(03/05/2015) 
ग्रहों के रत्न कब और कैसे पहने - आचार्य महेन्द्र शर्मा
इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म निरीक्षण जरूरी होता है। लग्न कुंडली, नवमांश, ग्रहों का बलाबल, दशा-महादशाएँ आदि सभी का अध्ययन करने के बाद ही रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। यूँ ही रत्न पहन लेना नुकसानदायक हो सकता है। मोती डिप्रेशन भी दे सकता है,

 मूँगा रक्तचाप गड़बड़ा सकता है और पुखराज अहंकार बढ़ा सकता है, पेट गड़बड़ कर सकता है। समस्त पृथ्वी से मूल रूप में प्राप्त होने वाले मात्र 21 ही हैं किन्तु जिस प्रकार से 18 पुराणों के अलावा इनके 18 उपपुराण भी हैं ठीक उसी प्रकार इन 21 मूल रत्नों के अलावा इनके 21 उपरत्न भी हैं। इन रत्नों की संख्या 21 तक ही सीमित होने का कारण है। जिस प्रकार दैहिक, दैविक तथा भौतिक रूप से तीन तरह की व्याधियाँ तथा इन्हीं तीन प्रकार की उपलब्धियाँ होती हैं और इंगला, पिंगला और सुषुम्ना इन तीन नाड़ियों से इनका उपचार होता है। इसी प्रकार एक-एक ग्रह से उत्पन्न तीनों प्रकार की व्याधियों एवं उपलब्धियों को आत्मसात् या परे करने के लिए एक-एक ग्रह को तीन-तीन रत्न प्राप्त हैं। ध्यान रहे, ग्रह भी मूल रूप से मात्र तीन ही हैं। सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि, राहु एवं केतु की अपनी कोई स्वतन्त्र सत्ता न होने से इनकी गणना मूल ग्रहों में नहीं होती है। इन्हें छाया ग्रह कहा जाता है। इस प्रकार एक-एक ग्रह के तीन-तीन रत्न के हिसाब से सात ग्रहों के लिए 21 मूल रत्न निश्चित हैं। अस्तु, ये मूल रत्न जिस रूप में पृथ्वी से प्राप्त होते हैं, उसके बाद इन्हें परिमार्जित करके शुद्ध करना पड़ता है तथा बाद में इन्हें तराशा जाता है। सामान्यत: लग्न कुंडली के अनुसार कारकर ग्रहों के (लग्न, नवम, पंचम) रत्न पहने जा सकते हैं जो ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर पाप प्रभाव में हो, अस्त हो या शत्रु क्षेत्री हो उन्हें प्रबल बनाने के लिए भी उनके रत्न पहनना प्रभाव देता है। सौर मंडल के भी हर ग्रह की अपनी ही आभा है, जैसे सूर्य स्वर्णिम, चन्द्रमा दूधिया, मंगल लाल, बुध हरा, बृहस्पति पीला, शुक्र चाँदी जैसा चमकीला, शनि नीला। प्रत्येक ग्रह की अलग अलग आभा भी मानव शरीर के सातों चक्रों को अलग अलग तरह से प्रभावित करती है। रत्न इन्हीं का प्रतिनिधित्व करते हैं। शरीर पर धारण करने पर ये रत्न इन ग्रहों की रश्मियों के प्रभाव को कई गुणा बढ़ा देते हैं।
रत्न - ग्रह- प्रभाव
-माणिक्य - सूर्य - शरीर की ऊष्णता को नियंत्रित करता है, मानसिक संतुलन देता है
- मोती - चन्द्रमा  भावनाओं को नियंत्रित करता है
- मूंगा - मंगल - शरीर की ऊष्णता को बढ़ाता है, पाचन क्षमता बढ़ाता है
- पन्ना - बुध - बौद्धिक क्षमताओं की वृद्धि करता है, संतुलन सिखाता है
- पुखराज - बृहस्पति - आध्यात्मिक उन्नति देता है, ज्ञान का बेहतर प्रयोग करना सिखाताहै
- हीरा - शुक्र - प्रेम और सौन्दर्य के प्रति सकारात्मकता देता है, समृद्धि देता है
- नीलम - शनि - न्याय, तकनीकी ज्ञान, तार्किकता बढ़ाता है
- गोमेद - राहु - शरीर के हार्मोन्स को संतुलित करता है
- वैदूर्य - केतु - शरीर में नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को रोकता है
रत्न पहनने के लिए किन बातों का ख्याल रखना जरुरी है?
रत्न पहनने के लिए दशा-महादशाओं का अध्ययन भी जरूरी है।
केंद्र या त्रिकोण के स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है। 3, 6, 8, 12 के स्वामी ग्रहों के रत्न नहीं पहनने चाहिए। इनको शांत रखने के लिए दान-मंत्र जाप का सहारा लेना चाहिए। रत्न निर्धारित करने के बाद उन्हें पहनने का भी विशेष तरीका होता है। रत्न अँगूठी या लॉकेट के रूप में निर्धारित धातु (सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल) में बनाए जाते हैं। उस ग्रह के लिए निहित वार वाले दिन शुभ घड़ी में रत्न पहना जाता है। इसके पहले रत्न को दो दिन कच्चे दूध में भिगोकर रखें। शुभ घड़ी में उस ग्रह का मंत्र जाप करके रत्न को सिद्ध करें। (ये जाप 21 हजार से 1 लाख तक हो सकते हैं) तत्पश्चात इष्ट देव का स्मरण कर रत्न को धूप- दीप दिया तो उसे प्रसन्न मन से धारण करें। इस विधि से रत्न धारण करने से ही वह पूर्ण फल देता है। मंत्र जाप के लिए भी रत्न सिद्धि के लिए किसी ज्ञानी की मदद भी ली जा सकती है। शनि और राहु के रत्न कुंडली के सूक्ष्म निरीक्षण के बाद ही पहनना चाहिए अन्यथा इनसे भयंकर नुकसान भी हो सकता है।
रत्नों का चुनाव कैसे किया जाता है?
अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए या जिस ग्रह का प्रभाव कम पड़ रहा हो उसमें वृद्धि करने के लिए उस ग्रह के रत्न को धारण करने का परामर्श ज्योतिषी देते हैं। एक साथ कौन-कौन से रत्न पहनने चाहिए, इस बारे में ज्योतिषियों की राय है कि, माणिक्य के साथ- नीलम, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है।
मोती के साथ- हीरा, पन्ना, नीलम, गोमेद,   लहसुनिया वर्जित है। मूंगा के साथ- पन्ना, हीरा, गोमेद, लहसुनिया वर्जित है। पन्ना के साथ- मूंगा, मोती वर्जित है। पुखराज के साथ- हीरा, नीलम, गोमेद वर्जित है। हीरे के साथ- माणिक्य, मोती, मूंगा, पुखराज वर्जित है।   नीलम के साथ- माणिक्य, मोती, पुखराज वर्जित है। गोमेद के साथ- माणिक्य, मूंगा, पुखराज वर्जित है। लहसुनिया के साथ- माणिक्य, मूंगा, पुखराज, मोती वर्जित है। रत्न स्वयं सिद्ध ही होते हैं थोड़ा आप भी विश्वास करे तो असर होता है अधिक जानकरी के लिए कालयोग गौ सेवा ट्रस्ट शिमला 8263882638;9218200013;14 आचार्य महिंदर कृष्ण शर्मा whats app और fb नंबर 9129500004 जीवन में जब कभी-कभी परिस्थितियां अनुकूल के बजाय प्रतिकूल चलती हैं तो लोग धर्म-आस्था की तरफ जरूर रूख करते हैं या फिर कभी अपने पूर्व जन्म के बारे में भी कुछ लोग बहुत कुछ जानने के इच्छुक होते हैं। आज के  में बहुत कुछ संभव सा हो गया है लेकिन जरूरी है इस बारे में आपको सही मार्गदर्शन और सही जानकारी मिले। हम अपने धर्म आस्था में इस बार आपको रूबरू करा रहे हैं शिमला के मतियाणा के परवेच गांव के रहने वाले आचार्य महेन्द्र सिंह शर्मा से। जो काल के योग के माध्यम से पिछले जन्म तक लोगों को ले जाकर उसके बारे में अवगत करवाते हैं तो वहीं अपनी ज्योतिष विद्या द्वारा लोगों की समस्या का समाधान भी करते हैं।
Copyright @ 2019.