधिक महत्त्व होता है। अतएव इस अभ्यास से पूर्व स्नान और प्राणायाम अत्यावश्यक है।)
तत्पश्चात् दर्पण में दिखाई दे रहे अपने प्रतिबिंब की दोनों भृकूटियों के मध्य अपनी दृष्टि को एकाग्र करके धीमी गति से सांस लेना आरंभ कर दें। कम से कम बीस मिनट तक प्रतिदिन इसी तरह से अभ्यास करें।
कुछ दिनों के अभ्यास के पश्चात् आपका प्रतिबिंब कुछ-कुछ धुंधला-सा दिखाई देने लगेगा और दर्पण में आपको अनायास ही कुछ दृश्य या चेहरे दिखाई देंगे जिन्हें पूर्व में आपने कभी नहीं देखा होगा। इस प्रकार के नवीन दृश्य देखने का तात्पर्य है कि आप सही रास्ते पर चल रहे हैं। आपके अंतर्मन में दबी हुई तीव्र आकांक्षाएं ही आपको चित्रस्वरूप में दर्पण में दिखाई देती हैं। इसी प्रकार कुछेक दिन तक और अभ्यास करते रहने के परिणामस्वरूप आपको ये दृश्य भी दिखाई देने बंद हो जायेंगे और उसके स्थान पर आपको एक चमकदार प्रकाश दिखाई देगा। यह अवस्था तुरीयावस्था' कहलाती है जिसके अंतर्गत साधक का
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