(09/05/2015) 
ब्रह्म ज्ञान द्वारा ज्ञान का दीप अपने घट में जलाय-साध्वी वैष्णवी भारती
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से श्रीमद् भागवत कथा का भव्य आयोजन दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से श्रीमद्भागवत महापुराणन वाहक था ज्ञान यज्ञ का आयोजन रामलीला ग्राउंड, गीता काॅलोनी के पीछे, कड़कड़डूमा में किया जा रहा है।जिस के अंर्तगत सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैष्णवी भारती जी ने माहात्मय के अंर्तगत बताया भगवान श्रीकृष्ण में जिनकी लगन लगी है उन भावुक भक्तों के हृदय में प्रभु के मधुमय भाव को अभिव्यक्त करने वाला, उनके दिव्य रस का आस्वादन करवाने वाला यह सर्वोत्त्कृष्ट महापुराण है।

जिसमें वणत वाक्य ज्ञान, विज्ञान, भक्ति एवं उसके अंगभूत साध्न चतुष्टय को प्रकाशित करने वाला है तथा माया का मर्दन करने में समर्थ है।श्रीमद्भागवत भारतीय साहित्य का अपूर्व ग्रंथ है। यह भक्ति रस का ऐसा सागर है जिसमें डूबने वाले को भक्ति रूपीमणि-माणिक्यों की प्राप्ति होेती है।भागवत कथा वह परमतत्व है जिसकी विराटता अपरिमित व असीम है।वह परमतत्व इसमें निहित है जिसके आश्रय से ही इस परम पावन भू-धम का प्रत्येक कण अनुप्राणित और अभिव्यंजित हो रहा है। यह वह अखंड प्रकाश है जो मानव की प्रज्ञा को ज्ञान द्वारा आलोकित कर व्यापक चिंतन के द्वार खोल देता है। यह वह कथा है जो मानव के भीतरी दौब्र्लयता के रूपान्तरण हेतु अविरल मन्दाकिनी के रूप में युगों युगों से प्रवाहित होती आर ही है।भक्ति के दोनों पुत्रों ज्ञान और वैराग्य कामा मकचित्राण प्रस्तुत किया गया।ज्ञान और वैराग्य की वृद्धावस्था को श्रीमद्भागवत महापुराण की कथा के माध्यम से खंडित किया गया।भक्ति का स्वरूप पिघली हुई उस लाख की भांति होता है जो अग्नि के सम्बंध् से द्रवी भूतकोमल हो जाती है।जब इसमें हल्दी डाल दी जाय, वो वहलाख मंे स्थायित्व को प्राप्त हो जाती है फिर रंग चाहे कितनी भी कोशिश करे वह लाख से नहीं निकल सकता। ऐसे ही भक्ति का रंग जिस भी चित्त को लगता है वह उस जीव को भक्त बना भगवान के समीप ले जाता है।उन्होने बताया कि भागवत महापुराण की कथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति का प्रतिनिध्त्वि करती है।आज के समाज की हर समस्या का समाधन इसमें ही निहित है।आप देखे आत्मदेव की कथा में उसका परिवार है।पत्नी धुंधली, पुत्रा धुंधुकारी, गोकर्ण है। ध्ुंध्ुकारी जो कुसंग के कारण अपने माता पिता को दुःख देताहै।पिता आत्म देव इस व्यथा को सहन न हीं करपाते और वन की ओर बढ़ जाते हैं।उसने मां धुंधली से धन की मांग की, माता ने पुत्रा के दुष्कर्मों के कारण आत्म हत्या कर ली। धुंधुकारी अंत में प्रेत योनि को प्राप्त हो जाता है।आत्म देव का हंसता खेलता परिवार समाप्त हो गया।गोकर्ण के साप्ताहिक ज्ञान यज्ञ के माध्यम से सात गांठों वाला बांस टूटता है। ये सात गांठों वाला बांस मानव की अज्ञानता का परिचायक है।हम ईश्वर की संतान हैंऔर उन की शक्ति भी हमारे भीतर है।परंतु वो सुषुप्त हैै।उसी शक्ति को ब्रह्म ज्ञान के माध्यम से जगाना ही गांठों का टूटना का प्रतीक है।अज्ञानता से अभिप्राय निरक्षरता और मानसिक विक्षेप से नहीं है।अज्ञानता से तात्पर्य मूर्खता से नहीं है। यह सूक्ष्म अंधकार है जो हमारा ध्यान निचली तहों तक उलझाये रखताहै। यह हमें यथार्थ को यथार्थ नहीं देखने देता। यही तमस मानव को एकता के सूत्रा में बंधने नहीं देता। यदि कोई व्यक्ति अंधेरे कमरे में उलझी गांठ को सुलझाने की कोशिश करे तो क्या होगा? गांठ और उलझ जायेगी ।इसलिये दीपक जलाने की आवश्यकता है।तभी समाधन प्राप्त होगा।भागवत यही प्रेरणा देती है कि हम ज्ञान का दीप अपने घट में जलायें।
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