(03/04/2015) 
4 अप्रैल को चन्द्र - कालयोगी आचार्य महिंदर कृष्ण शर्मा
4 अप्रैल 2015 को शनिवार को संपूण भारत में ग्रस्तोदये के रूप में दिखाई देगा हिन्दुस्थान में उतर पूर्वी में परमग्रास समाप्ति देखि जा सकती है और बाकि हिन्दुस्थान में जब चन्द्र उदित होगा तो ग्रास समाप्त हो चूका होगा और इसका

खण्डग्रास के रूप में दिखयी देगा ग्रहण प्रारम्भ 15 45 मि खग्रास  प्रारम्भ  17 24 मि और ग्रहण मध्य 17 30 मि खग्रास समाप्त 17 36 मि ग्रहण समाप्त और मोक्ष 19 15 मि भारत के अलावा यह ग्रहण सपूर्ण एशिया और प पाकिस्थान अफगानिस्थान ऑस्ट्रिलिया अमरीका हिन्द माह सागर और प्रशांत माह सागर में दिखाई देगा ग्रहण का सूतक 4 अप्रैल को सुबह शरू हो जायेगा ग्रहण का सूतक 9 घंटे पूर्व माना जाता है और  हमारे ऋषि मुनियों ने सुर्यग्रहण लगने के समय भोजन करने के लिये मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय में किटाणु बहुलता से फैल जाते हैं । खाद्य वस्तु, जल आदि में सुक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। इसलिये ऋषियों ने पात्रों में क़ुश अथवा तुलसी डालने को कहा है, ताकि सब किटाणु कुश में एकत्रित हो जायें और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है, ताकि किटाणु मर जायें। ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिये बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के अन्दर ऊष्मा का प्रवाह बढे, भीतर बाहर के किटाणु नष्ट हो जायें, और धूलकर बह जायें।

ग्रहण के विषय में जीव विज्ञान विषय के प्रोफेसर टारिंस्टन ने पर्याप्त अनुसन्धान करके सिद्ध किया है कि सुर्य चन्द्र ग्रहण के समय मनुष्य के पेट की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, जिसके कारण इस समय किया गया भोजन अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें पैदा कर शारीरिक या मानसिक हानि पहुँचा सकता है । आचार्य महिंदर कृष्ण शर्मा के अनुसार भारतीय धर्म विज्ञान वेत्ताओं का कहना है कि सूर्य-चन्द्र ग्रहण लगने से 10 घंटे पूर्व से ही इसका कुप्रभाव शुरू हो जाता है। अंतरिक्ष प्रदुषण के समय को सूतक काल कहा जाता है। इसलिए सूतक काल और ग्रहण काल के समय में भोजन तथा पेयपदार्थों के सेवन की मनाही की गयी है। चॅंकि ग्रहण से हमारी जीवन शक्ति का ह्रास होता है और तुलसी दल (पत्र) में विद्युत शक्ति व प्राण शक्ति सबसे अधिक होती हैइसलिए सौर मंडलीय ग्रहण काल में ग्रहण प्रदूषण को समाप्त  करने के लिए भोजन व पेय सामग्री में तुलसी के कुछ पत्ते डाल दिए जाते हैं। जिसके प्रभाव से न केवल भोज्य पदार्थ बल्कि अन्न, आटा आदि भी प्रदूषण से मुक्त बने रह सकते हैं।

पुराणों की मान्यता के अनुसार राहू चन्द्रमा को तथा केतू सूर्य को ग्रसता है। ये दोनों छाया की संतान है । चन्द्रमा और सूर्य की छाया के साथ साथ चलते हैं । चन्द्रग्रहण के समय कफ की प्रधानता बढ़ती है, और मन की शक्ति क्षीण होती है । जबकि सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमजोर पड़ती है । आचार्य महिंदर  के अनुसार ग्रहण लगने से पूर्व नदी या घर में उपलब्ध जल से स्नान करके भगवान का पूजनयज्ञ, जप करना चाहिए । भजन कीर्तन करके ग्रहण के समय का सदुपयोग करें । ग्रहण के दौरान कोई कार्य न करें । ग्रहण के समय में मंत्रों का जप करने से सिधि प्राप्तहोती है ।  ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूर्त्त्याग करना, केश विन्यास करना, रति क्रीडा करना, मंजन करना वर्जित किए गये हैं । कुछ लोग ग्रहण के दौरान भी स्नान करते हैं । ग्रहण समाप्त हो जाने पर सनान करके ब्राम्हण को दान करने का विधान है । कहीं कहीं वस्त्र , बर्तन धोने का भी नियम है । पुराना पानी, अन्न नष्ट कर नया भोजन पकाया जाता है, और ताजा भरकर पीया जाता है, क्योंकि डोम को राहू केतु का स्घ्वरूप माना गया है ।सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्रग्रहण में तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं
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