यूनेस्को में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नें क्या कहा हम आपको बताते हैं. महानिदेशक, मादाम बुकोवा महामहिम, महिलाएं और पुरूष मुझे आज यूनेस्को में भाषण देने का सौभाग्य मिला है इस महान संस्था के 70वीं वर्षगांठ में यहां आकर मुझे विशेष रूप से गर्व महसूस हो रहा है। यूनेस्को की 70वीं वर्षगांठ मुझे इस युग की महत्वपूर्ण उपलब्धि का स्मरण कराती है। मानवीय इतिहास में पहली बार हमारे पास समूचे विश्व के लिए एक संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ है। इन दशकों में काफी परिवर्तन आए और कई चुनौतियां भी सामने आयी तथा इस युग में काफी प्रगति भी हुई। इस दौरान संगठन सशक्त बना है और बढ़ा है। इस संगठन को लेकर कुछ संदेह, कुछ आशंकाएं रही है। इसमें तत्काल सुधार किये जाने की आवश्यकता है। इस संगठन की शुरुआत के समय हालांकि कुछ देश इस संगठन में शामिल हुए और बाद में इससे तीन गुणा इसके सदस्य बने। आज अडिग विश्वास है।
'संयुक्त राष्ट्र के कारण हमारा विश्व रहने के लिए बेहतर स्थान है और बेहतर स्थान बना रहेगा'
इस विश्वास ने मानवीय चुनौतियों के प्रत्येक पहलू से निपटने के लिए कई संगठनों को जन्म दिया है। हमारा सामूहिक लक्ष्य अपने विश्व के लिए शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य विकसित करना है। जिसमें प्रत्येक देश की आवाज हो: सभी लोगों की एक अलग पहचान हो: सभी संस्कृतियां उपवन में फूलों की तरह चहकें: प्रत्येक मानव के जीवन की गरिमा हो: प्रत्येक बच्चे के लिए भविष्य के लिए अवसर हों: और हमारे ग्रह में अपने वैभव को संरक्षित रखने का अवसर हो। कोई और संगठन हमारे हितों के लिए इस संगठन से अधिक काम नहीं करता। हमारी सामूहिक नियति के बीज मानव के मस्तिष्क में रोपे गए हैं। यह शिक्षा के प्रकाश और जिज्ञासा की भावना से पोषित होता है। यह विज्ञान की अनूठी देन से प्रगति करता है। और यह प्रकृति की मूल विशेषता- सदभाव और विविधता में एकता से शक्ति प्राप्त करता है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र के पहले मिशनों में यूनेस्को एक था। इसलिए भारत यूनेस्को के काम का सम्मान करता है और इसमें अपनी भागीदारी को लेकर अत्यंत प्रसन्नता महसूस करता है। मैं यूनेस्को के जन्म के समय से हमारे संबन्धों की असाधारण विरासत के प्रति सजग हूं। मैं यूनेस्को के लिए महात्मा गांधी के संदेश को स्मरण करता हूं जिसमें उन्होंने स्थाई शांति स्थापित करने के लिए शिक्षा की आवश्यकताओं की पूर्ति के तत्काल कदम उठाए जाने का आग्रह किया था। और इसके बाद यूनेस्को के प्रारंभिक वर्षों में अपने देश के राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन के नेतृत्व का भी स्मरण करता हूं। हम शिक्षा और विज्ञान के लिए सहायता और भारत में हमारी सांस्कृतिक विरासत के सरंक्षण के लिए यूनेस्को की मदद के लिए आभारी है। इसी तरह हम विश्व में यूनेस्को के मिशन में सहयोग देने और काम करने के लिए भी सौभाग्यशाली है। भारत के सामने जो चुनौतियां है और भारतवासी जो स्वप्न देखते है उनके लिए हमारे दृष्टिकोण में यूनेस्को के आदर्शों की झलक मिलती है। हमने अपने पूरातन देश में आधुनिक राज्य का निर्माण किया है जिसमें खुलेपन और सह-अस्तितत्व की अदभूत परंपरा है और असाधारण विविधता का एक समाज है। हमारे संविधान की बुनियाद मौलिक सिद्धांतों पर आधारित है। इन सिद्धांतों में सभी के लिए शांति और समृद्धि निजी कल्याण के साथ जूड़ी है। राष्ट्र की शक्ति प्रत्येक नागरिक द्वारा हाथ-से-हाथ मिलाने से तय होती है। और वास्तविक प्रगति का मूल्यांकन कमजोर-से-कमजोर व्यक्ति को सशक्त बनाने से किया जाता है। लगभग एक वर्ष पहले पदभार संभालने के बाद से यही हमारी प्राथमिकता रही है। हमें अपनी प्रगति का मूल्यांकन केवल आंकड़ों में वृद्धि से नहीं करना चाहिए बल्कि लोगों के चेहरे पर खुशी और विश्वास की चमक से किया जाना चाहिए। मेरे लिए इसके कई मायने हैं। हम प्रत्येक नागरिक के अधिकारों और स्वतंत्रा की हिफाजत और सरंक्षा करेंगे। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति के विश्वास, संस्कृति और वर्ग का एक समान स्थान हो। उसके लिए भविष्य में आस्था हो और आगे बढ़ने का विश्वास हो। हमारी परंपरा में शिक्षा का सदैव एक विशेष स्थान रहा है। जैसा कि हमारे एक पुरातन श्लोक में कहा गया है। व्यये कृते वर्धते एव नित्यं, विद्या धनं सर्व प्रधानं ऐसा धन जो देने से बढ़े ऐसा धन जो ज्ञान हो और हरेक सम्पत्ति में सर्वश्रेष्ठ हो हमने प्रत्येक युवक को कुशल बनाने और दूर-दराज के गांवों में प्रत्येक बच्चे को शिक्षित करने का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्यक्रम शुरू किया है। यदि महिलाएं भय, या अवसरों की बाधाओं से मुक्त नहीं होती और अलगाव तथा पूर्वाग्रह से पीडि़त नहीं होती तो हमारी प्रगति मृगतृष्णा बनी रहेगी। और इस परिवर्तन की शुरुआत बालिका से शुरू की जानी चाहिए। इसलिए भारत में बालिकाओं को शिक्षित करने और मदद करने का कार्यक्रम मेरे दिल के बहुत करीब है। हम यह सुनिश्चित करेंगे की वे स्कूल जा सकें और सुरक्षा और गरिमा के साथ स्कूलों में उपस्थित रहे। आज के डिजिटल युग ने ऐसे अवसर विकसित किये हैं जिनकी कभी कल्पना नहीं की गई थी, लेकिन डिजिटल खाई से असमानता बढ़ सकती है। दूसरी तरफ डिजिटल कनैक्टिविटी और स्मार्ट फोन से शिक्षित बनाने, सेवाएं प्रदान करने और विकास का विस्तार करने की संभावनाओं की क्रान्ति सामने आई है। यह हमारे युग का अत्यंत रोमांचक परिवर्तन है। हमारा डिजिटल इंडिया कार्यक्रम भागीदारी पूर्ण, पारदर्शी और संवेदनशील सरकार बनाएगा जो नागरिकों से जुड़ी हों, हमने अपने 6 लाख गांवों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए डिजिटल साक्षरता मिशन की शुरुआत की है। मानवीय आवास और मानवीय क्षमता को पूरा करने के बीच गहरा और मजबूत संबंध है। इसलिए मेरी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता प्रत्येक व्यक्ति के लिए छत, प्रत्येक घर में बिजली, हरेक की पहुंच के भीतर स्वच्छता और शुद्ध जल, प्रत्येक शिशु के जीवित रहने के लिए आशा और प्रत्येक जच्चा के लिए अपने शिशु को प्यार देने का अवसर प्रदान करने की है। इसका अर्थ है कि नदियां और वायु स्वच्छ रहे जिससे हम सांस ले सकें और वनों में पक्षियों की चहक बरकरार रहे। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हमें न केवल नीतियों और संसांधनों की आवश्यकता है अपितु इससे ज्यादा विज्ञान की शक्ति की आवश्यकता है। हमारे लिए विज्ञान के माध्यम से मानव विकास के बड़े उद्देश्य की दिशा में काम करना है और देश में सुरक्षित, सतत, समृद्ध भविष्य विकसित करना है। विज्ञान सीमाओं के पार एक साझा उद्देश्य से लोगों को जोड़ता है। और जब हम इसके फायदों को उनके साथ साझा करते जो इससे वंचित हैं तो हम आपस में जुड़ते और विश्व को रहने के लिए बेहतर स्थान बनाते हैं। भारत अपने प्रारंभिक वर्षों में मिली सहायता को कभी नहीं भूलता, आज हम अन्य देशों के लिए अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे है। इसलिए भारत के अंतराष्ट्रीय कार्यक्रम में विज्ञान की बड़ी प्राथमिकता है। संस्कृति लोगों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति है और समाज की बुनियाद है। भारत समेत विश्व की सांस्कृतिक विरासत के सरंक्षण की यूनरेस्को की पहल प्रेरणादायक है। हम भारत की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत में मानवता की दौलत देखते हैं। और हम इसे भावी पीढि़यों के लिए संरक्षित करने का हर प्रयास करते हैं। हमने विरासत विकास और मजबूती योजना हृदय की शुरूआत की है ताकि हमारे नगरों की सांस्कृतिक विरासत संरक्षित की जा |