(12/05/2015) 
व्यवस्थित समाज की स्थापना ब्रह्मज्ञान द्वारा ही संभव - सुश्री वैैष्णवी भारती
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से राम लीला ग्राउंड, गीता काॅलोनी के पीछे, कड़कड़डूमा में चल रही श्रीमद्भागवत कथा नवाह ज्ञानयज्ञ के तीसरे दिवस की सभा में सर्व आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री वैैष्णवी भारती जी ने बताया परीक्षित को शाप मिलने के उपरांत शुकदेव मुनि जी का आगमन सभा में हुआ।

उन्होने राजा को वही मार्ग बताया जो समय पर प्रत्येक गुरु बताते हैं। भगवान स्वयं गीता में कहते हैं कि अर्जुन यह ज्ञान मैंने सूर्य को दिया। उसके आगे यह ज्ञान परम्परागत बांटा गया। पूर्ण गुरू भी यही कार्य करते हैं। वे तीसरे नेत्रा को उद्घाटित कर अंर्तमुखी कर देते हैं। साध्क अपने ही भीतर उतर कर दिव्य अनुभूतियों का दर्शन प्राप्त करता है। साध्वी जीने बहुत ही सुसज्जित ढंग से भगवान श्रीकृष्ण जी के अलौकिक एवं महान व्यक्तित्व के विषय में बताया। प्रभु शांति दूत बन कर हस्तिनापुर की राज्य सभा में उपस्थित हुये। वहां प्रवेश करते ही उनको द्रौपदी चीरहरण का वीभत्स पल स्मरण हो आये। वह मात्रा द्रौपदी का अपमान नहीं था अपितु संपूर्ण नारी जाति का तिरस्कार था। क्योंकि भगवान जानते थे समाज में एक नारी की कैसी स्थिति होनी चाहिए। समाज में नारी का क्या स्थान है वो इससे परिचित थे। कहते हैं कि किसी राष्ट्र की स्थिति जाननी हो तो वहां नारी का कैसा दर्जा है उससे अनुमान लगाया जा सकता है। जिस स्थान पर नारी का सम्मान होता है वहां देवता भी निवास करते हैं। नारी नेतृत्व करने वाली, महिला जो पूजा के योग्य है, स्त्राी जो प्रेम सद्भावना का विस्तार करती है ऐसा माना गया है। अर्जुन, अभिमन्यु, प्रताप, शिवाजी का चरित्रा पढि़ए उनमें असाधरण वीरता थी। वे वीर रत्न माता के उदर से ही महान संस्कार प्राप्त करके उत्पन्न हुए थे। माताओं की पवित्रा, उच्च 
भावना का उनके जीवन पर प्रभाव पड़ा। ध््रुव-प्रहलाद में जो अद्भुत भक्ति बल था, वह सब उनकी जननी के संस्कारों का प्रभाव था। मदालसा देवी जब अपने पुत्रों को पालने में सुलाती तो उस समय उनको आध्यात्मिक भावनाओं से पूर्ण लोरियां सुनाती थी। झांसी की रानी, ताराबाई, रानी किरणवती, गार्गी, अपाला, घोषा इत्यादि महान नारियों को भारत का इतिहास कभी नहीं भुला सकता।
परंतु आज की सदी में जहां विज्ञान और कम्पयूटर का युग है वहां नारियों को माँ की कोख में ही मार दिया जाता है। कन्याभ्रूण हत्या जैसी भयंकर बीमारी आज हमारे समूचे समाज में पफैल चुकी है। नवरात्रों के दिनों में माँ दुर्गा के नौ स्वरूप के रूप में जिन कंजकों को हम पूजते हैं उसी माँ के स्वरूप को अपने घर में आने से पहले ही मार देते हैं। हम विद्या के लिए देवी सरस्वती, शक्ति के लिए देवी दुर्गा, ध्न के लिए देवी लक्ष्मी का पूजन करते हैं। क्या ये सब नारियां नहीं? आज हमें अपनी रूढि़वादी सोच को बदलना होगा। नारी को आत्मसम्मान के साथ जीने का अवसर दें। नारी को भी अपनी आत्म रक्षा के लिए अपनी भीतर की सोई हुई 
शक्तियों से परिचित होना होगा। यह मात्रा ब्रह्मज्ञान से ही संभव है।
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