(04/06/2015) 
धूल और धुंआ रहित दिल्ली की परिकल्पना असंभव हैः दयानंद वत्स
आदर्श ग्रामीण समाज, दिल्ली और नेशनल चाइल्ड एंड वूमेन डॅवलपमेंट चेरिटेबल ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में आज उत्तर पश्चिम बाहरी दिल्ली के बरवाला गांव में विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर समाज के उपाध्यक्ष दयानंद वत्स की अध्यक्षता में धूल और धुंआ रहित दिल्ली की परिकल्पना विश्यक एक परिचर्चा का आयोजन किया गया।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में वत्स ने कहा कि इस समय भारत की राजधानी पर्यावरणीय संक्रमण काल से गुजर रही है। लाखों वाहनों से उगलते धुंए के साथ-साथ दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्रों में भी रिहायशी इलाकोें यथा पूठखुर्द लालडोरा, प्रहलादपुर बांगर, साहिबाबाद दौलतपुर, समयपुर बादली क्षेत्रों में चल रही अवैध औघोगिक इकाईयों के कारण गावों की आबोहवा भी जहरीली होती जा रही हेै। इन क्षेत्रों में प्रतिबंधित श्रेणी की इकाईयों में रबड, प्लास्टिक् की पन्नियां, टायर रिसाईकल का काम होता है जिससे लोेगों को सांस लेने में भी तकलीफ होती है और वे बहुत सी घातक बीमारियों का भी शिकार हो रहे हैं। इन फैक्टरियों से निकलते धुएं से ग्रामीण क्षेत्र में भी अब शुद्ध हवा एक स्वप्न बन गई है। वत्स ने कहा कि बवाना में श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नाम से हजारों एकड जमीन में औधोगिक क्षेत्र बनने के बावजूद अभी तक इन गावों में अवैध प्रदूषण फेैला रही इकाईयां धडल्ले से लोगों को टी.बी., दमा, अस्थमा, केंसर, फेफडों की बीमारियां क्यों फैला रही हैं। नेशनल ग्रीन टिब्यूनल भी इन्हें यहां चलाने की इजाजत नहीं देता है। दिल्ली के इन गावों मेे चल रही जहरीली आबोहवा फेैला रही इन अवैध इकाईयों को किसके आदेष पर चलाया जा रहा है।
वत्स ने कहा कि विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस की सार्थकता एवं प्रासांगिकता तभी है जब राजधानी दिल्ली का शरीर और ग्रामीण क्षेत्र  धूल और धुंए से मुक्त हो। दिल्ली के चारों और बनाए गये सेनेटरी लेंडफिलों से चैबीसों घंटे धुंआ उठता रहता है। भलस्वा लैंडफिल इसका प्रमुख उदाहरण है।
धूल और धुंए ने दिल्ली को विष्व का सबसे प्रदूषित शहर बना दिया हैै। दिल्ली में सभी प्रकार की एजेंसिंयों के होते हुए भी इन पर लगाम लगाने वाला कोई नहीं है। वत्स ने कहा कि पिछले दिनों आए एक सर्वेक्षण में बताया गया था कि दिल्ली के स्कूलों में पढने वालो लाखों विधार्थियों के फेफडे प्रदूषित जहरीली आबो हवा से कमजोर हो चुके हैं और यहां के नागरिक विभिन्न प्रकार की लाइलाज बीमारियों का शिकार बन रहे है। ऐसे में विश्व पर्यावरण दिवस महज औपचारिकता मात्र रह गया है। जडों में पानी देने की जगह पत्तों पर पानी छिडका जा रहा है।
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