(23/04/2015) 
मोदी- संजय जोशी के रिश्ते में क्यों आई थी दरार
संजय जोशी की पहचान एक सादा जीवन जीने वाले राष्ट्रीय स्वंयसेवी संघ के कार्यकर्ता के तौर पर है. पेशे से मैकनिकल इंजीनियर, संजय जोशी पहले इंजीनियरिंग के छात्रों को पढ़ाते थे. बाद में उन्होंने अपना जीवन आरएसएस को समर्पित कर दिया.

संजय जोशी सबसे पहली बार सुर्खियों में आए 1988 में आए जब आरएसएस ने उन्हें गुजरात भाजपा ईकाई में काम करने के लिए भेजा. उस वक्त एक और आरएसएस कार्यकर्ता गुजरात भाजपा इकाई के अहम हिस्सा बना, वो थे नरेंद्र मोदी.

मोदी को गुजरात भाजपा के महासचिव नियुक्त किया गया. वहीं संजय जोशी को प्रभारी के तौर पर गुजरात में काम करने के लिए भेजा गया.

दोनों की जिम्मेदारी राज्य में पार्टी इकाई को मजबूत करना था. लेकिन इस जिम्मेदारी के दौरान खटास आई शंकर सिंह वाघेला के विद्रोह के बाद जिस कारण भाजपा एक वक्त पर दो हिस्सों में बट गई.

1995 में सत्ता को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला बीच खींचतान शुरू हुई. सत्ता पलट के इरादे से शंकर सिंह वाघेला ने पार्टी के कई विधायकों के साथ मध्य प्रदेश के खजुराहो एक फाइव स्टार रिसोर्ट में डेरा डाल दिया. गौरतलब है कि इस दौरान मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी. बाद में वाघेला कांग्रेस में शामिल हो गए.

इस पूरे घटनाक्रम के बीच केशुभाई पटेल के हाथों से मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई और सुरेश मेहता गुजरात के नए मुख्यमंत्री बने. हालांकि केशुभाई पटेल एक बार फिर 1998 में राज्य के मुख्यमंत्री बने. पार्टी की इस जीत का श्रेय गया संजय जोशी को. उनके संगठन कौशल की तारीफ हुई.

इसके साथ संजय जोशी और नरेंद्र मोदी के रिश्तों के बीच खटास बढ़ गई. मोदी को पार्टी मुख्यालय दिल्ली भेज दिया गया. 2001 में गुजरात प्राकृतिक आपदा का शिकार हुआ. भूकंप के बाद हुई तबाही के दौरान राहत कार्यों के लिए केशुभाई पटेल की नीतियों की आलोचना हुई. और मौका मिला नरेंद्र मोदी को. मोदी को गुजरात का नया मुख्यमंत्री बनाया गया.

इस घटनाक्रम के बाद जोशी को दिल्ली भेजा गया. वहां उन्हें पार्टी संगठन के महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी गई. संजय जोशी ने जल्द ही पार्टी के संगठन में छाप छोड़ने लगे. लेकिन इसके बाद 2005 में आया सीडी स्कैंडल. जिसके बाद उन्हें पार्टी छोड़ना पड़ा.

संजय जोशी 6 साल के राजनीतिक वनवास पर चल गए. मोदी बनाम जोशी की लड़ाई में दूसरा अध्याय तब आया जब पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने संजय जोशी को पार्टी में वापस लाया. और उन्हें उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाया और साथ ही उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मनोनीत किया. इसके विरोध में नरेंद्र मोदी पार्टी के अहम मीटिंगों से नदारद रहने लगे और यूपी चुनावों में पार्टी के लिए प्रचार भी नहीं किया.

जब 2012 के मई माह पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई तो नरेंद्र मोदी ने आने से इनकार कर दिया. उन्होंने शर्त रखा कि जब तक संजय जोशी इस्तीफा नहीं देते तब तक वे राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल नहीं होंगे.

इसके बाद संजय जोशी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा देना पड़ा. जोशी के इस्तीफे के कुछ देर बाद ही नरेंद्र मोदी मुंबई भी पहुंचे. लेकिन जोशी की इस इस्तीफे से मोदी विऱोधी खेमे में खुलकर उनकी आलोचना करने लगा.

लेकिन एक बार फिर विवाद बढ़ने लगा और आखिरकार संजय जोशी ने भारतीय जनता पार्टी से इस्तीफा दे दिया. संजय जोशी के भारतीय जनता पार्टी छोड़ देने के बाद मोदी बनाम जोशी लड़ाई ने अहम मोड़ ले लिया है. भले ही इस लड़ाई में फिलहाल नरेंद्र मोदी विजेता बन कर निकले हैं. लेकिन इस घटनाक्रम को लड़ाई का अंत नहीं कहा जा सकता है.

(आज तक से साभार)

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