(03/04/2015) 
ग्रहण में क्या रखें सावधानियां- आचार्य महिंदर कृष्ण शर्मा
ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए। ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। गर्भवती स्त्रियों के लिये सावधानी------महिंदर कृष्ण जी के अनुसार गर्भवती स्त्री को सूर्य चन्द्रग्रहण नहीं देखना चाहिए, क्योकि उसके दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन जाता है । गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है । इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहू केतू उसका स्पर्श न करें ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कुछ भी कैंची, चाकू आदि से काटने को मना किया जाता है , और किसी वस्त्र आदि को सिलने से मना किया जाता है । क्योंकि ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर सिल (जुड़) जाते हैं ।

सावधानियां रखे ग्रहण के समय 
ग्रहण के सोने से रोग पकड़ता है किसी कीमत पर नहीं सोना चाहिए।
ग्रहण के समय मूत्र त्यागने से घर में दरिद्रता आती है ।
शौच करने से पेट में क्रीमी रोग पकड़ता है । इसमें किसी का इलाज नहीं होता।
ग्रहण के समय संभोग करने से सूअर की योनी मिलती है ।
ग्रहण के समय किसी से धोखा या ठगी करने से सर्प की योनि मिलती है ।
जीव-जन्तु या किसी की हत्या करने से नारकीय योनी में भटकना पड़ता है ।
ग्रहण के समय भोजन अथवा मालिश किया तो कुष्ठ रोगी के शरीर में जाना पड़ेगा।
ग्रहण के समय बाथरूम में नहीं जाना पड्रे ऐसा खायें।
ग्रहण के दौरान मौन रहोगेजप और ध्यान करोगे तो अनन्त गुना फल होगा। 

ग्रहण में क्या न करे आचार्य महिंदर कृष्ण शर्मा 
१. सूर्यग्रहण मे ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण मे तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये । बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र,
जिसका ग्रहण होउसका शुद्ध बिम्बदेख कर भोजन करना चाहिये । (१ प्रहर = ३ घंटे)
२. ग्रहण के दिन पत्तेतिनकेलकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए । बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहियेव दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलनासोना, मल मूत्र का त्याग करनामैथुन करना औरभोजन करना ये सब कार्य वर्जित  हैं ।
३. ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्दयेश्य करके जल मे जल डाल देना चाहिए । ऐसा करने से देनेवालेको उसका फल प्राप्त होता है और लेनेवाले को उसका दोष भी नहीं लगता।
४. कोइ भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिये और नया कार्य शुरु नहीं करना चाहिये ।
५. ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थाे मे तिल या कुशा डाली होती हैवे पदार्थ दुषित नहीं होते । जबकि पके हुएअन्न का त्याग करके गायकुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिये ।
६. ग्रहण वेध के प्रारंभ मे तिल या कुशा मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति मे ही करना चाहिये और ग्रहण शुरु होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिये 
७. ग्रहण के समय गायों को घासपक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है
८. तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल हैकिंतु संतानयुक्त ग्रहस्थको ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिये।
९.स्कंद पुराणश् के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षाे का एकत्र किया हुआ सब पुण्यनष्ट हो जाता है ।
देवी भागवत में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये ।

ग्रह के समय कौन सा मंत्र का जाप करें
1. ग्रहण के समय  घ् ह्रीं नमः  मंत्र का 10 माला जप करें इससे ये मंर्त्सिध्द हो जाता है । फिर अगर किसी का स्वभाव बिगड़ा हुआ है .... बात नहीं मान रहा है इत्यादि ..... । तो उसके लिए हम संकल्प करके इस मंत्र का उपयोग कर सकते हैं ।
2. श्रेष्ठ साधक उस समय उपवास पूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके नमो नारायणायश् मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारणाशक्ति)कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर लेता है।

अगर आपको किसी प्रकार की जानकारी लेनी हो तो आप काल योग सेवा ट्रस्ट शिमला में इन नम्बरों पर संपर्क कर सकते हैं.  09129500004, 09218200013,14

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